ऐसे समय में जब बड़ी बीमा कंपनियां अपने काम की शुरुआत के 8 साल बाद भी लाभ नहीं कमा रही हों, भारती एक्सा लाइफ इंश्योरेंस तीन साल में मुनाफा कमाने की उम्मीद कर रही है।
शिल्पी सिन्हा के साथ बातचीत में कंपनी के प्रबंध निदेश एवं मुख्य कार्याधिकारी नितिन चोपड़ा ने बताया कि किफायती परिचालन मुनाफा कमाने में मददगार साबित होगा। बातचीत के अंश :
म्युचुअल फंड के कारोबार में भारती अपने संयुक्त उद्यम सहयोगी एक्सा से अलग हो गई है। बीमा क्षेत्र के संयुक्त उद्यम पर भी क्या इसका कोई असर होगा?
भारती ने म्युचुअल फंड के संयुक्त उद्यम से अलग होते समय ही स्पष्ट कर दिया था कि वह बीमा कारोबार में बने रहना चाहती है। ऐसेट मैनेजमेंट कंपनी में भारती की हिस्सेदारी कम ही है।
क्या कारण है कि वैश्विक साझेदार म्युचुअल फंड के कारोबार से बाहर हो रहे हैं और बीमा कारोबार में बने हुए हैं?
सामान्यतया इस तरह के ढांचे में इधर से उधर जाने में लचीलापन बना रहता है।
इस वित्त वर्ष के लिए आपकी क्या योजनाएं हैं? साल 2009-10 में इस उद्योग का विकास कैसा रहेगा?
हमारी योजना अपनी बाजार हिस्सेदारी दुगना करने की है। हमारे पास विस्तृत वितरण ढांचा है। पिछले साल हमारी 78 शाखाएं थीं। इस साल शाखाओं की संख्या 200 हो गई है। हम एक बहुत ही मजबूत एजेंसी फोर्स तैयार कर रहे हैं। औसतन हमारे एजेंट इस कारोबार के औसत उत्पादकता से 30 फीसदी ज्यादा परिणाम दे रहे हैं। इस साल हम स्वास्थ्य क्षेत्र में भी कदम रखने जा रहे हैं।
एयरटेल के साथ हमारी कुछ साझेदारी अस्तित्व में आ रही है। कुल कारोबार का 14 से 15 फीसदी हिस्सा एयरटेल के साथ हमारी साझेदारी से आ रहा है और यह हिस्सा बढेग़ा। हमने एयरटेल के साथ साझेदारी के लिए सही रास्ता तलाश लिया है।
हमारा अनुमान है कि 2009-10 में भी बाजार में बहुत ज्यादा बदलाव नहीं आएगा। इक्विटी बाजार में कोई गड़बड़ी नहीं है लेकिन घबराहट का माहौल है। उद्योग का विकास सीमित दायरे में ही होगा। अगर इसमें 7 फीसदी की गिरावट आई है तो इस साल कुछ सुधार हो सकता है।
क्या आप मानते हैं कि बाजार में सुधार आने की हालत में निश्चित लाभ वाले उत्पादों के लिए लोगों में भूख जगेगी?
बीमा एक दीर्घ अवधि का उत्पाद है। इसलिए साल-छह महीने की बुरी स्थिति किसी ग्राहक को घबराहट में नहीं डालने वाली। ये एक तरह से लोगों के डिस्ट्रीब्यूशन कर्व की तरह है। इसमें जोखिम लेने वाले लोग भी हैं और जोखिम से कतराने वाले लोग भी हैं। जब अर्थव्यवस्था अच्छी हालत में होती है तो जोखिम से बचने वाले लोग भी जोखिम लेने लगते हैं। वहीं जब मंदी का माहौल हो तो जोखिम लेने वाले भी जोखिम लेने से कतराने लगते हैं।
इस तथ्य को मानते हुए कि घबराहट का माहौल है, हमने बेहद रुचिकर निश्चित उत्पाद तैयार किए हैं। यह एक औसत उत्पाद नहीं बल्कि बेहतर उत्पाद है। हम लोग कई नए उत्पादों की भी योजना बना रहे हैं। हम यूनिवर्सल लाइफ प्रोडक्ट (यूएलपी) के बारे में भी सोच रहे हैं। इसके लिए अनुमति हासिल करने के लिए नियामक के साथ बातचीत कर रहे हैं।
यूएलपी प्लेटफॉर्म पर हम माइक्रो बीमा उत्पाद विकसित कर रहे हैं। इस तरह का उत्पाद बेहद अहम होता है। हम निश्चित योजना से यूनिट लिंक्ड उत्पादों यानी यूलिप्स की ओर जाने के लिए एकतरफा सुविधा तो देंगे लेकिन इसके उलट बदलाव की अनुमति हम नहीं देंगे।
यूलिप्स के मानकीकरण से बीमा उद्योग को क्या मदद मिलेगी?
ये विचार उत्पाद को बाधा पहुंचाने के लिए नहीं है। मानक शब्दावली के इस्तेमाल से अलग-अलग उत्पादों के दायरे के ग्राहक और पॉलिसीधारक इसे आसानी से समझ सकेंगे। तुलनात्मक तौर पर इससे उत्पाद आसान होगा। पॉलिसीधारक के खाते में जिस तरह से विभिन्न शुल्कों की संरचना है, उससे इसका लेना-देना ज्यादा है। इसे एक तरह का स्वाभाविक मानकीकरण कहना होगा, जो उद्योग के परिपक्व होने के बाद हर देश में होता है। यह उद्योग कुछ परिपक्वता प्रदर्शित कर रहा है।
बीमा उद्योग में एकीकरण के बारे में आपकी क्या राय है?
शेयरधारकों के पास बेहतर तरीके से बाहर निकलने की क्षमता होनी चाहिए। इस तरह का ढांचा शेयरधारकों को उनके कारोबारी चक्र के अलग-अलग पड़ावों पर अलग-अलग निर्णय लेने में मदद करता है। देश में जीवन बीमा करने वालों का एक समूह है।
अगर कारोबारियों को विकल्प दिया जाए तो कुछ शेयरधारक बाहर निकलने की सोच सकते हैं। कहा नहीं जा सकता कि यह कितना जल्दी होगा। पर अभी से दो साल बाद परिस्थितियां अलग होंगी। उस समय लोग कारोबार से बाहर निकल सकते हैं। भारत एक दिलचस्प बाजार है। इसलिए कोई भी बाहर नहीं निकलना चाहता है।
भारती एकीकरण पर इसलिए ध्यान दे रही है ताकि राजस्व, लागत और अन्य रणनीतिक लाभ मिल सके। दोनों साझेदारों के पास पर्याप्त पूंजी है। नियामक का मकसद एक ढांचा तैयार करना है। इसका संबंध सिर्फ शेयरधारकों की सुरक्षा नहीं बल्कि पॉलिसीधारकों की सुरक्षा से भी है। यह अलग-अलग हितों का बचाव करता है।
मुनाफे की स्थिति कब तक आएगी?
2012-13 से हम मुनाफा कमाने लगेंगे। वैश्विक स्तर पर एक्सा लंबे समय तक कारोबार करने वाली कंपनी है। हम छोटी अवधि की उस दौड़ में शामिल नहीं हैं जिसमें सारा जोर चार्ट में ऊपर रहने पर होता है। हम ये मानते हैं कि ये कोई बड़ी बात नहीं है।
क्या आप ये मानते हैं कि नियामक को खुली संरचना की अनुमति देनी चाहिए?
हमने नियामक से पूछा है कि खुली संरचना अगर म्युचुअल फंड में संभव है तो बीमा के क्षेत्र में क्यों नहीं? बाजार की परिपक्वता को लेकर एक सोच है। हम उसका सम्मान करते हैं।
