लोग स्वास्थ्य बीमा पॉलिसियां मोटे तौर पर बीमार पड़ने की स्थिति में होने वाले खर्च से सुरक्षा के लिए लेते हैं। लेकिन कुछ लोग बीमा पॉलिसी लेने के बाद निश्चिंत हो जाते हैं जबकि दरअसल ऐसा होता नहीं है।
स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी लेना तो सिर्फ प्रक्रिया का आधा हिस्सा होता है जबकि बाकी कवायद तो तब शुरू होती है जब आप बीमार पड़ते हैं। यानी सारी आवश्यक कवायद बीमार पड़ने और और बीमारी पर बैठने वाले खर्च को लेकर जुड़ी होती है।
बीमा कंपनियां और एजेंट कागजात के अभाव में बीमे के दावे को खारिज कर देते हैं और ग्राहक इसके लिए कंपनी को जिम्मेदार ठहराते हैं। इस बाबत वित्तीय योजनाकार गौरव मशरूवाला का कहना है कि बीमा कंपनियां कागजात के आधार पर ही बीमा दावों का निपटान करते हैं।
बीमा दावा करते समय इस तरह की परेशानियों से बचने के लिए कुछ बातों को जानना काफी आवश्यक है। आइए, इसी से संबंधित कुछ बातों पर नजर डालते हैं-
जब कोई बीमाधारक बीमार पड़ता है और इसके बाद दावा करता है तो सबसे पहले उसे उस बीमा कंपनी को इसके बारे में अवगत कराना होता है जिससे बीमाधारक ने पॉलिसी ली है। बीमा कंपनियां बीमा कार्ड पर हेल्पलाइन नंबर देती हैं जो पॉलिसी के साथ ही मिलता है।
आप उनको फैक्स या ई-मेल के जरिए भी इस बात की सूचना दे सकते हैं। जब आप कंपनी को सूचना देते हैं तो इसमें आपको अपनी पॉलिसी का अनुक्रमांक और बीमारियों के बारे में बताना होता है। इसके बाद बीमा कंपनी या थर्ड पार्टी एडमिनिस्ट्रेटर (टीपीए) आप से तुरंत संपर्क करेंगे, साथ ही आपको कंपनी के नेटवर्क हॉस्पिटल के बारे में भी बताएंगे। कुछ ऐसी गूढ़ बातें होती है जिनके बारे में पॉलिसी लेने के बाद भी ग्राहकों को जानकारी नहीं होती है।
टीपीए आपको इसकी भी जानकारी उपलब्ध कराते हैं। अगर आपात स्थिति में बीमाधारक कंपनी के नेटवर्क से बाहर किसी अस्पताल में भर्ती होते हैं तो ऐसी स्थिति में बीमा कंपनी को सूचित करने के लिए 24 घंटे का समय होता है। जाहिर है, नेटवर्क अस्पताल टीपीए को अपने स्तर पर सूचित करते हैं।
यहां एक बात का ध्यान रखना बेहद जरूरी है कि नेटवर्क अस्पताल में भर्ती होने का मतलब यह नहीं है कि वहां दाखिल होने में खर्च नहीं होगा। कई जाने-माने अस्पताल, जो बीमा कंपनियों के नेटवर्क केहिस्से होते हैं, वहां भी भर्ती होने के समय भी आपको नकद भुगतान करन ही पड़ेगा।
सबसे बडी बीमा कंपनी भी शत-प्रतिशत नकद रकम की छूट नहीं देती है। बीमा कंपनी के नेटवर्क से बाहर के अस्पताल की बात करें तो जब आप बीमा दावे के लिए आवेदन करते हैं तो उस समय आपको उस अस्पताल के पंजीयन प्रमाणपत्र को भी साथ में लगाना पड़ेगा।
अगर आपकी चिकित्सा नेटवर्क अस्पताल से बाहर चल रही है तो कुछ कंपनियां जैसे, आईसीआईसीआई और बजाज आदि अस्पताल में होने वाले खर्च का 80 से 90 फीसदी हिस्से का ही भुगतान करती हैं। इसे सह-भुगतान या को-पेमेंट के नाम से जाना जाता है।
बीमा दावे के पहले ग्राहकों को छोटी-छोटी बातों पर ध्यान रखना चाहिए।
प्रत्येक बिल चाहे वह मेडिकल का हो या जांच संबंधी, कंपनी के पास जमा करने के साथ ही इसके संग आवश्यक कागजात भी लगाना चाहिए। बीमा कंपनियां निपटान के दावे पर अमल करने से पहले जांच के परिणामों और चिकित्सक द्वारा जांच की सलाह के प्रमाण पर भी नजर डालती हैं।
प्रत्येक बिल में मरीज के नाम के साथ ही डॉक्टर का नाम भी होना चाहिए। जांच रिपोर्ट के साथ भी यह बात लागू होती है। अगर इन दोनों शर्तों को पूरा नहीं किया जाता है तो बीमा कंपनी बिल और रिपोर्ट में दिए गए तथ्यों को मानने से इनकार कर सकती है।
मरीज का नाम बिल पर उसी तरह होना चाहिए जो नाम बीमा पॉलिसी में लिखा गया है।
अस्पताल से छुट्टी मिलने संबंधी कागजात सबसे महत्वूर्ण होता है।
सभी बीमा कंपनियां सबहेड के साथ बिल की मांग करती हैं। ये बहुत जरूरी होता है क्योंकि बीमा कंपनियों ने कुछ खर्चों पर सीमा तय कर दी है। मिसाल के तौर पर नैशनल इंश्योरेंस कुल बीमित राशि का 20 फीसदी डॉक्टर की फीस और दवाओं पर होने वाले खर्च का 50 फीसदी तक का भुगतान करती है।
अस्पताल से छुट्टी मिलने के 7 दिन के अंदर टीपीए के पास सारे महत्वपूर्ण कागजात जमा हो जाने चाहिए। सभी वास्तविक बिल टीपीए को सौंपना अनिवार्य होता है।
बिल जमा करते समय पॉलिसी की एक प्रति भी संलग्न करें जिस पर बीमारी के बारे में डॉक्टर का नोट भी लिखा हो। इसकेअलावा टीपीए के प्री-ऑथॉराइजेशन और बीमा कार्ड की प्रति भी संलग्न करना आवश्यक होती है।
बिल जमा करने के बाद टीपीए से इसके जमा संबंधी प्राप्ति लेना न भूलें।
अस्पताल से बाहर होने वाले खर्च को दावे में शामिल नहीं करें। आवश्यक कागजात को समय सीमा के भीतर जमा करने के लिए टीपीए से संपर्क करें।
स्वास्थ्य बीमा की पॉलिसी होने का मतलब यह नहीं है अस्पताल जो शुल्क लगाते हैं, आप उसे लेकर चिंतामुक्त हो जाएं। इन सभी बातों पर नजर रखें। हरेक पॉलिसी में बीमित राशि की एक निश्चित सीमा होती है।
आपको अतिरिक्त रकम का भुगतान भी करना पड़ेगा। जहां तक हो, बिल में बचत करने की कोशिश करें। पॉलिसी की बाकी बची अवधि के दौरान पॉलिसीधारक को अन्य अपात स्थिति का सामना करना पड सकता है। अगर आप मोल-भाव करते हैं तो अस्पताल कुछ छूट देते हैं। इस बाबत एक इंश्योरेंस ब्रोकर का कहना है कि अस्पताल नर्सिंग, कमरे और जांच पर लगने वाले शुल्क में छूट दे सकते हैं।