‘अभी तो असली अर्थव्यवस्था पर असर दिखना बाकी है’

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 08, 2022 | 1:42 AM IST

वैश्विक वित्तीय संकट की वजह से एक साल से भी कम समय में निवेशकों की खरबों डॉलर की संपत्ति को चूना लगा है।


भारत समेत कई देश इस मंदी की चपेट में आए हैं। वैश्विक संकट, भारत, बाजार और आर्थिक संभावनाओं पर इसके प्रभाव पर विशाल छाबड़िया और जितेन्द्र कुमार गुप्ता ने ब्लैकस्टोन ग्रुप की वरिष्ठ प्रबंध निदेशक पुनीता कुमार सिन्हा से बातचीत की।

पुनीता जुलाई, 1997 से इंडिया फंड और जून, 1999 से द एशिया टाइगर्स फंड का प्रबंधन संभाल रही हैं। 30 सितंबर को इन दोनों फंडों की संयुक्त परिसपंत्ति 1.37 अरब डॉलर आंकी गई थी।

कई देशों के केंद्रीय बैंकों ने वित्तीय व्यवस्था में खरबों डॉलर झोंक रखे हैं, लेकिन बाजार में हालात सकारात्मक नहीं रह गए हैं। वैश्विक वित्तीय संकट के बारे में आपका क्या आकलन है और निवेशकों को अभी कितना दंश और झेलना पड़ेगा?

अभी हम सिर्फ वित्तीय व्यवस्था पर ध्यान दे रहे हैं और मेरा मानना है कि वास्तविक अर्थव्यवस्था पर इसका असर महसूस किया जाना अभी बाकी है। पूरी दुनिया में विकास के आंकड़ों में गिरावट देखी जा सकती है। हालांकि कई स्तरों पर इसका असर अभी महसूस नहीं किया गया है, लेकिन इसका एक बड़ा हिस्सा शेयर बाजारों में पहले ही मंदी की चपेट में आ चुका है।

वैश्विक अर्थव्यवस्था, खासकर अमेरिका और यूरोप की अर्थव्यवस्था, के बारे में आपका क्या विचार है और भारत समेत पूरी दुनिया पर इसका कितना असर पड़ेगा ?

मेरा मानना है कि खासकर निर्यात आधारित अर्थव्यवस्थाएं और ज्यादा घरेलू खपत के लिए अपने आर्थिक मॉडलों में बदलाव करेंगी। ये अर्थव्यवस्थाएं अमेरिका पर अपनी निर्भरता कम कर अन्य देशों को अपने निर्यात पर ध्यान केंद्रित करेंगी। उस स्थिति में, कुछ उभरते बाजार, खासकर चीन का निर्माण क्षेत्र, काफी प्रभावित होंगे।

मेरा मानना है कि निर्यात पर कम निर्भर रहने वाले देश मौजूदा माहौल में अच्छी स्थिति में बने रहेंगे। लेकिन भारत जैसे देशों की सरकारें भी घरेलू अर्थव्यवस्थाओं को बेहतर बनाने की कोशिश करेंगी। हमें ब्याज दरों और मंहगाई दर में कमी लाने की तरफ भी देखना होगा। मेरा मानना है कि आर्थिक मंदी से जूझ रहा भारत यदि पूंजी का प्रबंधन करने या इसे हासिल करने में सफल हो जाता है तो यह देश अपनी विकास दर को भी प्रबंधित कर सकता है।

पूंजी बाजार के चक्र में भारत कहां पर है ? भारतीय उद्योग जगत की पूंजी बाजार योजना फंड के अभाव में या फिर महंगे कर्ज की वजह से प्रभावित होगी। इस बारे में आपकी क्या राय है?

मेरा मानना है कि अब हमने भारत के पूंजी बाजार चक्र, खासकर निर्माण क्षेत्र में, मंदी दर्ज करनी शुरू कर दी है। पूंजी निवेश और ऋण में कमी आने से प्रस्तावित कोष पर नकारात्मक असर पड़ा है। विदेशी संस्थागत निवेश (एफआईआई) की मात्रा में भी गिरावट आई है जिससे इक्विटी बाजारों से पूंजी जुटाना और कठिन हो गया है।

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में भी कमी आई है। ऋण भुगतान में कमी आने से कई निवेश परियोजनाओं में बाधा पहुंची है। लघु एवं मझोले उद्योग (एसएमई) और कुछ खास रिटेल ग्राहकों को उधार देने में बैंक सतर्कता बरत रहे हैं। आरबीआई ने हाल के सप्ताहों में ऋण लागत में कमी की है और मुझे विश्वास है कि हम भविष्य में कुछ राहत महसूस करेंगे।

First Published : October 26, 2008 | 11:02 PM IST