वित्तीय संकट में फंसी दवा निर्माता कंपनी वॉकहार्ट की ओर से मंगलवार को कॉरपोरेट ऋण पुनर्गठन (सीडीआर) करने की योजना का खुलासा होने के बाद कंपनी के शेयरों में करीब 11 फीसदी की गिरावट दर्ज की जा चुकी है।
कंपनी पर भारी कर्ज को देखते हुए वॉकहार्ट को कर्ज पुनर्गठन का फैसला लेना पड़ा। इसके साथ ही कंपनी को कर्ज का भुगतान करने के लिए अपनी कुछ संपत्तियां भी बेचनी पड़ सकती हैं। कंपनी के पास भारत और विदेश में भी संपत्तियां हैं, लेकिन बाजार की मौजूदा स्थिति को देखते हुए उचित मूल्य पर खरीदार तलाशने में कंपनी को दिक्कत आ सकती है।
क्रिसिल के मुताबिक, 31 दिसंबर, 2008 तक कंपनी पर करीब 3,777 करोड़ रुपये का कर्ज है, जिनमें से 60 फीसदी कर्ज का भुगतान अगले दो सालों में करना है। ऐसे में कंपनी को पैसे की व्यवस्था करने में भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।
कितना है बकाया?
कंपनी ने 31 दिसंबर, 2008 में बताया था कि उसके पास 340 करोड़ रुपये की नकदी है। उसके बाद कंपनी ने हाल ही में भारतीय स्टेट बैंक से 100 करोड़ रुपये का कर्ज लिया है। जहां तक शॉर्ट टर्म ब्याज के भुगतान की बात है, तो कंपनी पर 55 करोड़ रुपये का बकाया है, जिसमें किसी तरह की कोई परेशानी है।
लेकिन सितंबर 2009 तक कंपनी को एफसीसीबी को 1,324 करोड़ रुपये का भुगतान करना है। इसके साथ ही 2010 तक कंपनी को और 1,048 करोड़ रुपये का कर्ज चुकाना है। इससे कंपनी के खाते पर दबाव बना हुआ है। विश्लेषकों का मानना है कि कंपनी पर कर्ज का बोझ पिछले दो सालों में किए गए अधिग्रहण की वजह से है। कंपनी ने इस दौरान करीब 2,000 करोड़ रुपये में दो यूरोपीय कंपनियों का अधिग्रहण किया है।
कैसे होगा पैसों का जुगाड़?
कंपनी सीडीआर की योजना बना रही है। इसके तहत कंपनी तरजीही शेयरों के जरिए करीब 500 करोड़ रुपये की व्यवस्था करेगी, जिसकी अनुमति जनवरी में ही शेयरधारकों से मिल गई है। इसके साथ ही कंपनी अपनी नॉन कोर संपत्तियों की बिक्री के जरिए रकम की व्यवस्था करेगी।
सितंबर में कंपनी को करीब 1,324 करोड़ रुपये का भुगतान करना है, जिसके लिए उसे अपनी परिसंपत्तियों की बिक्री या फिर निवेशकों से धन की व्यवस्था करनी पड़ेगी। इसके लिए कंपनी को रणनीतिक साझेदार की तलाश करनी होगी और अपने कुछ शेयर बेचने होंगे।
विश्लेषकों का कहना है कि घरेलू बाजार में कंपनी ने 2003-07 के दौरान 17 फीसदी की दर से विकास किया है। ऐसे में जानकारों का कहना है कि कंपनी अपनी विदेशी कारोबार का कुछ हिस्सा बेच सकती है। बाजार में इस बात को लेकर काफी चर्चा हो रही है कि कंपनी को इस संकट से बचाने के लिए प्रवर्तक किस तरह का कदम उठाते हैं।
इस बात की संभावना भी जताई जा रही है कि प्रर्वतक वॉकहार्ट हॉस्पिटल, जिसमें उनकी हिस्सेदारी 100 फीसदी है, के कुछ शेयर बेच सकते हैं। हालांकि मौजूदा बाजार की स्थिति को देखते हुए कहा जा रहा है कि अगर प्रवर्तक वॉकहार्ट हॉस्पिटल की 49 फीसदी हिस्सेदारी बेचते हैं, तो उन्हें केवल 800 करोड़ रुपये ही मिलेंगे। जबकि 2008 में इसकी मार्केट वैल्यू 2,300 करोड़ रुपये आंकी गई थी।
निष्कर्ष
कंपनी की बिक्री 2008 के कैलेंडर वर्ष में 3,500 करोड़ रुपये रही, जबकि परिचालन मुनाफा 810 करोड़ रुपये आंका गया। हालांकि कंपनी को फॉरेक्स में काफी नुकसान उठाना पड़ा है।
ऐसे में कंपनी के शेयरों में भारी गिरावट देखी जा रही है। साथ ही निवेशकों और अन्य स्रोतों से भी कंपनी को फंड की व्यवस्था करने में परेशानी आ रही है। इसके बावजूद अगर कंपनी मौजूदा सकंट को झेल लेती है, तो इसमें कम से कम दो साल के निवेश पर अच्छा रिटर्न मिलने की उम्मीद है।