डाउ की थ्योरी का जादू है बरकार

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 10, 2022 | 10:04 PM IST

चार्ल्स डाउ ने काफी पहले डॉउ इंडेक्स (डीजेआईए) में होने वाले उतार-चढ़ावों के बारे में कागज के टुकड़ों में पर बताया था।
बाद में, रॉबर्ट रिया ने उन कागज के टुकड़ों को एक जगह किया और उसे नाम दिया, ‘डाउ थ्योरी’। इसी के बाद बाजार के अध्ययन से संबंधित कई सिध्दांत और तरीके आए।
हालांकि, 125 सालों के बाद भी बाजार के बारे तकनीकी ज्ञान देने वाले किसी भी किताब के शुरुआती पन्नों पर आपको यह थ्योरी देखने को मिल सकती है। हमने भी बतौर स्टूडेंट इस थ्योरी का अध्ययन किया है और अपनी बात के पक्ष में इसका उल्लेख किया है। हालांकि आज हम इसे नकारना चाहते हैं।
जी नहीं, इस थ्योरी में कुछ गलत नहीं है और न ही हमने इसका सहारा लेना छोड़ दिया है। लेकिन वो कहते हैं न, वक्त सबकुछ बदल देता है। मैं नहीं जानता कि अगर चार्ल्स अगर आज जिंदा होते, तो इस लेख के बारे में उनकी क्या राय होती। वाल स्ट्रीट जर्नल के उस बेहद शांत स्वभाव वाले संपादक ने ही तो हम वह सब कुछ सिखाया है, जो आज हम जानते हैं। उन्होंने सचमुच दुनिया बदल दी थी।
ट्रेंड्स की दुनिया
हम एक ट्रेंड पर आधारित दुनिया में रहते हैं। आज आर्थिक, बुनियादी, स्वाभाविक, सांस्कृतिक, आंकड़ों और वैज्ञानिक टे्रंड हमारे आस-पास में हैं। डाउ थ्योरी में भी टे्रंड्स की चर्चा है।
हम जैसे तकनीकी ज्ञान रखने वाले लोगों को इन्हीं ट्रेंड्स को खत्म करने से पहले उन्हें पहचाने, जानने और उनकी आलोचना कैसे की जाए, यही सीखाया जाता है। ट्रेंड का मतलब होता है पक्ष। ऊपर चढ़ने वाले ट्रेंड का मतलब होता है, सकारात्मक पक्ष। वहीं नीचे जाते ट्रेंड का मतलब होता है, नकारात्मक पक्ष।
डाउ की इस आसान सी थ्योरी भी इन्हीं पक्षों को जन्म देती है। उनका कहना था कि बाजार तीन स्तर पर आगे बढ़ता है, संचयन (एक्यूम्यूलेशन), अटकलबाजी (स्पेक्यूलेशन) और वितरण (ड्रिस्टीब्यूशन)। उन्होंने मूल्यों के ट्रेंड को तीन स्तरों पर बताया, प्राइमरी, सैंकडरी और माइनर। उन्होंने अपने काम को काफी स्पष्ट रूप से समझाया। इसे आप तस्वीर एक में देख सकते हैं।
पक्ष, मतलब?
डाउ की थ्योरी का पहला हिस्सा यह बताता है कि कीमत, उम्मीद और सूचनाओं के जरिये ही चढ़ती है। अगर सूचना को कीमतों ने सकारात्मक और नकारात्मक रूप में लिया, तो आप यह मान सकते हैं कि यह सिध्दांत कीमतों में पक्ष की राजनीति को समझाता है। इससे एक तीन पैरों वाले ढांचे की उत्पत्ति होती है।
कट्टरपंथियों की मानें तो यह कीमतों पर सूचनाओं के असर को बताता है। किसी पक्ष का कीमतों पर कितना असर पड़ेगा, यह कहना काफी मुश्किल है। लेकिन इस थ्योरी ने हमें यह समझने का मौका दिया। यहां बड़ा पक्षपात है, छोटा  पक्षपात है और छोटे से छोटा पक्षपात है।
अब तो कीमतों में ट्रेंड दिनों नहीं, बल्कि सालों तक चलने लगे हैं। साफ दिखता है कि अब पक्षपात का भी ध्रुवीयकरण हो चुका है। हालांकि, अपनी सादगी और कारगर होने की काबिलियत होने की वजह से ही इसकी आलोचना भी हो रही है।
समय बड़ा बलवान
इसी बात की तो चर्चा हम यहां करना चाहते थे। आखिर क्यों इस थ्योरी ने हमें यह बताने में इतनी देर की कि डाउ दूसरी तरफ से भी बात कर रहे थे? आखिर इसने पहले क्यों नहीं बताया कि ट्रेंड तब तक मौजूद रहते हैं, जब तक कि उनके खत्म होने मजबूत सबूत नहीं मिल जाएं?
आखिर किसी ट्रेंड को खत्म होते वक्त उसे संदेह का लाभ क्यों दिया? इस भ्रम का असल कारण यह है कि चार्ल्स डाउ ने अनजाने में ही समय को भी अपनी थ्योरी का एक हिस्सा बना लिया। दिक्कत यह हुई कि उन्होंने इस तरफ ध्यान नहीं दिया। तस्वीर एक में इसी तीन स्तर वाले ढांचे को दिखाया गया है, लेकिन इसके नीचे किसी का पक्ष नहीं लेने वाले समय चक्र को दिखाया गया है।

First Published : March 29, 2009 | 11:38 PM IST