‘मंदी का दौर लौट कर वापस जरूर आएगा’

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 10, 2022 | 10:04 PM IST

यह मंदड़ियों से भरे बाजार का एक छलावा भर है या फिर अच्छे दिन सचमुच वापस लौटकर आ चुके हैं। इसका जबाव सीएलएसए एशिया पैसिफिक में ग्लोबल मैक्रो स्टैटेजिस्ट रसेल नैपियर से बेहतर कौन दे सकता था?
रसेल ने अपनी किताब ‘एनाटॉमी ऑफ बियर’ में मंदी से त्रस्त बाजार और उसके विभिन्न चरणों के बारे में विस्तार से बताया है। इस बाजार में 1921, 1932, 1949 और 1982 के तेजी से गिरते बाजारों के बारे में काफी अच्छी तरह से समझाया गया है। इस किताब को मैक फैबर ने ‘एक जबरदस्त किताब, जिसे जरूर पढ़ा जाना चाहिए’ की संज्ञा दी थी।
उनकी मंदी से त्रस्त बाजारों को पहचानों की क्षमता की वजह से कई लोगों के लाखों-करोड़ों डॉलर बचे हैं। साथ ही, उनमें बाजार में सुधार की बयार को पहचानने की भी अद्भुत क्षमता है। सुधार की मौजूदा बयार के बारे में उनसे हमारे संवाददाता जितेंद्र कुमार गुप्ता ने विस्तार से बात की।
आप वैश्विक बाजार में हाल के दिनों में हुए सुधारों के बारे में क्या कहना चाहेंगे?
लीमन ब्रदर्स के दिवालिया होने के बाद बाजार तेजी से गिरा था। इसके बाद नकदी की कमी का ग्रहण लग गया। इसके बाद कीमतों का गिरना शुरू हुआ। लेकिन अब माहौल बदल चुका है। दुनिया भर में सरकारों के कदमों की वजह से लोगों ने कहना शुरू कर दिया है कि हमारे यहां कीमतें ज्यादा तेजी से कम नहीं हो रही हैं।
सरकारी कदमों की वजह से जोखिम कम हुए हैं और इक्विटी ऊपर जा रही है। जहां तक भारत की बात है, तो मैं अच्छा तभी महसूस करुंगा जब कंपनियां अगले साल अपने उत्पादों को ऊंची कीमत पर बेच रही होंगी। इस स्तर पर इक्विटी की कीमत काफी कम है।
साथ ही, भारत भी कीमतों के कम होने के खतरे से जूझ रहा है। लेकिन मेरी मानें तो यही सही वक्त जब भारत में इक्विटी खरीदी जाए। जाहिर सी बात है कि अगर अमेरिकी शेयर बाजार चढ़ेंगे, तो इससे भारतीय शेयर बाजारों को भी सहारा मिलेगा।
मंदड़ियों से भरे इस बाजार की तुलना पहले के गिरते बाजारों से कैसे की जाए? साथ ही, हम आज कहां खड़े हैं?
अब तक सिर्फ एक ही बात अलग हुई है और वह है कम मूल्यांकन। अगर पिछले चार मंदी के मौकों और उनके मूल्यांकन अनुपात और साइक्लिक एडजस्टेड प्राइस अर्निंग्स (केप) को देखें तो अब तक बाजार उस स्तर तक नहीं पहुंचा है, जहां वह 1921, 1949 और 1982 में पहुंच गया था। यही है सबसे बड़ा अंतर। मैं अब भी मानता हूं कि बाजार तेजी से ऊपर आएगा।
गिरावट का बाजार अब तक लंबे वक्त तक चला है। इस दौरान कभी-कभी बाजार चढ़ता भी है और मंदी के दौर में तो वह उस स्तर पर लंबे वक्त तक रह सकता है।
लेकिन क्या इस बार भी संकेत उसी तरह के हैं?
बिल्कुल। मंदी का यह दौर शायद 2014 में खत्म होगा। इसलिए बीच-बीच में हमें बाजार चढ़ता हुआ दिख सकता है। बड़ी बात यह है कि जब बाजार में कीमतें कम होने के बाजाए चढ़ने लगेंगी तो इक्विटी ऊपर जा सकती है। बदलाव आ रहा है और आपको इक्विटी की खरीदारी शुरू कर देनी चाहिए। इसकी तीन वजहें हैं।
अमेरिका में पिछले कुछ दिनों के दौरान तांबे की कीमत, सरकारी प्रतिभूतियों की कीमत और कॉर्पोरेट बॉन्ड्स की कीमत में इजाफा होने लगा है। इसका मतलब यह हुआ कि बाजार अगले कुछ सालों तक ऊपर चढ़ता हुआ दिखाई दे सकता है।
आखिरी बार बाजार में तेजी का दौर 2003 से लेकर 2007 के दौरान था। लेकिन मैं यह भी नहीं मानता कि मंदड़ियों का बाजार पर से कब्जा छूट गया है। मेरा मानना है कि वे वापस लौटेंगे और अपने साथ लाएगें, मंदी का तूफान। मंदी का यह तूफान, आज की आंधी से भी भयावह होगा। इसके बाद इक्विटी को वापस 1921, 1932, 1949 और 1982 के स्तर पर ही पहुंचना है।
इसका भारतीय बाजारों पर क्या असर होगा?
मैं एशिया को एक बड़े स्तर पर देखता हूं। लेकिन मुझे सबसे ज्यादा उम्मीदें अमेरिका से हैं। मेरी मानें तो यूरोप के सामने अभी कई मुश्किलें आएंगी। भारत निर्यात को देखते हुए दूसरे मुल्कों पर इतना ज्यादा निर्भर नहीं है। मेरी राय भारतीय शेयर बाजारों के खिलाफ नहीं, बल्कि उनके साथ है। लेकिन हम अमेरिका के सुधरने की रफ्तार को देख हैरान हो जाएंगे।

First Published : March 29, 2009 | 11:31 PM IST