संसद की एक स्थायी समिति ने 12 दिसंबर को राज्य सभा में पेश की गई अपनी रिपोर्ट में कहा है कि केंद्र सरकार की प्रोत्साहन योजनाएं हाइब्रिड कारों के बजाय इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) पर केंद्रित होनी चाहिए। समिति का तर्क है कि हाइब्रिड मूल रूप से जीवाश्म ईंधन पर निर्भर करती हैं और वास्तविक शून्य-उत्सर्जन वाहनों के विपरीत उनसे निकलने वाले धुएं से प्रदूषण फैलता है।
वाहन उद्योग में स्पष्ट मतभेद के बीच यह सिफारिश की गई है, जहां टोयोटा और मारुति सुजूकी जैसी कंपनियां स्ट्रॉन्ग हाइब्रिड वाहनों के समर्थन की वकालत कर रही हैं। वहीं टाटा मोटर्स और महिंद्रा ऐंड महिंद्रा जैसी घरेलू ईवी कंपनियां सिर्फ ईवी के लिए प्रोत्साहन पर जोर दे रही हैं।
भाजपा के राज्य सभा सांसद भुवनेश्वर कलिता की अध्यक्षता वाली संसद की स्थायी समिति ने यह भी कहा कि एथेनॉल के अधिक मिश्रण से पुराने वाहनों के लिए चिंताएं बढ़ जाती हैं, क्योंकि उनमें ऐसे ईंधन को संभालने के लिए उन्नत प्रणालियां नहीं होती हैं और इससे उन्हें यांत्रिक क्षति और अधिक उत्सर्जन का सामना करना पड़ सकता है।
समिति ने कहा है, ‘हालांकि एथेनॉल मिश्रण एक परिवर्तनीय ऊर्जा रणनीति का हिस्सा हो सकता है, लेकिन इसे अनजाने में शून्य-टेलपाइप-उत्सर्जन वाले वाहन बेड़े में परिवर्तन के उद्देश्य से नीतिगत ध्यान या वित्तीय सहायता को विचलित नहीं करना चाहिए।’