सूक्ष्म वित्त संस्थानों (एमएफआई) ने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) से ऋण के लिए पात्रता सीमा बढ़ाने की मांग की है। उनका कहना है कि ऋण लेने के लिए मुद्रास्फीति के समायोजन के साथ घरेलू आय की सीमा को बढ़ाकर सालाना 3 लाख रुपये कर दिया जाना चाहिए। इससे उधारकर्ताओं के लिए पात्रता दायरे में विस्तार होगा। यदि आरबीआई इस सुझाव को मानता है तो 2.45 लाख करोड़ रुपये के ऋण पोर्टफोलियो के साथ 6 करोड़ ग्राहकों के मौजूदा नेटवर्क में 5 करोड़ नए ग्राहक शामिल होंगे।
यह खबर ऐसे समय में आई है जब बैंकिंग नियामक इसी साल जून में जारी माइक्रोफाइनैंस के विनियमन पर परामर्श दस्तावेज पर हितधारकों से मिली प्रतिक्रिया के आधार पर परिचालन दिशानिर्देश जारी करने के अंतिम चरण में है। उस दस्तावेज में माइक्रोफाइनैंस उधारकर्ता की पहचान के लिए ग्रामीण क्षेत्र के लिए घरेलू आय की सीमा 1.25 लाख रुपये और कस्बाई एवं शहरी क्षेत्रों के लिए 2 लाख रुपये रखने का प्रस्ताव दिया गया था।
एमएफआई क्षेत्र इस मुद्दे पर केंद्रीय बैंक के साथ फिलहाल चर्चा कर रहा है। उसका मानना है कि बेहतर दृष्टिकोण यह होगा कि शहरी और ग्रामीण का भेदभाव किए बिना घरेलू आय की सीमा को बढ़ाकर सालाना 3 लाख रुपये कर दिया जाए और उसे प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत ‘आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग’ की परिभाषा से जोड़ दिया जाए। उनका मानना है कि इससे अधिकतम सीमा के तौर पर मदद मिलेगी और अधिक जरूरतमंद ग्राहकों को शामिल किया जा सकेगा। पिछले अनुभव से पता चलता है कि ऋण लेने वाले अधिकतर ग्राहक अधिकतम आय सीमा से नीचे के हैं। ऐसा भी एक मामला सामने आया है कि माइक्रोफाइनैंस की परिभाषा में बैंक लिंकेज मॉडल वाले स्व-सहायता समूहों एवं सहकारी संगठनों के ऋण को भी शामिल किया जा रहा है। इसलिए ऋण के इन दो प्रमुख स्रोतों के मामले को भी स्पष्ट किया जाना चाहिए क्योंकि उनके उधारकर्ताओं की संख्या समान है। महामारी के कारण पैदा हुए दबाव के मद्देनजर घरेलू आय की सीमा पर नए सिरे से गौर करना महत्त्वपूर्ण हो गया है।
एक प्रमुख एमएफआई के शीर्ष अधिकारी ने कहा कि इस संशोधन को इस संदर्भ में भी देखा जाना चाहिए कि केंद्र सरकार ने मनरेगा अधिनियम के लिए 25,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त पूरक वित्त पोषण किया है। उन्होंने कहा, ‘एमएफआई कारोबार मनरेगा के करीब है। मनरेगा लाभार्थियों का एक बड़ा हिस्सा एमएफआई ऋण का भी लाभ उठाता है।’ इसलिए यहां यह बताया गया है कि आय सीमा में संशोधन किए जाने से आर्थिक पिरामिड के निचले स्तर पर एमएफआई में उधारकर्ताओं की संख्या बढ़ाने में मदद मिलेगी।
