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देश में प्रोजेक्ट टाइगर की स्वर्ण जयंती मनाई जा रही है। इसी दौरान रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मैसूर में बाघों की गणना के नवीनतम आंकड़ों का अनावरण किया। ताजा आंकड़ों के अनुसार, भारत में बाघों की आबादी 2018 के 2,967 से बढ़कर 2022 में 3,167 हो गई।
प्रोजेक्ट टाइगर के 50 साल पूरे होने के उपलक्ष्य पर उद्घाटन सत्र के दौरान, प्रधानमंत्री ने कहा कि प्रोजेक्ट टाइगर की सफलता न केवल भारत के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए भी गर्व की बात है। उन्होंने कहा कि भारत ने अपनी आजादी के 75 साल पूरे कर लिए हैं वहीं, दुनिया की 75 प्रतिशत बाघ की आबादी भारत में है।
अगले 25 वर्षों में बाघों के संरक्षण की योजना का ब्योरा देते हुए उन्होंने एक पुस्तिका ‘अमृत काल का टाइगर विजन’ का विमोचन किया। उन्होंने ‘इंटरनैशनल बिग कैट अलायंस’ भी लॉन्च किया, जो दुनिया की सात प्रमुख बड़ी बिल्लियों की प्रजातियों-बाघ, शेर, तेंदुआ, हिम तेंदुआ, प्यूमा, जगुआर और चीता-की सुरक्षा और संरक्षण पर ध्यान देगा।
1 अप्रैल, 1973 को इंदिरा गांधी सरकार ने बाघ को राष्ट्रीय पशु घोषित किया और पूरे भारत में विशेष रूप से देश भर में बनाए गए बाघ अभयारण्यों में बाघों की आबादी के अस्तित्व को बनाए रखने और उनकी देखभाल सुनिश्चित करने के लिए एक केंद्रीय स्तर की प्रायोजित योजना, प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत की गई। इस पहल का उद्देश्य बाघों की आबादी में वृद्धि करना था जो 1970 के दशक के दौरान विलुप्त होने के कगार पर था। 1972 में भारत में सिर्फ 1,411 बाघ थे।
अनुमानों के अनुसार, 19वीं शताब्दी के अंत में भारत के जंगल में 40,000 बाघ थे। 20वीं शताब्दी में बड़े पैमाने पर शिकार करने के रुझान और उनके निवास स्थान के बरबाद होने के कारण भी उनकी संख्या में भारी गिरावट आई। नतीजतन, 1968 में बाघ के शिकार पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
जंगली जानवरों, पक्षियों और पौधों की रक्षा करने और पारिस्थितिकी और पर्यावरण सुरक्षा से संबंधित मुद्दों की जागरूकता के लिए सरकार ने वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 भी पारित किया।
जब प्रोजेक्ट टाइगर लॉन्च किया गया था तब 18,278 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैले नौ बाघ संरक्षित क्षेत्र थे। वर्तमान में, 75,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक के दायरे में करीब 53 बाघ अभयारण्य हैं। आज, 3,167 बाघों के साथ वैश्विक जंगली बाघों की आबादी का 70 प्रतिशत से अधिक भारत में है।
पिछले चार वर्षों में 2022 तक, इस परियोजना के तहत लगभग 1,047 करोड़ रुपये इस परियोजना के लिए आवंटित किए गए हैं। केंद्र द्वारा आवंटित बजट का लगभग 97 प्रतिशत भी जारी किया गया था।
प्रोजेक्ट टाइगर पर अमल किए जाने के पांच दशक के बाद भी अवैध शिकार, देश में बड़ी बिल्लियों की प्रजाति के लिए सबसे सामान्य खतरे की वजह बनी हुई है। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के वर्ष 2012 से 2022 तक के मृत्यु दर के आंकड़ों से पता चलता है कि इस अवधि के दौरान की गई जांच से अंदाजा मिला कि 762 बाघों की मौतों में से लगभग 55 प्रतिशत प्राकृतिक मौतें थीं और करीब 25 प्रतिशत मौत में अवैध शिकार की हिस्सेदारी थी। वहीं बाघों में मौत का तीसरा सबसे बड़ा कारण जब्ती (14 प्रतिशत) था। बाकी मौत के लिए अप्राकृतिक गैर-अवैध शिकार को जिम्मेदार ठहराया गया था।
अतिरिक्त वन महानिदेशक और एनटीसीए के सदस्य सचिव, एसपी यादव ने कहा कि भले ही बेहतर तकनीक और सुरक्षा तंत्र के कारण बाघों के अवैध शिकार में काफी कमी आई है, लेकिन यह वजह बाघों के लिए, इनकी रहने की जगहों के बरबाद होने और क्षरण के अलावा एक बड़ा खतरा बना हुआ है।
यादव ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘यूरिया के सेवन से भी बाघों की मौत हो सकती है। सभी बाघों की मौत को ‘शिकार’ की घटना माना जाता है, जब तक कि जांच में कुछ और साबित न हो।’ इस साल के पहले तीन महीनों में बाघों की मौत, तीन साल के उच्च स्तर पर है। भारत में प्रत्येक बाघ की मृत्यु दर का ब्योरा रखने के लिए जिम्मेदार एजेंसी एनटीसीए के आंकड़ों के अनुसार, 3 अप्रैल तक कुल 52 बाघों की मौत हो चुकी है।
इस वर्ष (2023) मासिक औसत मृत्यु दर लगभग 17 है, जबकि पिछले एक दशक में यह आंकड़ा 10 तक दर्ज किया गया था। इसके अलावा, 2012 से अब तक 1,157 बाघों की मौत हो चुकी है।
अगले 50 वर्षों के लिए प्रोजेक्ट टाइगर के उद्देश्य के बारे में पूछे जाने पर, यादव ने कहा, ‘हमारा लक्ष्य वैज्ञानिक तरीके से की गई गणना वाली क्षमता के आधार पर बाघों के आवास के अनुरूप ही बाघों की आबादी होनी चाहिए। मैं इसकी कोई संख्या नहीं बता रहा हूं क्योंकि हम देश में बाघों की संख्या को उसी गति से नहीं बढ़ा सकते क्योंकि इससे मनुष्यों के साथ उनके संघर्ष में वृद्धि होगी।’
पर्यावरण मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, जनवरी 2018 से जून 2021 की अवधि के दौरान बाघ के हमलों के कारण कुल 169 लोगों की मौतें भी दर्ज की गईं।