हरित ऊर्जा कंपनी रीन्यू की सह संस्थापक वैशाली निगम सिन्हा (बाएं), अंतरराष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा एजेंसी की उप महानिदेशक गौरी सिंह और नवीकरणीय ऊर्जा कंपनी अवाडा समूह के अध्यक्ष प्रशांत चौधरी ने अक्षय ऊर्जा क्षेत्र को निरंतर मिल रही चुनौतियों के बारे में बताया
BS Infra Summit 2025: भारत के अक्षय ऊर्जा क्षेत्र ने वृद्धि दर्ज की है लेकिन उसे निरंतर कई चुनौतियों को सामना करना पड़ रहा है। इन चुनौतियों में पूंजी की ऊंची लागत, हरित ऊर्जा उत्पादन और पारेषण में अंतर और भंडारण की अधिक लागत है। यह जानकारी इस उद्योग के प्रमुख प्रतिनिधियों ने बिजनेस स्टैंडर्ड के इन्फ्रास्ट्रक्चर समिट में एक परिचर्चा के दौरान दी।
पैनल में शामिल विशेषज्ञों में हरित ऊर्जा कंपनी रीन्यू की सह संस्थापक वैशाली निगम सिन्हा, अंतरराष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा एजेंसी की उप महानिदेशक गौरी सिंह और नवीकरणीय ऊर्जा कंपनी अवाडा समूह के अध्यक्ष प्रशांत चौधरी शामिल थे। बिजनेस स्टैंडर्ड के अशोक भट्टायार्च ने उद्योग के इन विशेषज्ञों के साथ बातचीत की।
सिन्हा ने नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन की कुछ बाधाओं का हवाला दिया और कहा, ‘हमें सूर्य की रोशनी वाले 300 से अधिक दिन मिलते हैं। लिहाजा सौर संयंत्र लगाने के लिए पर्याप्त संभावनाएं हैं लेकिन भूमि अधिग्रहण मुख्य मुद्दा है। भारत में पूंजी की लागत अधिक है और यह लागत वैश्विक संस्थाओं को इस क्षेत्र में अधिक निवेश से रोकती है। एक अन्य बाधा हमारी हरित ऊर्जा उत्पादन की गति पारेषण विकास से अधिक होना है।’
उन्होंने विस्तार से बताया कि देश को पारेषण और स्टोरेज नेटवर्क में अधिक निवेश करने की जरूरत है। सिंह ने कहा, ‘हम जैसे जैसे अधिक नवीकरणीय क्षमता जोड़ते हैं, वैसे ही हमें पारेषण और भंडारण निवेश में अधिक निवेश की जरूरत है। यदि कम लागत पर भंडारण समाधान उपलब्ध नहीं आए तो इससे आपूर्ति पक्ष की क्षमता बढ़ाने की कोशिशों में बाधा आएगी।’ सिंह ने बताया कि पूंजी औसत लागत बाधा है। मुद्रा की हेजिंग के जोखिम के कारण भी निवेशक देश में निवेश करने से दूर रहते हैं।
सिंह की तर्ज पर चौधरी ने कहा कि पूंजी की वेटेड लागत महत्त्वपूर्ण कारक है। इसके अलावा उन्होंने अन्य प्रमुख चुनौतियों में विकेंद्रीकरण और लोकतंत्रीकरण को बताया। भारत ने 2030 तक 500 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा का लक्ष्य रखा है। लेकिन अभी स्थापित आधार करीब 225 गीगावॉट है।
सिंह ने भंडारण की चुनौतियों के संदर्भ में विशेष तौर पर कहा कि देश को स्थानीय जरूरतों के अनुरूप हल ढूंढने की जरूरत है और उसे पड़ोसी देशों के साथ इसका कारोबार करने में भी समर्थ होना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘भारत में पंप स्टोरेज की अथाह संभावनाएं हैं। यह सोल्यूशन हमारे मौजूदा परिदृश्य में ढंग से कार्य कर सकता है।’ उन्होंने कहा कि पॉवर लोड को कम मांग के घंटों में शिफ्ट करने (जैसे वाशिंग मशीन का इस्तेमाल) पर प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। ऐसे में बिजली भंडारण की कम जरूरत होगी।
सिंह की तरह ही चौधरी ने कहा कि अभी भारत की पंप से स्टोरेज क्षमता 4.8 गीगावाट है जबकि देश की जरूरतें इससे कहीं अधिक हैं। उन्होंने कहा, ‘भारत के सिस्टम को भारी मात्रा में भंडारण की आवश्यकता है।’
सिन्हा ने कहा कि नवीकरणीय ऊर्जा के विकास में भंडारण प्रमुख कारक है और इस क्षेत्र में पहले से ही महत्त्वपूर्ण नवाचार हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि सरकार भंडारण तकनीकों के लिए धन मुहैया कराने को प्रोत्साहन दे रही है। इससे न केवल ग्रिड के साथ नवीकरणीय ऊर्जा को जोड़ने में मदद मिलेगी बल्कि दीर्घावधि में भारत का स्वच्छ ऊर्जा में परिवर्तन भी मजबूत होगा।
सिंह और सिन्हा दोनों ने नवाचार की जरूरत पर जोर दिया। इसी क्रम में सिन्हा ने कहा कि सुधार की गुंजाइश है। उद्योग के प्रतिनिधियों ने चुनौतियों और बाधाओं से हटकर कहा कि देश में नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाने में सहायक नीतिगत माहौल, लक्षित प्रोत्साहन और मजबूत राजनीतिक प्रतिबद्धता की जरूरत है। सिन्हा ने कहा, ‘चाहे पवन, सौर या हरित हाइड्रोजन की बात हो हमारी नीतिगत प्रगति मुद्दों के अनुरूप रही है। भारत में एक अनुकूल नीतिगत वातावरण रहा है और हमने अच्छी प्रगति की है।’