मंदी के बीच संगठित रिटेल क्षेत्र की बिक्री करीब 80,000 करोड़ रुपये रहने का अनुमान है। अर्थव्यवस्था में गिरावट, छंटनी, नौकरियों पर संकट और मंदी की वजह से उपभोक्ता मांग बुरी तरह प्रभावित हुई है।
कई रिटेल कंपनियों ने विस्तार की बड़ी-बड़ी योजनाएं बनाई थीं, लेकिन नकदी की किल्लत और मांग में कमी की वजह से उन्हें अपनी योजनाओं पर पुनर्विचार करना पड़ रहा है। मौजूदा मंदी के बीच सूचीबद्ध कंपनियों के प्रदर्शन और रिटेल क्षेत्र के भविष्य के बारे में हमने रिटेलरों और विश्लेषकों से बात की। आइए जानते हैं, इस क्षेत्र के प्रति क्या है उनका नजरिया :
रिटेल कारोबार की मुश्किलें
नौकरी के प्रति अनिश्चितता, आय में कमी और परिसंपत्तियों की कीमतों में गिरावट की वजह से मांग पर असर पड़ा है। इन सभी कारणों से जहां बिक्री में भारी गिरावट दर्ज की गई, वहीं लोगों ने रिटेल आउटलेटों पर जाना भी कम कर दिया है।
हालांकि बड़ी रिटेल कंपनियों में से एक पैंटालून की बिक्री वित्त वर्ष 2009 की पहली छमाही में 31 फीसदी बढ़ी है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में कंपनी की बिक्री में 70 फीसदी का इजाफा हुआ था। एक अन्य रिटेल कंपनी शॉपर्स स्टॉप की आय में पहली छमाही के दौरान 24 फीसदी का इजाफा हुआ है, जबकि पिछले साल इसी अवधि में कंपनी की आय 30 फीसदी बढ़ी थी।
तमाम रिटेलरों का मानना है कि उपभोक्ताओं की मांग में भारी कमी आई है, जिससे उनकी बिक्री पर असर पड़ा है। चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में शॉपर्स स्टॉप के मुनाफे में 30 फीसदी की कमी आई है। इसी तरह विशाल रिटेल का मुनाफा भी इस दौरान 7 फीसदी की घटा है। जॉन लैंग लासेल मेघराज के प्रबंध निदेशक, रिटेल शुभ्रांशु पाणि का कहना है कि मौजूदा माहौल को देखते हुए महत्वाकांक्षी विस्तार योजनाओं को पूरा करना कंपनी के लिए घाटे का सौदा होगा।
बिक्री में गिरावट, महंगे किराए और रखरखाव खर्चों की वजह से कंपनी के मुनाफे पर असर पड़ रहा है। वैसे तो लगभग सभी रिटेल कंपनियों को नुकसान उठाना पड़ रहा है, लेकिन लाइफ स्टाइल (हाई वैल्यू) आइटम की बिक्री करने वाली रिटेल कंपनियों पर सबसे ज्यादा मार पड़ रही है।
एटी कियर्नी इंडिया के उपाध्यक्ष और पाटर्नर हेमंत कालबाग का कहना है कि लाइफस्टाइल सेगमेंट उपभोक्ताओं की क्रयशक्ति और उनकी आय पर निर्भर है। लेकिन मौजूदा हालात में लाइफस्टाइल सेगमेंट में गिरावट तय है। इसके साथ ही अर्थव्यवस्था की सुस्त रफ्तार भी रिटेल कंपनियों की विस्तार योजनाओं को प्रभावित कर रही है।
सुस्त पड़ी विस्तार की रफ्तार
उपभोक्ताओं की आय में इजाफा और संगठित रिटेल कंपनियों के अभाव के चलते पिछले तीन साल के दौरान रिटेल कंपनियों की आय 30 फीसदी की दर से बढ़ी है। क्रिसिल के अनुमान के मुताबिक, संगठित रिटेल मार्केट (कुल रिटेल बाजार का 8 फीसदी) वित्त वर्ष 2007 में जहां 67,900 करोड़ रुपये का था, वह वर्ष 2012 तक बढ़कर 2,36,600 करोड़ रुपये पहुंच सकता है।
आंकड़ों को देखकर लगता है कि इस क्षेत्र में विकास की पर्याप्त संभावनाएं मौजूद हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि विस्तार की योजनाओं में क्यों समस्या आ रही है? टेक्नोपार्क के एसोसिएट वाइस प्रेसिडेंट पूर्णेंदु कुमार का कहना है कि जिन क्षेत्रों में कंपनी की पहुंच नहीं है, वहां विस्तार की योजना बनाई जा रही है।
हालांकि मंदी और नकदी संकट के चलते रिटेलरों ने विस्तार का आकार कम कर दिया है, वहीं कई जगह इसकी रफ्तार धीमी कर दी गई है। उनके अनुमान के मुताबिक, देश के प्रमुख सात शहरों में में 2.5 करोड़ वर्गफीट पर रिटेल विस्तार की योजना बनाई गई थी, लेकिन अब तक केवल 1.2 करोड़ वर्गफीट पर ही रिटेल कंपनियां विस्तार कर पाई हैं। शेष की रफ्तार या तो धीमी कर दी गई हैं या फिर उनका आकार घटा दिया गया है।
एडल्वाइस के अनुमान के मुताबिक, रिटेल कंपनियों की बिक्री में सबसे ज्यादा गिरावट दिसंबर 2008 में देखी गई। यही वजह रही कि इस दौरान पैंटालून रिटेल केवल 12 लाख वर्गफुट में ही अपना विस्तार कर पाई। हालांकि कंपनी की योजना 40 लाख वर्गफीट में विस्तार करने की थी। इस दौरान शॉपर्स स्टॉप ने 4 लाख वर्गफुट में विस्तार की योजना बनाई थी, लेकिन वास्तविक विस्तार 2.3 लाख वर्गफुट ही हो सका।
विशाल रिटेल की विस्तार योजना भी सुस्त पड़ती दिखाई दे रही है। दिसंबर तक कंपनी 12 लाख वर्गफुट स्पेस में विस्तार कर पाई, जबकि योजना 16 लाख वर्गफुट में विस्तार करने की थी। कुमार का कहना है कि कंपनी ने कमाई का जितना अनुमान लगाया था, कमाई उससे कहीं कम हो रही है। यही वजह है कि कंपनियों को अपनी विस्तार योजनाओं को पीछे धकेलना पड़ा है। फिलहाल लगभग सभी रिटेल कंपनियों का जोर मौजूदा स्टोरों के मुनाफे को बढ़ाना है, ताकि वे अपना कर्ज चुकता कर सकें।
कर्ज की मुश्किल
विश्लेषकों का कहना है कि जब कोई ब्रांड स्थापित हो जाता है और उपभोक्ता उस पर यकीन करने लगते हैं, तो कंपनी 12 से 18 महीने में मुनाफा कमाने योग्य हो जाती है। कंपनियों ने जब विस्तार की योजनाएं तैयार की थीं, उस समय किराया और जमीन की कीमतें काफी ज्यादा थीं, लेकिन अब ऐसी स्थिति नहीं रही। यही वजह है कि उन्हें फंड की व्यवस्था करने में परेशानी आ रही है।
एक मॉल को विकसित करने में प्रति वर्गफीट 2,000 से 2,500 रुपये की लागत आती है, जबकि स्टोर बनने के बाद प्रति वर्गफीट 700 रुपये का मुनाफा होता है। ऐसे में रिटेलरों को स्टोर के विकास के लिए कुल लागत का एक-तिहाई ही कर्ज मिल पाता है। ऐसे में शेष रकम के लिए उन्हें आंतरिक नकदी पर ही निर्भर रहना पड़ता है।
इक्विटी बाजार और कंपनी के बही-खातों को देखते हुए वहां से भी पैसे की व्यवस्था करने में परेशानी आ रही है। विश्लेषकों का कहना है कि पूंजी की लागत 14 से 16 फीसदी आ रही है, जबकि मुनाफा 20 फीसदी ही हो पा रही है। ऐसे में रिटेल कंपनियों पर दबाव बना हुआ है।
रिटेल कंपनियों को विस्तार योजनाओं के लिए पैसे की व्यवस्था बाहरी स्रोतों से करनी पड़ती है, पर इसमें भी परेशानी आ रही है। सीएलएसए के अनुमान के मुताबिक, तीसरी तिमाही के परिणामों को देखते हुए विशाल रिटेल को बाहरी स्रोतों से पैसे की व्यवस्था करने में सबसे ज्यादा मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है, जबकि टाइटन की स्थिति उससे कहीं बेहतर है।
लागत में कटौती
उपभोक्ता मांग बढ़ाने के लिए कंपनियां बहुत सीमित उपाय ही कर सकती हैं। ऐसे में वे खर्चों में कटौती कर रही हैं। इसके तहत लागत कम करने पर जोर दिया जा रहा है, जबकि कम मुनाफा कमाने वाले या घाटे में चल रहे स्टोरों को बंद किया जा रहा है। वहीं किराए में कमी के लिए रेंटल एग्रीमेंट को संशोधित करने पर जोर दिया जा रहा है।
पाणि का कहना है कि रिटेलर मॉल मालिकों के साथ किराए में कमी के लिए बात कर रहे हैं। इसके तहत मुनाफे में हिस्सेदारी की भी बात की जा रही है। वहीं कुछ रिटेलर लोकेशन बदलने की भी तैयारी कर रहे हैं।
कुटोन्स रिटेल के चेयरमैन डी.पी.एस. कोहली का कहना है कि कंपनी मुनाफा बढ़ाने के लिए 2 टीयर और 3 टीयर शहरों में स्टोर खोलने की तैयारी कर रही है। उनके मुताबिक, मॉल की तुलना में इन शहरों में स्टोर खोलना ज्यादा फायदेमंद होता है। वैसे, किराए में गिरावट से भी रिटेलरों को कुछ राहत मिली है।
कोहली ने बताया कि कंपनी आउटलेटों के किराए में कमी के लिए संपत्ति मालिकों से बात कर रही है। कुछ जगहों पर तो किराए में 15 से 20 फीसदी की कटौती भी की गई है। उनके मुताबिक, किराए में 15 फीसदी की कमी से रिटेलरों पर दबाव कुछ कम हो सकता है।
आगे क्या होगा?
निकट भविष्य में रिटेल कंपनियों को फायदा होता नजर नहीं आ रहा है। डन ऐंड ब्रॉडस्ट्रीट का मानना है कि रिटेल कंपनियों की बिक्री में गिरावट की वजह मांग में कमी है। अनुमान के मुताबिक, वित्त वर्ष 2008 में पीएफसीई (प्राइवेट फाइनल कंजम्पशन एक्सपेंडिचर) जहां 8.1 फीसदी था, वहीं चालू वित्त वर्ष में यह घटकर 6.5 फीसदी रह सकता है।
हालांकि इसमें वित्त वर्ष 2010 में मामूली सुधार आ सकता है और यह 6.7 फीसदी तक पहुंच सकता है। वैसे कंपनियों का मानना है कि 2010 की पहली छमाही में मांग में इजाफा हो सकता है। रेटिंग एजेंसी फिच का मानना है कि कुछ स्टारों की बिक्री चालू वित्त वर्ष में पिछले साल के मुकाबले कम रहने का अनुमान है। इसकी वजह जीडीपी में गिरावट है। जानकारों का मानना है कि कंपनियों की ओर से बिक्री बढ़ाने के लिए डिस्काउंट ऑफर दिया जा रहा है, जिससे उनके मार्जिन पर असर पड़ सकता है।
पैंटालून रिटेल
मंदी के बावजूद पैंटालून की बिक्री फरवरी माह में 30 फीसदी बढ़ी है। खास बात यह कि बिक्री में इजाफा वैल्यू और लाइफस्टाइल, दोनों सेगमेंट में हुआ है। कंपनी के लिए कंज्यूमर डयूरेबल्स सेगमेंट समस्या पैदा कर रहे हैं, क्योंकि इनकी बिक्री में पिछले चार माह से लगातार गिरावट आ रही है।
विश्लेषकों का कहना है कि उपभोक्ताओं की ओर से खर्च में की जा रही कटौती से इन उत्पादों की बिक्री पर असर पड़ा है। यही वजह है कि कंपनी को अपनी विस्तार योजना को आगे बढ़ाना पड़ा है। कंपनी मुनाफा कमाने के लिए फूड सेगमेंट पर जोर दे रही है, क्योंकि इसकी बिक्री पर खास असर नहीं पड़ा है। साथ ही इसमें मार्जिन भी करीब 30 फीसदी के आस-पास है।
शॉपर्स स्टॉप
कंपनी की कुल आय का 60 फीसदी हिस्सा परिधानों की बिक्री से आता है। लेकिन मंदी के चलते इसकी मांग पर असर पड़ा है, जिससे कंपनी के मुनाफे पर दबाव बना हुआ है। ऐसे में लागत कम करने के लिए कंपनी की ओर से चार स्टोरों को बंद किया गया है।
मांग में कमी के चलते कंपनी की बिक्री दिसंबर तिमाही में नकारात्मक दायरे में पहुंच गई। कंपनी को राइट्स इश्यू से भी पैसा जुटाना भारी पड़ रहा है। इससे चालू वित्त वर्ष में कंपनी को नुकसान होने की आशंका है। यही वजह है कि कंपनी ने अपनी विस्तार योजनाओं को भी सीमित कर दिया है।
टाइटन इंडस्ट्रीज
कंपनी की करीब 70 फीसदी आय आभूषणों और सोने की बिक्री से आती है, लेकिन इस सेगमेंट में मांग में काफी कमी आई है। आने वाली तिमाही में कंपनी की बिक्री पर दबाव देखा जा सकता है। जानकारों का कहना है कि चालू वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही और वर्ष 2010 में आभूषण सेगमेंट से कंपनी की आय 20 फीसदी हो सकती है।
चौथी तिमाही में कंपनी को घड़ी कारोबार में भी नुकसान उठाना पड़ सकता है। टाइटन की ब्रांड वैल्यू जरूर है, लेकिन निकट भविष्य में इसे फायदा होता नहीं दिख रहा है।
विशाल रिटेल
कंपनी की बिक्री में तिमाही-दर-तिमाही 6 फीसदी की गिरावट आई है। कंपनी के मुनाफे में भी करीब 86 फीसदी की कमी आई है। कंपनी का मुख्य ध्यान 2 और 3 टीयर शहरों में है, जहां परिधान सेगमेंट की सर्वाधिक बिक्री होती है, लेकिन कंपनी इन दिनों नकदी की किल्लत झेल रही है।
हालांकि कंपनी ने 50 करोड़ रुपये का कर्ज चुकता कर दिया है, लेकिन अब भी करीब 90 करोड़ रुपये का शार्ट टर्म लोन बकाया है। कंपनी को मुनाफा बनाए रखने में परेशानी आ रही है और निकट भविष्य में भी खास फायदा होता नहीं दिख रहा है।