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BS Manthan: कृषि क्षेत्र की वैचारिक जमीन होगी तैयार

कृषि का भविष्य: 2047 तक भारतीय कृषि का मार्ग प्रशस्त करना

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संजीब मुखर्जी   
Last Updated- March 26, 2024 | 11:22 PM IST

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश की करीब 55 फीसदी जनसंख्या कृषि और उससे संबद्ध गतिविधियों में जुड़ी हुई है। इसलिए 2047 के विकसित भारत के रास्तों को खेतों से होकर गुजरना होगा। कृषि क्षेत्र की अनगिनत चर्चाएं और बहसें लंबे समय से वैचारिक सीमाओं में फंसी हुई हैं। इससे सामान्य हल ढूंढ़ना मुश्किल हो गया है।

लिहाजा भारत में कृषि और उससे जुड़े क्षेत्र के सर्वश्रेष्ठ जानकार नई दिल्ली के भारत मंडपम में 27 -28 मार्च को आयोजित बिज़नेस स्टैंडर्ड के दो दिवसीय कार्यक्रम में विचार- विमर्श करेंगे। वर्ष 2047 में विकसित भारत में कृषि की भूमिका पर पैनल 28 मार्च (विचार-विमर्श के दूसरे दिन) को चर्चा करेगा। इसमें देश के कृषि क्षेत्र और इसके भविष्य के प्रभाव की समीक्षा की जाएगी।

नीति आयोग के सदस्य एवं कृषि अर्थशास्त्री रमेश चंद, कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी, किसानों का प्रतिनिधित्व करने वाले भारत कृषक समाज (भारत में किसानों के फोरम) के चेयरमैन अजय वीर जाखड़ इस नामचीन पैनल में शामिल होंगे।

यह पैनल न्यूनतम समर्थन मूल्य के कानूनी गारंटी की मांग, खेती के समक्ष बढ़ती जलवायु संबंधी चुनौतियों, कई फसलों की पैदावार में गिरावट व स्थिरता, सीमित संसाधनों के साथ देश की बढ़ती आबादी को भोजन मुहैया कराने की चुनौती, खेती की तकनीकी चुनौतियों और डिजिटाइजेशन की पहल पर 45 मिनट चर्चा करेगा।

यह तथ्य है कि हाल के वर्षों में देश में खेती और उससे जुड़ी गतिविधियों की सालाना सकल घरेलू उत्पाद में हिस्सेदारी गिर गई है जबकि खेती पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ी आबादी की निर्भरता इस अनुपात में कम नहीं हुई है। इसका परिणाम यह हुआ कि लाखों लोग अनुत्पादक गतिविधियों से जुड़े हुए हैं। इन लोगों को कम आमदनी पर कार्य करना पड़ रहा है। बीते वर्षों में इस चुनौती का हल ढूंढ़ना कई अर्थशास्त्रियों व टिप्पणीकारों के लिए मुश्किल हो गया है।

लोगों को खेती बाड़ी छोड़कर अन्य कौशल वाली नौकरियों में जाने के लिए प्रोत्साहित करना है और इसके लिए ग्रामीण गैर कृषि क्षेत्र में पर्याप्त निवेश करने की जरूरत है। इसके अलावा खेती को उत्पादक और फसल पैदा करने वालों के लिए लाभकारी बनाना है।

पिछले परिस्थितजन्य मूल्यांकन सर्वेक्षण (एसएएस) 2018-19 के आंकड़े प्रदर्शित करते हैं कि वर्ष 2012-13 में औसत कृषि परिवार के लिए फसल से आय का हिस्सा 48 फीसदी था और यह 2018-19 में गिरकर 38 फीसदी हो गया। हालांकि इस अवधि में दिहाड़ी व वेतन से आय का हिस्सा 32.2 फीसदी से बढ़कर 40.3 फीसदी हो गया है।

हालांकि इस अवधि के दौरान औसत ऋण का स्तर काफी हद तक स्थिर बना हुआ है। भारत 2047 के विकसित लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है। ऐसे में भारत के कृषि क्षेत्र पर गहन पुनर्विचार की आवश्यकता है। पैनल परिचर्चा ने इसे पूरा करने का वादा किया है।

First Published : March 26, 2024 | 11:22 PM IST