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Delhi Air Pollution: दोषपूर्ण नीतियों से बिगड़े हालात के बीच सांस ले रही दिल्ली!

दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण स्तर को लेकर ग्रैप के कड़े उपायों को पहले चरण में लागू किए जाने का निर्णय लिया गया है और कार्रवाई में तेजी लाने की जरूरत बताई गई है

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अनुष्का भारद्वाज   
Last Updated- November 23, 2025 | 11:11 PM IST

वायु प्रदूषण के खिलाफ दिल्ली की लड़ाई में 22 नवंबर एक महत्त्वपूर्ण दिन था। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) से ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (ग्रैप) पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिए जाने के अगले दिन आयोग ने प्रदूषण नियंत्रण उपायों में प्रमुख बदलाव किए। इसके अनुसार ग्रैप-4 के लिए निर्धारित कुछ प्रतिबंध अब ग्रैप-3 स्तर पर लागू किए जाएंगे, जिसमें कर्मचारियों के घर से काम करने (वर्क फ्रॉम होम) और 50 फीसदी कर्मचारियों को ही दफ्तर बुलाने के प्रावधान शामिल हैं। इसी तरह ग्रैप-3 के उपाय अब ग्रैप-2 चरण में ही प्रभावी हो जाएंगे।

यह कदम ऐसे समय में उठाया गया जब दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 11 नवंबर से हर दिन 350 से ऊपर रहा है। 9 नवंबर को प्रदूषण के ​खिलाफ शहरवासियों द्वारा किए गए विरोध प्रदर्शन के बाद दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने ग्रैप-3 उपायों को लागू किया था।  रविवार को भी दिल्ली में वायु गुणवत्ता ‘बहुत खराब’ श्रेणी में रही और समग्र वायु गुणवत्ता सूचकांक 391 दर्ज किया गया।

दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति के पूर्व अतिरिक्त निदेशक मोहन पी जॉर्ज ने कहा, ‘हमारे पास राष्ट्रीय स्वच्छ हवा कार्यक्रम और ग्रैप जैसे उपाय हैं। ये प्रभावशाली हैं लेकिन इसे लागू करने में अक्सर देरी होती है और यह अदूरदर्शी होती हैं।’ उन्होंने कहा कि इसके लागू करने में देरी और वैज्ञानिक समर्थन की कमी इस मुद्दे से निपटने में राजनीतिक इच्छाशक्ति की व्यापक कमी को दर्शाती है।

दिल्ली का संकट बार-बार होने वाला और तेजी से घातक होता जा रहा है।

‘ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज’ के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2023 में दिल्ली में हुई सभी मौतों में से करीब 15 फीसदी वायु प्रदूषण के कारण हुईं। 2016 से गंभीर एक्यूआई स्तर के कारण स्कूलों को हर साल तकरीबन 1 सप्ताह तक बंद करना पड़ रहा है और रुकी हुई निर्माण परियोजनाओं और बाधित आपूर्ति श्रृंखलाओं के कारण करोड़ों का नुकसान उठाना पड़ा है।

राजनीतिक विश्लेषक अंकित लाल कहते हैं, ‘जो लोग सक्षम हैं वे एयर प्यूरीफायर खरीद रहे हैं, सरकारी कार्यालयों और नीति निर्माताओं के पास यह सुविधा उपलब्ध है। चूंकि संकट का समाधान व्यक्तिगत स्तर पर किया जा रहा है इसलिए यह एक बड़ी प्राथमिकता बनने में विफल रहा है।’ विशेषज्ञों का कहना है कि वायु प्रदूषण वर्षों से सरकारों द्वारा अपनाए गए नरम दृष्टिकोण और कुप्रबंधन का परिणाम है। इस साल जून में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने खुलासा किया कि उसने आठ वर्षों में जमा हुए 45.8 करोड़ रुपये के पर्यावरण उपकर का केवल 1 फीसदी ही खर्च किया है। एक आरटीआई के जवाब में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने पिछले दशक के दौरान एकत्र किए गए पर्यावरणीय प्रदूषण शुल्क का केवल 31 फीसदी उपयोग करने की भी बात स्वीकार की।

पर्यावरणविद् भवरीन कंधारी कहती हैं, ‘देश भर के अधिकांश प्रदूषण बोर्डों के पास पैसे पड़े हैं जिनका उपयोग नहीं किया गया है। प्रदूषण को राजनीतिक प्राथमिकता नहीं देने का कोई कारण नहीं है।’

वंचितों को अस्तित्व की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। उनका कहना है कि केवल सरकार ही प्रदूषण के परिणामों के बारे में जागरूकता बढ़ा सकती है क्योंकि खराब वायु गुणवत्ता के संपर्क में उनका आना कहीं अधिक है। कंधारी कहती हैं, ‘तब तक, शहरी वर्ग को यह लड़ाई लड़नी होगी।’

पर्यावरण पर काम करने वाले गैर-सरकारी संगठन स्वेच्छा इंडिया के संस्थापक विमलेंदु झा कहते हैं कि एक्यूआई जैसे प्रमुख मापदंडों में हेरफेर करने के प्रयासों से प्रभावी नीति निर्माण बाधित हो रहा है। उन्होंने कहा कि इस समस्या को हल करने के लिए आंकड़ों में हेरफेर कर इस मुद्दे को कम आंकना बंद करना चाहिए।

विपक्ष का मुद्दा

दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने 18 नवंबर को नॉर्दर्न जोनल काउंसिल को संबोधित करते हुए कहा कि हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान ने पराली के प्रबंधन में उल्लेखनीय सुधार किया है, लेकिन पंजाब से निकलने वाला धुआं अभी भी अधिक है।

दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने आम आदमी पार्टी के नेतृत्व वाली पंजाब सरकार से बेहतर सहयोग करने का आग्रह किया। मगर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के आंकड़ों से पता चलता है कि 15 सितंबर से 2 नवंबर के बीच हरियाणा और पंजाब दोनों राज्यों में पराली जलाने के मामलों में 50 फीसदी की गिरावट आई।

आईसीएआर के आंकड़ों से पता चलता है कि पंजाब में 2020 में पराली जलाने के 41,176 मामले सामने आए थे जो 2025 में 94.5 फीसदी घटकर 2,262 रह गए हैं। 15 सितंबर से 19 नवंबर के बीच मध्य प्रदेश में पराली जलाने के सबसे अ​धिक 10,175 मामले दर्ज किए गए। उसके बाद 4,409 मामलों के साथ उत्तर प्रदेश का स्थान रहा। झा ने कहा, ‘प्रदूषण को अब एक-दूसरे पर दोषारोपण के खेल में बदल दिया गया है।’

सोशल मीडिया पर भी इसी तरह की चर्चा हो रही है। आम आदमी पार्टी दिल्ली में एक दशक तक सत्ता में रहने के बाद फिलहाल विपक्ष में है। उसने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की राज्य इकाई की जवाबदेही पर निशाना साधते हुए अपने इंस्टाग्राम अभियान को तेज कर दिया है। विरोध-प्रदर्शन की क्लिप पोस्ट करने से लेकर ‘डबल-इंजन सरकार’ पर कटाक्ष करने तक आम आदमी पार्टी पिछले साल के मुकाबले अधिक आक्रामक तरीके से ऑनलाइन अभियान चला रही है। पिछले साल उसने अपने सोशल मीडिया पोस्ट को जागरूकता और केंद्र की जिम्मेदारी पर जोर देने तक सीमित रखा था। इस बीच भाजपा ने अपने सोशल मीडिया पर यमुना की सफाई की बात की है जो राजधानी में पर्यावरण संबंधी एक प्रमुख मुद्दा है।

द एनर्जी ऐंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट के वरिष्ठ फेलो (वायु गुणवत्ता अनुसंधान) आर सुरेश ने कहा कि दिल्ली की वायु गुणवत्ता पूरे क्षेत्र में होने वाले उत्सर्जन से प्रभावित होती है। उन्होंने कहा, ‘स्थायी सुधार के लिए एक व्यवस्थित दृष्टिकोण अपनाने और दमदार क्षेत्रीय सहयोग की आवश्यकता है।’

नीतियों में विज्ञान गायब

विशेषज्ञों का कहना है कि दिल्ली के प्रदूषण संकट से निपटना चुनौतीपूर्ण है लेकिन यह संभव है। जॉर्ज ने कहा, ‘दिल्ली को भौगोलिक लिहाज से नुकसान है। इसलिए किसी को यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि प्रदूषण की समस्या एक ही मौसम में दूर हो जाएगी। मगर हमें वैज्ञानिक

दृ​ष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।’ उन्होंने कहा कि स्मॉग गन अथवा पानी के छिड़काव के लिए चुने गए क्षेत्रों जैसे छोटी-छोटी बातों पर भी नजर रखने की जरूरत है।

First Published : November 23, 2025 | 11:11 PM IST