राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) की टीयर-1 (बुनियादी सेवानिवृत्ति खाता) की इक्विटी योजनाओं ने पिछले एक वर्ष में औसतन 62 प्रतिशत प्रतिफल दिया है। यह आंकड़ा निवेशकों को आकर्षित करने की क्षमता रखता है। इसके अलावा, जल्द ही एनपीएस में कुछ और खूबियां जोड़ी जाएंगी, जिनसे लोगों के बीच इसकी लोकप्रियता और बढ़ जाएगी।
परिसंपत्ति आवंटन से नहीं हटे ध्यान: एनपीएस की टीयर-1 इक्विटी योजनाओं से अर्जित प्रतिफल पिछले एक वर्ष के दौरान निफ्टी के प्रतिफल (61.7 प्रतिशत) के लगभग बराबर है। इसमें आश्चर्य की बात नहीं है। वैसे तो पेंशन फंड मैनेजर सक्रिय तौर पर फंड प्रबंधन करने के लिए स्वतंत्र होते हैं, लेकिन वे अक्सर निफ्टी सूचकांक की देखादेखी करते हैं। आनंद राठी की प्रमुख झरना अग्रवाल कहती हैं, ‘ऐसा नहीं है कि एनपीएफ फंडों ने बहुत अधिक प्रतिफल दिया है। ओपन-एंडेड इक्विटी म्युचुअल फंडों ने इनसे अधिक प्रतिफल दिया है।’ बड़े शेयरों में निवेश करने वाले फंडों (लार्ज-कैप फंड) ने 39-64 प्रतिशत (औसतन 56.5 प्रतिशत) प्रतिफल दिया है। मिड-कैप फंडों का प्रदर्शन भी (64.4-109.8 प्रतिशत, औसतन 79.9 प्रतिशत) बेहतर रहा है।
एनपीएस से निवेशकों को उतना ही प्रतिफल मिला है जितना निफ्टी 50 इंडेक्स फंड (डायरेक्ट योजनाओं का औसत प्रतिफल 59.4 प्रतिशत) में निवेश से उन्हें प्राप्त हुआ होता। एनपीएस में शेयरों में निवेश बढ़ाने से बचें। निवेश एवं कर सलाहकार कंपनी फिंटू के संस्थापक मनीष पी हिंगर कहते हैं, ‘जोखिम उठाने की अपनी क्षमता का ध्यान रखते हुए ही शेयरों में निवेश करें। केवल एक वर्ष के प्रतिफल के आधार पर निवेश बढ़ाने की जल्दबाजी नहीं दिखाएं।’
पिछले प्रतिफल पर नहीं टिकाएं अधिक ध्यान : जिन लोगों ने एनपीएस में निवेश नहीं किया है उन्हें केवल पिछले प्रतिफल को देखते हुए इसमें नहीं कूदना चाहिए। पहले उन्हें नफा-नुकसान का आकलन कर लेना चाहिए। एनपीएस के साथ कुछ अच्छी बाते हैं जो निवेशकों को रास आती है। पहली बात, इसमें फंड प्रबंधन फीस कम (0.03-0.09 प्रतिशत) होती है। एनपीएस में निवेश से निवेशकों को सेवानिवृत्ति के समय एक बड़ी रकम मिलती है और एक नियमित आय का भी बंदोबस्त हो जाता है। दूसरी बात, आयकर अधिनियम की धारा 80सीसीडी (1बी) के तहत एनपीएस में 50,000 रुपये तक कर छूट का लाभ मिलता है। निवेश आवंटन में फेरबदल भी कर मुक्त होती है। हालांकि लाभ के साथ एनपीएस में कुछ शर्तें भी होती हैं। निवेशकों की रकम एक लंबे समय तक के लिए इसमें अटक जाती है, भले ही बाद में एक मोटी रकम ही क्यों न मिले। सेवानिवृत्ति के समय एनपीएस निवेशकों को कोई ढील नहीं देती है और उन्हें कुल जमा कोष का 40 प्रतिशत हिस्सा एन्युटी में अनिवार्य तौर पर डालना पड़ता है। लिहाजा, अगर आप 30 प्रतिशत कर श्रेणी में आते हैं तो एनपीएस में निवेश कर सकते हैं। इसके अलावा, रकम भरपूर है और एनपीएस में निवेश करने के बाद भी आपके दूसरे निवेश प्रभावित नहीं होते हैं तो इस पर दांव लगाने में कोई हर्ज नहीं है। अंत में, यह भी देख लें कि सेवानिवृत्ति से पहले आपको एक बड़ी रकम की दरकार तो नहीं है। अब उन नई खूबियों का जिक्र करते हैं जो एनपीएस में जोड़ी जाएंगी।
सिस्टमैटिक विदड्रॉल प्लान (एसडब्ल्यूपी): पेंशन फंड नियामक एवं विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) के चेयरमैन ने हाल में कहा था कि सेवानिवृत्ति के समय एन्युटी में निवेश करने के बजाय निवेशकों को एसडब्यूपी का विकल्प दिया जाएगा। हालांकि इसके लिए कानून में संशोधन की जरूरत होगी। एन्युटी का एक बड़ा लाभ यह होता है कि इससे ताउम्र आय की व्यवस्था हो जाती है। एसडब्ल्यूपी के जरिये निवेशकों को हरेक महीने आवश्यकतानुसार रकम निकालने की अनुमति दी जाएगी। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के पास पंजीकृत निवेश सलाहकार कंपनी पर्सनल फाइनैंस के संस्थापक दीपेश राघव कहते हैं, ‘एसडब्यूपी का सबसे बड़ा जोखिम यह है कि सेवानिवृत्त हो चुके लोग अपना कोष खाली करते रहेंगे और बाद में उनके कुछ नहीं बचेगा।’ कितनी रकम निकाली जाए यह तय कर आसान नहीं है क्योंकि हरेक के जीवन की अवधि अलग-अलग होती है। अगर ऐसा नौबत आ जाए जिससे बाजार में गिरावट वाले वर्ष में अधिक रकम निकालनी पड़े तो निवेशक को तगड़ा नुकसान हो जाएगा और इसकी भरपाई भी नहीं हो पाएगी।
महंगाई से जुड़ी एन्युटी: इस समय एन्युटी सेवानिवृत्त व्यक्ति को जीवन भर एक निश्चित रकम देती है। हालांकि महंगाई की वजह से इसका महत्त्व समय के साथ कम होता जाता है। इस लिहाज से महंगाई दर के अनुपात में समायोजित एन्युटी एक तरह से वरदान साबित होगी। राघव कहते हैं, ‘हालांकि ऐसी योजनाओं में शुरुआत में प्रतिफल दर सामान्य एन्युटी के मुकाबले कम रहेगी।’
5 लाख रुपये कोष तक निकासी: 5 लाख रुपये तक कोष वाले निवेशक (पूर्व में 2 लाख रुपये)सेवानिवृत्ति के समय पूरी रकम निकाल पाएंगे।
