भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बैंकों और अन्य विनियमित संस्थाओं से संबंधित सभी नियम-कायदों की हर 5 से 7 साल में समीक्षा करने के लिए नियामकीय समीक्षा प्रकोष्ठ गठित किया है। केंद्रीय बैंक के इस कदम का उद्देश्य बैंकों और उसके नियमन के दायरे में आने वाली अन्य संस्थाओं के मानदंडों की समीक्षा के लिए संस्थागत तंत्र को सुदृढ़ बनाना है। नियामक समीक्षा प्रकोष्ठ या सेल (आरआरसी) 1 अक्टूबर से प्रभावी होगा।
बैंकिंग नियामक ने कहा, ‘नियामक समीक्षा प्रकोष्ठ का काम आरबीआई द्वारा जारी सभी नियमों की हर 5 से 7 वर्षों में व्यापक और व्यवस्थित तरीके से आंतरिक स्तर पर समीक्षा करना होगा।’ नियामक समीक्षा प्रकोष्ठ का गठन विनियमन विभाग के तहत किया जाएगा जो चरणबद्ध तरीके से नियमों की समीक्षा करेगा।
इसके अलावा विनियमन पर एक स्वतंत्र सलाहकार समूह (एजीआर) का भी गठन किया गया है जिसमें आरबीआई से बाहर के विशेषज्ञ शामिल हैं। इसका मकसद समीक्षा प्रकोष्ठ के माध्यम से विनियमों की आवधिक समीक्षा में उद्योग की प्रतिक्रिया को शामिल करना है। इस छह सदस्यीय समूह का नेतृत्व भारतीय स्टेट बैंक के प्रबंध निदेशक राणा आशुतोष कुमार सिंह करेंगे। सलाहकार समूह बनाने का उद्देश्य नियामक प्रक्रिया में हितधारक की भागीदारी को मजबूत करना और निरंतर आधार पर उद्योग की विशेषज्ञता का लाभ उठाना है।
रिजर्व बैंक ने कहा, ‘स्वतंत्र सलाहकार समूह अगर उपयुक्त समझे तो इसमें अतिरिक्त विशेषज्ञों को भी शामिल करने का प्रावधान होगा। इसका शुरुआती कार्यकाल तीन साल का होगा जिसे दो साल के लिए बढ़ाया जा सकता है।’
इस साल मई में केंद्रीय बैंक ने विनियम बनाने और उसमें संशोधन के लिए व्यापक सिद्धांतों को निर्धारित करने वाला एक ढांचा पेश किया था। इसमें प्रस्तावित किया गया था कि किसी भी विनियम को जारी करने से पहले जहां तक संभव हो, उसके प्रभाव का विश्लेषण किया जाना चाहिए। यह भी प्रस्ताव था कि आरबीआई को हितधारकों तथा आम लोगों को अपनी टिप्पणी के लिए कम से कम 21 दिन का समय देना चाहिए।