भारत परमाणु ऊर्जा में विदेशी निवेश पर लगे प्रतिबंध को हटाने पर विचार कर रहा है। स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने में शामिल दो सरकारी अधिकारियों ने रॉयटर्स को बताया कि ऐसा होने पर घरेलू निजी कंपनियों की परमाणु ऊर्जा में अधिक भागीदारी हो सकेगी। यह सुझाव थिंक टैंक नीति आयोग द्वारा गठित सरकारी पैनल ने दिया है। नीति आयोग की अध्यक्षता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करते हैं।
भारत के परमाणु ऊर्जा अधिनियम 1962 के अंतर्गत परमाणु ऊर्जा के स्टेंशनों के केंद्रों के विकास व संचालन में सरकार महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है और घरेलू निजी कंपनियां ‘जूनियर इक्विटी पार्टनर’ के तौर पर हिस्सा लेती हैं।
घरेलू निजी कंपनियां यंत्र मुहैया करवाकर निर्माण में मदद करती हैं। इस पैनल ने परमाणु ऊर्जा अधिनियम 1962 और भारत की विदेश निवेश नीतियों में बदलाव करने का सुझाव दिया है। इससे घरेलू और विदेशी निजी कंपनियां परमाणु ऊर्जा उत्पाद में हिस्सा ले सकती हैं।
मीडिया से बातचीत करने के लिए अधिकृत नहीं अधिकारियों ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि परमाणु ऊर्जा में विदेशी निवेश बढ़ाने का ध्येय कार्बन उत्सर्जन को कम करना है। सौर ऊर्जा के विपरीज परमाणु ऊर्जा से 24/7 आपूर्ति संभव है।
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परमाणु ऊर्जा विभाग ने पहले जानकारी दी थी कि विदेशी कंपनियां देश के परमाणु ऊर्जा अभियानों में बतौर तकनीकी साझेदार, आपूर्तिकर्ता, ठेकेदार और सेवा मुहैयाकर्ता के रूप में इच्छुक थीं। इन इच्छुक विदेशी कंपनियों में वेस्टिंग हाउस इलेक्ट्रिक, जीई- हिताची, इलेक्ट्रीसाइट डी फ्रांस और रोसाटॉम शामिल थीं।
भारत परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में विदेशी निवेश की इजाजत नहीं देता है। अधिकारियों ने बताया कि निजी सहभागिता से त्वरित परमाणु बिजली उत्पादन वाले ‘स्मॉल मोड्यूलर रिएक्टर’ (SRM) पर विशेष जोर दिया जा रहा है।
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भारत में कुल बिजली उत्पादन में परमाणु ऊर्जा की हिस्सेदारी केवल 3 प्रतिशत है जबकि कोयले से बनाई जाने वाली ऊर्जा की हिस्सेदारी तीन चौथाई है।