बैंक जमा पत्रों (सीडी) में म्युचुअल फंड (एमएफ) उद्योग का निवेश अक्टूबर से करीब चार गुना बढ़ा है। अक्टूबर में यह निवेश महज 48,576 करोड़ रुपये था, वहीं पिछले महीने के आखिर उद्योग के कारोबारियों का कहना है कि बैंकों ने ऋण उठाव में तेजी के बीच हाल के महीनों में सीडी के जरिये कोष उगाही में अच्छी तेजी दर्ज की है।
कम जमा वृद्घि और मुद्रास्फीति दबाव के बीच बढ़ती ऋण लागत के अनुमानों से भी बैंकों को पिछले कुछ महीनों के दौरान सीडी यानी जमा पत्र जारी करने को बढ़ावा मिला।
सुंदरम ऐसेट मैनेजमेंट में मुख्य निवेश अधिकारी (डेट) द्विजेंद्र श्रीवास्तव ने कहा, ‘ब्याज दर चक्र बदल रहा है। ऐसे परिवेश में, तरलता घट रही है। इसके अलावा, बैंक अवसरवादी हो रहे हैं। वे ब्याज दरें बढ़ाने का अवसर देख रहे हैं। इसके अलावा ऋण वृद्घि में पिछले कुछ महीनों के दौरान सुधार आया है और नियमित जमाओं में वृद्घि घट सकती है। इन सभी कारकों से सीडी में फंडों द्वारा निवेश को बढ़ावा मिलेगा।’
कई ऋण पत्रों पर प्रतिफल सख्त हुआ है क्योंकि केंद्रीय बैंक ने ब्याज दरें बढ़ाई हैं।
मौजूदा समय में, एक वर्षीय सीडी दरें करीब 5.6-5.7 प्रतिशत के आसपास कारोबार कर रही हैं। तीन महीने पहले, समान अवधि के पत्रों की दरें 4.1-4.3 प्रतिशत के आसपास थीं।
पिछले तीन महीनों के दौरान सीडी में म्युचुअल फंडों की समग्र होल्डिंग 1 लाख करोड़ रुपये तक थी।
अक्सर मनी-मार्केट फंड, अल्ट्रा-शॉर्ट ड्यूरेशन फंड, और शॉर्ट ड्यूरेशन फंड जमा पत्रों में निवेश करते हैं। अप्रैल में डेट फंडों ने 54,757 करोड़ रुपये का शुद्घ पूंजी प्रवाह आकर्षित किया और इसे लिक्विड फंडों, अल्ट्रा-शॉर्ट ड्यूरेशन फंडों, और मनी-मार्केट फंडों से मदद मिली।
फंड हाउस मुख्य तौर पर तीन महीने, छह महीने और एक साल की अवधि के बैंक सीडी खरीदते हैं। सीडी के निर्गम पर मौजूदा समय में निजी बैंकों का दबदबा है। उद्योग के कारोबारियों का कहना है कि हालांकि तरलता पर और ज्यादा सख्ती से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक भी आने वाले महीनों में सीडी बाजार में अवसर तलाश सकते हैं।
रेटिंग एजेंसी केयर के अनुसार, बैंक ऋण में 12 अप्रैल को समाप्त पखवाड़े के लिए सालाना आधार पर 11.1 प्रतिशत की मजबूत वृद्घि बरकरार रही, जो एक साल पहले की अवधि (23 अप्रैल, 2021 को दर्ज) के 5.7 प्रतिशत से ज्यादा है।
केयर रेटिंग्स ने एक रिपोर्ट में कहा है, ‘इसकी वजह न्यून आधर प्रभाव, खुदरा ऋण और ऊंची मुद्रास्फीति की वजह से ज्यादा कार्यशील पूंजी जरूरत थी। रोजगार बाजार और आर्थिक गतिविधियों में सुधार की वजह से रिटेल वृद्घि में तेजी आई है।’