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असंगठित विनिर्माण क्षेत्र में नौकरियां 15 साल में सबसे कम

नोटबंदी, GST और कोविड के झटकों से अब तक नहीं उबर पाया असंगठित विनिर्माण क्षेत्र, रोजगार घटा लेकिन कारोबारी इकाइयों की संख्या बढ़ी

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शिवा राजौरा   
Last Updated- January 29, 2025 | 10:58 PM IST

असंगठित विनिर्माण क्षेत्र में रोजगार 2023-24 के दौरान करीब 15 साल के निचले स्तर पर पहुंच गया है। बुधवार को जारी नवीनतम ‘असंगठित क्षेत्र के उद्यमों के वार्षिक सर्वेक्षण (एएसयूएसई)’ के आंकड़ों और राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा कराए गए 67वें राष्ट्रीय नमूना सर्वे (एनएसएस) का विश्लेषण करने से ये आंकड़े सामने आए है।

विशेषज्ञों का कहना है कि नोटबंदी, वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) और कोविड महामारी के कारण हुए लॉकडाउन जैसे एक के बाद एक आर्थिक नीतिगत झटकों के कारण विनिर्माण क्षेत्र में रोजगार का स्तर कम हुआ है।
आंकड़ों से पता चलता है कि 2023-24 में विनिर्माण क्षेत्र में करीब 3.37 करोड़ लोग काम कर रहे थे, जबकि 2010-11 के दौरान 3.49 करोड़ लोग कार्यरत थे। हालांकि इस अवधि के दौरान इस क्षेत्र में उपक्रमों की संख्या बढ़कर 2.014 करोड़ हो गई, जो पहले 1.72 करोड़ थी।

राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (एनएससी) के पूर्व कार्यकारी चेयरमैन पीसी मोहन ने कहा कि असंगठित विनिर्माण क्षेत्र को अभी एक के बाद एक लगे आर्थिक नीति के झटकों से उबरना बाकी है। इसी तरह से विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए लाई गई मेक इन इंडिया जैसी पहल भी इस सेक्टर पर सकारात्मक असर डालने में नाकाम रही हैं।

उन्होंने कहा, ‘इस बीच प्रतिष्ठानों की संख्या में हुई वृद्धि की वजह हायर्ड वर्कर एंटरप्राइजेज (एचडब्ल्यूई) की तुलना में ऑन अकाउंट एंटरप्राइजेज (ओएई) की हिस्सेदारी में बढ़ोतरी है। ’ ओएई ऐसी कारोबारी इकाई है, जिसे कोई व्यक्ति या परिवार के सदस्य मिलकर चलाते हैं और उसमें कोई नियमित कामगार नहीं रखा जाता है।

आंकड़ों से पता चलता है कि 2023-24 में इस सेक्टर में ओएई की हिस्सेदारी बढ़कर 88.3 प्रतिशत हो गई है, जो 2010-11 के दौरान 83.8 प्रतिशत थी असंगठित उद्यमों में ऐसे कारोबारी इकाइयां शामिल होती हैं, जो कंपनी अधिनियम, 1956 या कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत कानूनी रूप से पंजीकृत नहीं होती हैं।

इन असंगठित गैर-कृषि उद्यमों में छोटे विनिर्माताओं और सेवा प्रदाताओं से लेकर व्यापार प्रतिष्ठान तक शामिल होते हैं, जिनकी अर्थव्यवस्था में उल्लेखनीय हिस्सेदारी है। भारत के पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद प्रणव सेन का कहना है कि इसमें कोई संदेह नहीं कि कई नीतिगत फैसलों से असंगठित क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुआ है। उन्होंने कहा, ‘इसकी वजह से पुराने संस्थान खत्म हो गए। नए संस्थानों के बनने और विकसित होने में वक्त लगेगा। यही वजह है कि ओएई की हिस्सेदारी बढ़ रही है और प्रतिष्ठान बढ़े हैं, जबकि इस क्षेत्र में रोजगार निचले स्तर पर है।’

 

First Published : January 29, 2025 | 10:58 PM IST