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  वित्त-बीमा  तरलता के मुकाबले बढ़त की रफ्तार में नरमी बड़ा जोखिम!
वित्त-बीमा

तरलता के मुकाबले बढ़त की रफ्तार में नरमी बड़ा जोखिम!

बीएस संवाददाता बीएस संवाददाता —October 3, 2021 11:37 PM IST
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बीएस बातचीत

भारत में बीएनपी पारिबा के प्रमुख (वैश्विक बाजार) आशुतोष टिकेकर का कहना है कि भारतीय बाजार में ताजा तेजी के लिए सिर्फ अन्य देशों में संरचनात्मक समस्याओं को कारण बताना उचित नहीं होगा। उन्होंने समी मोडक के साथ एक साक्षात्कार में कहा कि बाजार के लिए दो बड़े जोखिम हैं रिकवरी की धीमी रफ्तार और कोषों की लागत में वृद्घि। पेश हैं उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंश:
खासकर, अगस्त से भारतीय बाजार में तेजी के बारे में आपका क्या नजरिया है?
हमारा मानना है कि जमीनी आधार पर सुधार, अनुकूल सरकारी नीतियां, केंद्रीय बैंक की सक्रियता, ऊंची टीकाकरण दर, और अन्य उभरते देशों में संरचनात्मक समस्याएं भारतीय बाजार के अच्छे प्रदर्शन की मुख्य वजह हैं। भारत ने आय अनुमानों में सुधार, कई आपूर्ति संबंधित नीतिगत बदलाव दर्ज किए हैं और आरबीआई से तरलता सहायता भी हासिल की है। विभिन्न संकेतकों से वित्त वर्ष 2022 और वित्त वर्ष 2023 में निरंता सुधार का संकेत पता चलता है। उदाहरण के लिए, संपत्ति क्षेत्र की बिक्री में तेजी का अर्थव्यवस्था पर बड़ा सकारात्मक असर पड़ सकता है, जिससे इस्पात, सीमेंट, पेंट, टाइल्स और अन्य निर्माण सामग्री के लिए मांग बढ़ सकती है। इसके अलावा, हमें कॉरपोरेट पूंजीगत खर्च योजनाओं में सुधार आने की भी संभावना है। कोविड की दूसरी लहर के बावजूद वित्त वर्ष 2022 की पहली तिमाही में कई प्रवर्तक अपनी ऋण देनदारी जरूरतें पूरी कर सकते हैं। इसे बैंकिंग व्यवस्था के लिए भी अच्छा संकेत माना जा सकता है।
चीन के बाजारों के संदर्भ में नकारात्मक निवेशक धारणा से अन्य बाजारों, खासकर भारत को क्या फायदा हो सकता है?
अन्य बाजारों में नकारात्मक धारणा से बड़ी मदद मिलती है। निवेशक धारणा मजबूत बनाए रखने के लिए कंपनी के संरचनात्मक कारकों पर ध्यान देना जरूरी होगा। यदि किसी खास देश का बुनियादी आधार मजबूत नहीं दिखता है तो निवेशकों के पास हमेशा डेट या अपेक्षाकृत सुरक्षित परिसंपत्ति वर्ग में बने रहने का विकल्प होता है। भारत की ताजा तेजी के लिए अन्य देशों में संरचनात्मक समस्याओं को श्रेय देना सही नहीं होगा। भारत में निवेशक धारणा आय अपग्रेड और अनुकूल मूल्यांकन की वजह से सकारात्मक है। वित्त जैसे क्षेत्र अभी भी औसत मूल्यांकन पर कारोबार कर रहे हैं, जिसका मतलब है कि भविष्य में रंटिंग में बदलाव की संभावना बरकरार है।

अगले 6-12 महीनों में मुख्य जोखिम क्या हैं?
दो बड़े जोखिम हैं कमजोर रिकवरी और मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखने के लिए केंद्रीय बैंक के कदम की वजह से कोषों की लागत बढऩा। जोखिमपूर्ण परिसंपत्तियों में तरलता आकर्षित करने की संभावना होती है और इस संबंध में कोई बड़ा बदलाव जोखिमपूर्ण हो सकता है। जब आप पिछले समय को देखते हैं तो इसकी और ज्यादा पुष्टि होती है। किसी गिरावट की शुरुआत सामान्य तौर पर तरलता आधारित घटनाक्रम होता है, जिससे कुछ कंपनियों द्वारा चूक की वजह से कुछ महीनों में व्यवस्थित जोखिम को बढ़ावा मिलता है। भारत के संदर्भ में, आईएलऐंडएफएस ऐसे पिछला घटनाक्रम था, जिसमें एनबीएफसी/एचएफसी के सामने एक बड़ा संकट पैदा हो गया था।  इस समय कई बड़ी कंपनियां कम कर्ज-इक्विटी या ज्यादा पूंजी पर्याप्तता के साथ बेहतर स्थिति में हैं। मेरा मानना है कि इस समय उम्मीद से धीमी रिकवरी बड़ा जोखिम हो सकती है।

अमेरिकी फेडरल की बैठक के बारे में आपकी क्या प्रतिक्रिया है?
हमारा मानना है कि फेडरल ने अपनी हालिया बैठक में नवंबर तक रियायत वापस लेने की दिशा में ज्यादा उत्साहित दिखा है। फेडरल ओपन मार्केट कमेटी (एफओएमसी) ने नए कोविड-19 मामलों की वजह से गतिविधि और रोजगार में नरमी दर्ज की है और उसने अपना मुद्रास्फीति अनुमान बढ़ाया है। हमें पहली दर वृद्घि वर्ष 2022 की चौथी तिमाही में होने की संभावना है।

नीतियों को सामान्य बनाने का शेयरों, बॉन्डों और मुद्राओं पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
ज्यादा निवेशकों पर नीति सामान्यीकरण का असर पहले ही दिख चुका है। कई वृहद संकेतक कोविड-पूर्व स्तरों पर लौट आए हैं। इसलिए, यह तर्कसंगत है कि केंद्रीय बैंक की नीतियों को धीरे धीरे सामान्य बनाया जाएगा। यदि केंद्रीय बैंकों को लगेगा कि वृद्घि की रफ्तार प्रभावित हो रही है तो वे योजनाओं पर अपनी सख्ती घटा सकते हैं या फिर से ढील दी जा सकती है।

आरबीआईआशुतोष टिकेकरजोखिमतरलताबीएनपी पारिबारिकवरी
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