पंजाब और हरियाणा के खेतों में पराली जलाने की 90 प्रतिशत से अधिक घटनाएं अब आधिकारिक निगरानी प्रणालियों की पकड़ में नहीं आ रही हैं, क्योंकि किसान खेतों में कृषि अपशिष्ट दोपहर बाद जलाते हैं। यह खुलासा सोमवार को आई एक रिपोर्ट में हुआ है। इंटरनैशनल फोरम फॉर इनवॉयरमेंट, सस्टेनबिलिटी ऐंड टेक्नॉलजी (आईफॉरेस्ट) द्वारा जारी पराली जलाने से जुड़ी स्थिति रिपोर्ट-2025 में कहा गया है कि इस वर्ष दिल्ली के वायु प्रदूषण में पराली जलाने के योगदान को काफी कम करके आंका गया है।
आईफॉरेस्ट ने कहा कि भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के कंसोर्टियम फॉर एग्रोइकोसिस्टम मॉनिटरिंग ऐंड मॉडलिंग फ्रॉम स्पेस (सीआरईएएमएस) द्वारा संचालित सरकार का वर्तमान निगरानी प्रोटोकॉल पराली जलाने की अधिकांश घटनाओं को दर्ज करने में असमर्थ साबित हो रहा है, क्योंकि यह मुख्य रूप से ध्रुवीय-कक्षा वाले उपग्रहों पर निर्भर करता है, जो भारत का केवल पूर्वाह्न 10:30 बजे से अपराह्न 1:30 बजे के बीच ही निरीक्षण करते हैं। यह वह अवधि है जो किसानों द्वारा पराली जलाने के समय से मेल नहीं खाती।
रिपोर्ट में जमीनी स्तर पर वास्तविक प्रगति का भी उल्लेख किया गया है, जिसमें पंजाब और हरियाणा में हाल के वर्षों में पराली जलाने से प्रभावित रकबे में 25-35 प्रतिशत की कमी आई है। आईफॉरेस्ट ने कहा कि जले हुए क्षेत्र का मानचित्रण सक्रिय आग की गणना की तुलना में अधिक सटीक तस्वीर प्रदान करता है, जो वर्तमान में बहुत बड़ी गिरावट का संकेत देता है।
आईफॉरेस्ट के सीईओ चंद्र भूषण ने कहा, ‘हमारा विश्लेषण इस बात का प्रमाण है कि देश की वर्तमान पराली जलाने की निगरानी प्रणाली संरचनात्मक रूप से जमीनी हकीकत से मेल नहीं खाती है।’ उन्होंने कहा, ‘किसान अब दोपहर बाद पराली जलाते हैं जबकि हमारी निगरानी उपग्रहों पर निर्भर करती है, जो केवल एक सीमित समयावधि (पूर्वाह्न 10:30 बजे से अपराह्न 1:30 बजे तक) के दौरान लगी आग को ही दर्ज करते हैं।’
भूषण ने कहा कि ‘इसका नतीजा यह है कि दिल्ली में पराली जलाने की घटनाओं के उत्सर्जन और वायु प्रदूषण में योगदान को बहुत कम आंका गया है। हमें इस व्यवस्था में तुरंत सुधार करने की जरूरत है।’
विश्लेषण के मुताबिक पंजाब में 2024 और 2025 के दौरान पराली जलाने की 90 प्रतिशत से ज्यादा बड़ी घटनाएं अपराह्न तीन बजे के बाद हुईं। वर्ष 2021 में उपग्रह अवलोकन समय के बाद केवल तीन प्रतिशत ही पराली जलाने की घटनाएं हुई थीं। आईफॉरेस्ट ने कहा कि दोपहर बाद पराली जलाने की घटनाओं की जानकारी दर्ज नहीं होने से उत्सर्जन का अनुमान लगाने और दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता के पूर्वानुमान में बड़ी त्रुटियां हो सकती हैं।
(साथ में एजेंसियां)