Categories: बैंक

संगठित प्रयास से मिलेगी राहत

Published by
बीएस संवाददाता
Last Updated- December 10, 2022 | 8:02 PM IST

मंदी की मार से बेहाल भारतीय अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की कवायद के तौर पर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) और सरकार ने कई उपाय किए हैं। 

लेकिन अर्थशास्त्रियों की राय में इतना करना शायद नाकाफी है और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए ज्यादा प्रयास किए जाने की जरूरत है।
अर्थशास्त्रियों की माने तो आरबीआई द्वारा बार-बार प्रमुख दरों में कटौती का असर नहीं दिखा तो फिर नियामक के पास भी अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए ज्यादा विकल्प नहीं रह जाएंगे। सरकार और आरबीआई द्वारा हाल के कुछ महीनों में किए गए उपायों को तात्कालिक समाधान के तौर पर देखा जा रहा है जबकि दीर्घ अवधि के लिए ज्यादा संगठित प्रयास की जरूरत बताई जा रही है।
स्टैंडर्ड ऐंड पुअर्स के एशिया-प्रशांत क्षेत्र के मुख्य अर्थशास्त्री सुबीर गोकर्ण का कहना है कि नियामक के प्रसार तंत्र में कई खामियां हैं जिससे सारे पैसे सरकारी प्रतिभूतियों में जमा हुए हैं।
गोकर्ण के अनुसार मौजूदा चिंता की जो सबसे बडी वजह है वह यह कि अभी भी आरबीआई जो प्रयास कर रहा है वह सक्रिय कर्ज के तौर पर बाजार में उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। साथ ही गोकर्ण ने यह भी कहा कि भारतीय उद्योग जगत इस समय वित्तीय संकट का सामना कर रहा है जो अर्थव्यवस्था के लिहाज से चिंता की बात है।
हालांकि जे पी मॉर्गन के मुख्य अर्थशास्त्री जहांगीर अजीज के अनुसार मंदी के समय में सिर्फ बैंकों को एक मात्र फंड का स्रोत समझकर इस पर पूरी तरह निर्भर नहीं रहना चाहिए, साथ ही कॉर्पोरेट जगत को फंड जुटाने के वैकल्पिक स्रोतों पर ध्यान देना चाहिए।
जहांगीर ने कहा कि जिस समय अर्थव्यवस्था  8-9 फीसदी के दर से विकास कर रही थी उस समय वास्तविक ब्याज की दर 2 फीसदी थी जो साफ तौर पर विकास और वास्तविक ब्याज दरों के बीच 6 फीसदी के अंतर को दर्शाता था। 

बकौल जहांगीर इस समय आरबीआई द्वारा दरों में लगातार कटौती के बाद भी विकास और वास्तविक दर का अंतर 2 फीसदी है जो इस बात की ओर इशारा करता है कि अकेले मौद्रिक नीति के बलबूते पर ही सब कुछ नहीं किया जा सकता है।
इस लिहाज से मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए फंडों की उपलब्धता के लिए सिर्फ बैंकों पर ही निर्भर नहीं रहना चाहिए। अर्थशास्त्रियों की राय में सरकार को उद्योग जगत को फंड मुहैया कराने के लिए कॉर्पोरेट बॉन्ड बाजार में सुधार लाना चाहिए।
गोकर्ण के मुताबिक नई सरकार के सत्त संभालने के बाद सीमित वित्तीय विकल्पों को देखते हुए लंबे समय से विचाराधीन सुधार,मसलन, निजीकरण, सब्सिडी से जुड़े मुद्दे आदि पर ध्यान देना समय की जरूरत है।

First Published : March 13, 2009 | 10:11 PM IST