एक आम सहमति है कि भारतीय अर्थव्यवस्था को जीवनदान देने वाले 3000 करोड़ रुपये का पैकेज का देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) पर बहुत सकारात्मक असर नहीं होगा।
विश्व बैंक और एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी) से लेकर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) जैसे संस्थानों ने जीडीपी के अनुमानों को घटा कर कम कर दिया है। वास्वत में जीवनदान देने वाले ज्यादातर पैकेजों में पहले से तय योजनाबध्द खर्च शामिल होता है।
10 प्रतिशत से भी कम नए निवेश के साथ यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि पुराना निवेश पूरी तरह से खत्म न हो जाए। लेकिन अर्थव्यवस्था में पूंजी की किल्लत तो तब तक बनी रहेगी, जब तक कि दुनिया भर में सुधार न हों। सभी ओर से 2009-2010 मुश्किलों भरा साल रहेगा।
अगर सभी कंपनियां नहीं तो कई कंपनियों के मुनाफे में गिरावट आएगी या हो सकता है कि उन्हें घाटे का सामना करना पड़े। ब्याज भी भारतीय कंपनियों के लिए एक बड़ा मुद्दा होगा। इस साल जब नकदी के प्रवाह में कमी आएगी, वहीं ईसीबी के भारी भुगतान के साथ-साथ कंपनियों को घरेलू कर्ज का भी सामना करना होगा।
जीवनदान देने वाले पैकेज से भी अधिक आरबीआई के अपनी दरों में कटौती के कदम से हो सकता है कि अगले 12 महीनों के लिए निवेशकों को राहत मिल सके।
रिवर्स रेपो दर और रेपो दर में कमी से वाणिज्यिक दरों में कटौती होगी। इसके संकेत पहले ही टी-बिल नीलामी में कम प्राप्ति के रूप में दिखाई दे चुके हैं।
यह जानते हुए कि औद्योगिकी और उपभोक्ता कर्ज की मांग में कमी गिरावट बनी हुई है, बैंक दरें भी इसी राह पर आग बढ़ेंगी। साथ ही डिफॉल्टों और गैर निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) में इजाफा हो रहा है और इसके आगे भी बढ़ने की आशंका है।
कम दरों का मतलब है कि डेट फंडों के लिए फायदा हो सकता है, जो पिछले दो साल से गिरावट का दौर देख रहे थे।
कर्ज देने वाले संस्थान खासतौर पर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से अब कर्ज लेना सस्ता पड़ सकता है, जबकि यह बात भी उतनी ही ठीक है कि डिफॉल्टरों की संख्या में इजाफा होगा।
इसके बाद, सस्ते कर्ज से ग्राहकों की मांग बढ़ेगी और इसके साथ निवेश भी अधिक होगा। लेकिन इसके लिए जरूरी शर्त है कि निवेशकों का विश्वास बना रहे।
लंबे समय के लिहाज से निवेश करने वाले निवेशक के लिए शेयरों की कीमत पहले ही सुरक्षित स्तर पर आ गई है। अगले वित्त वर्ष में भी शेयरों की कीमतों में गिरावट होगी। लेकिन ऐसी उम्मीद की जा रही है कि अगले तीन वर्षों में कीमतें मौजूदा स्तर से अधिक होंगी।
अगर आप निवेश करने जा रहे हैं तो सार यह है कि आपका ध्यान कंपनी की मजूबत बैलेंस शीट और लंबे समय में कंपनी के मुनाफा कमाने की संभावना पर होना चाहिए, न कि त्वरित मुनाफे और राजस्व विकास दर पर।
एक आम आदमी जो कर्ज से दूर रहना चाहता है, वह उन ब्लू चिप कंपनियों में निवेश कर सकता है, जिनमें उसका पूरा विश्वास हो।
लेकिन एक निवेशक को सतर्क रहना चाहिए, क्योंकि लाभांश आय की पारंपरिक दर हो सकता है कि मौजूदा समय में कम हो जाए। लंबे समय में दिखाई देने वाली विकास की संभावनाएं बुनियादी ढांचा क्षेत्र में अब भी फैली हुई हैं।
भारत में अब भी बुनियादी ढांचे की जबरदस्त कमी है और यहां आगे भी पूंजी को आकर्षित करने के लिए लगातार नीतियां बनाए जाएंगी। बुनियादी ढांचे में दूरसंचार ही ऐसा क्षेत्र है जिसकी विकास दर अच्छी है और नकदी संकट के बावजूद विदेशी निवेशकों की अब भी भारतीय बाजार में दिलचस्पी बनी हुई है।
बड़ी कंपनियों को कठोर मुकाबले और विवादित नीतियों के बावजूद मुनाफा हो रहा है। साथ ही इसी वित्त वर्ष में 3जी और वाई-मैक्स की नीलामियों का पूरा हो जाना भी सरकार के ही हित में है।
इससे न सिर्फ सार्वजनिक वित्त को संतुलित करने में मदद मिलेगी, बल्कि इसका मतलब यह भी है कि संप्रग (संयुक्त प्रगतिशील गठबधंन) को आम चुनावों में अपने हित में एक और बड़ा मुद्दा मिल जाएगा।निवेशकों के लिए यह दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि नीलामी से एक बार फिर दूरसंचार क्षेत्र में बदलाव आ जाएगा।
कई नई कंपनियों के दूरसंचार मैदान में उतरने की उम्मीद है और ऐसा माना जा सकता है कि जब धूल का गुबार छंटेगा तो बाजार की अग्रणी कंपनियों में भी बदलाव हो सकता है।
सभी नई कपंनियां इसमें शामिल हों, यह भी जरूरी नहीं है। अगले साल या उतने समय में किसी भी अन्य क्षेत्र के मुकाबले दूरसंचार क्षेत्र में सबसे ज्यादा मौके आएंगे।
इसके अलावा कम समय में अच्छा रिटर्न कमाने का मौका ट्रेडिंग की संभावनाओं पर निर्भर करता है। एक कारोबारी के लिए मूल आवश्यकता नकदी बाजारों की है और यह कोई समस्या नहीं है।
गौरतलब है कि वायदा एवं विकल्प बाजार में अब भी हर रोज 40,000 करोड़ रुपये का कारोबार हो रहा है और यहां तक कि जिंस एक्सचेंज के पास भी पर्याप्त नकदी है। बाजार में जब मंदी का दौर होता है तो अस्थिरता अधिक हो जाती है।
इसका मतलब है कि एक कारोबारी जो अच्छा या फिर भाग्यशाली हो वह पैसा कमा सकता है या अल्पावधि में ट्रेडिंग में अधिक जोखिम के साथ गंवा सकता है। एक सुरक्षित विकल्प है सूझ-बूझ के साथ कम समय के लिए डेट फंड में निवेश किया जाए या फिर लंबे समय के लिए इक्विटी में।
अगले साल में कुछ क्षेत्र ऐसे हो सकते हैं, जो रिटर्न के लिहाज से उम्मीद से ज्यादा विकास करें। मंदी का यह बाजार ठीक वैसा ही है जैसा 2004-2007 में तेजड़ियों का बाजार था और उस समय सभी क्षेत्रों में जबरदस्त उछाल देखा गया था।