भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने कहा है कि औद्योगिक घरानों को बैंकिंग कारोबार में उतरने की अनुमति देने के संबंध में उसने अब तक कोई निर्णय नहीं लिया है। केंद्रीय बैंक के एक आंतरिक कार्य समूह ने औद्योगिक घरानों को बैंकिंग कारोबार में उतरने की अनुमति देने की सिफारिश की थी। आरबीआई ने कहा कि उसने इसी समूह द्वारा बैंकों में प्रवर्तकों की हिस्सेदारी 15 प्रतिशत से बढ़ाकर 26 प्रतिशत करने की सिफारिश स्वीकार कर ली है। इस कार्य समूह ने 33 सिफारिशें की थीं, जिनमें केंद्रीय बैंक ने 21 स्वीकार कर ली हैं। आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड के निदेशक प्रसन्न कुमार मोहंती की अध्यक्षता में इस कार्य समूह का गठन किया गया था।
इस समूह का गठन पिछले साल 12 जून को हुआ था। समूह ने 20 नवंबर को अपनी रिपोर्ट में सुझाव दिया था कि बड़ी कंपनियों या औद्योगिक घरानों को बैंकिग कारोबार में उतरने की अनुमति दी जाए। इस सुझाव पर काफी हंगामा हुआ था और आरबीआई के कई पूर्व गवर्नर और डिप्टी गवर्नर ने भी आपत्ति जताई थी। केंद्रीय बैंक ने यह एवं अन्य 11 सुझाव तत्काल स्वीकार नहीं किए और कहा कि ये सभी ‘विचाराधीन’ हैं।
केंद्रीय बैंक ने यह भी कहा कि किसी व्यक्ति या गैर-वित्तीय संस्थान के लिए गैर-प्रवर्तक हिस्सेदारी 10 प्रतिशत पर कायम रहनी चाहिए। समूह ने सभी गैर-प्रवर्तक हिस्सेधारकों के लिए एक समान 15 प्रतिशत शेयरधारिता का सुझाव दिया था। मगर आरबीआई ने कहा कि वित्तीय संस्थान, अंतरराष्ट्रीय संस्थान, सार्वजनिक उपक्रम या सरकार निजी बैंकों में 15 प्रतिशत हिस्सेदारी रख सकते हैं।
आरबीआई नियमन की जानकारी रखने वाले एक वरिष्ठ बैंकर ने कहा कि वास्तव में आरबीआई नियमों को कड़ा बना रहा है। पहले आए निर्देशों में आरबीआई ने कहा था कि गैर-प्रवर्तक शेयरधारिता नियमित वित्तीय संस्थानों में 40 प्रतिशत तक हो सकती है। अंतरराष्ट्रीय संस्थान, सार्वजनिक उपक्रम या सरकार के मामले में भी यही बात लागू होगी। अब आरबीआई यह सीमा 15 प्रतिशत तय करेगा। हालांकि कुछ खास मामलों में हिस्सेदारी बढ़ाने की अनुमति दी जा सकती है। केंद्रीय बैंक ने कुछ बड़े सुझाव भी स्वीकार कर लिए जिनमें प्रवर्तकों को शुरुआती लॉक-इन अवधि के दौरान शेयर गिरवी रखने की इजाजत नहीं देना भी शामिल है।
आरबीआई के नियमों के अनुसार प्रवर्तकों को अपनी हिस्सेदारी शुरू के पांच वर्ष की अवधि में न्यूनतम 40 प्रतिशत रखनी चाहिए और धीरे-धीरे इसे घटाकर तय स्तर तक लाना चाहिए। आरबीआई ने आज यह सीमा संशोधित कर 26 प्रतिशत करने का निर्णय लिया। एक वरिष्ठ बैंकर ने कहा कि लॉक-इन अवधि के दौरान शेयरधारिता कम करने से हिस्सेदारी कम करने में बाधा आ सकती है जिससे आरबीआई के दिशानिर्देशों का उल्लंघन हो सकता है।
