कच्चे तेल के दाम 100 डॉलर प्रति बैरल के पार पहुंचने के बाद घरेलू बाजार में पिछले 15 दिनों में पेट्रोल और डीजल की कीमतें 10 रुपये प्रति लीटर तक बढ़ चुकी हैं। इसने करीब दो साल तक आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने की कोशिशों के बाद भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को अब बढ़ती मुद्रास्फीति से जुड़े दबावों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित किया। केंद्रीय बैंक ने संकेत दिया कि वह समायोजन वाले अपने रुख में बदलाव करने की तैयारी कर रहा है। आरबीआई के इस रुख से बॉन्ड प्रतिफल 3 साल के उच्च स्तर पर पहुंच गया।
छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने एकमत से रीपो दर को 4 फीसदी पर बनाए रखने का पक्ष लिया। हालांकि समायोजन वाला रुख भी बरकरार रखा गया है लेकिन उसमें शर्त लगाई गई है। केंद्रीय बैंक ने कहा कि अब वह समायोजन वाले रुख को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित करेगा।
आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा, ‘एमपीसी ने समायोजन वाले रुख को बरकरार रखने पर सहमति जताई, साथ ही मुद्रास्फीति को लक्षित दायरे में रखने के लिए रुख में बदलाव पर ध्यान देने की भी बात कही है।’ कुछ समय पहले दास ने कहा था कि अर्थव्यवस्था को सहारा देने और महामारी के असर को कम करने के लिए आरबीआई समायोजन वाले रुख को अभी बनाए रखेगा। दास के बयान इस बात का संकेत देते हैं कि सभी सदस्य रुख में बदलाव के पक्ष में दिख रहे हैं। एमपीसी के बाह्य सदस्य प्रोफेसर जयंत वर्मा ने पिछली चार बैठकों में समायोजन वाले रुख को बनाए रखने के खिलाफ अपना मत दिया था।
दस ने कहा, ‘प्राथमिकताओं में बदलाव के तहत अब हम वृद्घि के बजाय मुद्रास्फीति पर ध्यान देंगे। पिछले तीन साल से हमने वृद्घि को मुद्रास्फीति से आगे रखा था। इस बारे में समय की जरूरत के हिसाब से प्राथमिकता में बदलाव किया गया है।’ रूस-यूक्रेन युद्घ से अर्थव्यवस्था पर पडऩे वाले असर के मद्देनजर केंद्रीय बैंक ने वृद्घि के अनुमान को घटा दिया और मुद्रास्फीति के अनुमान में इजाफा किया है। वित्त वर्ष 2023 के लिए सकल घरेलू उत्पाद वृद्घि का अनुमान 7.8 फीसदी से घटाकर 7.2 फीसदी किया गया है। इसी तरह मुद्रास्फीति के अनुमान को 4.5 फीसदी से बढ़ाकर 5.7 फीसदी कर दिया गया है और इसमें कच्चे तेल के दाम 100 डॉलर प्रति बैरल पर रहने का अनुमान लगाया गया है। दास ने कहा, ‘मुद्रास्फीति अनुमान में युद्घ के कारण इजाफा करना पड़ा है।’ केंद्रीय बैंक का अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में मुद्रास्फीसदी 6 फीसदी से ऊपर रहेगी और जून-जुलाई में 6.3 फीसदी रह सकती है। नोमुरा में भारत के अर्थशास्त्री अरुदीप नंदी ने कहा, ‘आरबीआई ने अभी समायोजन वाला रुख बनाए रखा है लेकिन पिछले कुछ महीनों में ज्यादा सहज रुख के बाद अब इसे वापस लेने की बात कह रहा है।’ आरबीआई अगर लगातार तीन तिमाही में खुदरा मुद्रास्फीति के 4 फीसदी लक्ष्य (2 फीसदी घट-बढ़ के साथ) को बनाए रखने में सक्षम नहीं होता है तो नीति निर्माता उस पर सवाल उठा सकते हैं।
आरबीआई ने रीपो दर नहीं बढ़ाई है लेकिन उसे अहसास है कि अल्पाविध की दरों में वृद्घि का समय आ गया है। यही वजह है कि आरबीआई ने स्थायी जमा सुविधा की व्यवस्था शुरू की है जिसका लंबे समय से उपयोग नहीं किया गया था। इसके तहत बैंक अपनी अतिरिक्त तरलता को आरबीआई के पास रखते हैं और उस पर ब्याज आरबीआई से मिलने वाली उधारी जितनी होती है। आरबीआई रिवर्स रीपो के बजाय इसके जरिये अतिरिक्त तरलता सोंखना चाहता है।
क्वांटम एएमसी में कोष प्रबंधक-स्थिर आय पंकज पाठक ने कहा, ‘आरबीआई ने समायोजन वाले रुख से हटा है लेकिन सही तौर पर इसकी घोषणा नहीं की गई और दरों में वास्तविक वृद्घि के बिना प्रभावी दर 40 आधार अंक बढ़ गई है।’ 10 वर्षीय बॉन्ड का प्रतिफल 21 आधार अंक बढ़कर 7.12 फीसदी पहुंच गया। पांच साल का ओवरनाइट इंडेक्स स्वैप 30 आधार अंक बढ़कर मई 2019 के बाद उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है, जो ब्याज दरों में वृद्घि का संकेत है।
बाजार को उम्मीद है कि जून की बैठक में आरबीआई अपने रुख को बदलाने की औपचारिक घोषणा कर सकता है और 2022 की दूसरी छमाही से दरें बढऩी शुरू हो जाएंगी।
बार्कले में प्रबंध निदेशक और भारत में मुख्य अर्थशास्त्री राहुल बाजोरिया ने कहा, ‘आज के कदम को देखते हुए हमारा मानना है कि अगर वृद्घि पर ज्यादा जोखिम नहीं हुआ और मुद्रास्फीति परिदृश्य में सुधार नहीं आया तो आरबीआई जून में अपने रुख को बदलकर तटस्थ कर सकता है। ऐसी स्थिति में 2022 की दूसरी छमाही से दरों में बढ़ोतरी शुरू हो सकती हैं।’
