सुप्रीम कोर्ट ने तीन बैंकों स्टैंडर्ड चार्टर्ड, एचएसबीसी एवं सिटी बैंक द्वारा राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के फैसले को चुनौती की अपील स्वीकार कर ली है।
तीनों बैंकों ने आयोग के उस फैसले के खिलाफ अपनी अपील दायर की है जिसके तहत बैंकों को क्रेडिट कार्ड धारकों से 30 फीसदी से ज्यादा ब्याज दर वसूलने से रोकने की बात थी। इस मामले में हस्तक्षेपकर्ता यानी इंटरवेनर की भूमिका के रूप में भारतीय बैंक संगठन (आईबीए) को भी शामिल है।
जस्टिस बी एन अग्रवाल की अध्यक्षतता वाली खंडपीठ ने इसके अतिरिक्त आवाज नाम के संगठन को भी नोटिस जारी किया है जिसने आयोग में बैंकों द्वारा क्रेडिट कार्ड धारकों से वसूली जा रहे ब्याज दरों को बतौर अतिब्याजी कर्ज करार दिया था। लेकिन इस बारे में बैंकों की दलील है कि वे रिजर्व बैंक के दिशानिर्देशों का ही पालन कर रहे हैं, जो एकमात्र प्राधिकारी है कि ब्याज दर कितनी रहनी है।
लिहाजा यह आयोग के क्षेत्राधिकार से बाहर है कि वह बैंकों को सीधे यह आदेश दें कि दरों की सीमा क्या हो? साथ ही बैंकों द्वारा किसी प्रकार की गलत रूपरेखा भी प्रदर्शित न किए जाने के कारण उपभोक्ता संरक्षण एक्ट की परिभाषा के मुताबिक यह नाजायज कारोबारी गतिविधि नहीं थी। इतना ही नहीं, उपभोक्ताओं ने समझौते को पढ़ने के बाद ही हस्ताक्षर किए थे।
विशेषकर, रकम का भुगतान अगर 60 दिनों के भीतर कर दिया जाता है तो फिर किसी प्रकार का ब्याज नहीं लगता। मालूम हो कि कुछ महीनों पहले ही आयोग ने कुछ जनहित समूहों की याचिकाओं के आधार पर बैंकों द्वारा भारी ब्याज दरें वसूलने को नाजायज कारोबारी कार्य करार दे दिया था।
आयोग ने नियम बनाते हुए यह कह डाला था कि सिर्फ एक बार डिफॉल्ट होने की स्थिति में ही दंडस्वरूप ब्याज लिया जा सकता है। आयोग ने बाद में यह भी कहा कि मासिक अवधियों में ब्याज की वसूली एक नाजायज काम है। नतीजतन बैंकों को यह निर्देश दिया गया कि वह ऐसी गतिविधियों पर रोक लगाए।