अक्सर वित्तीय योजना को जल्द पैसा बनाने के लिहाज से देखा जाता है। नतीजतन हमारा ध्यान परिसंपत्ति वर्ग और कुछ खास निवेश योजनाओं पर ही रहता है, जिसमें निश्चित दर पर रिटर्न कमाया जा सके।
यहीं आपकी पूरी योजना गड़बड़ा सकती है। ज्यादातर लोग जो योजनाबध्द तरीके से बढ़ते हैं, वे ठीक उसी समय सब चीजें होती देखना चाहते हैं, जो उन्होंने कीं और ऐसी स्थिति में वित्त पर भारी दबाव पड़ता है। उदाहरण के लिए ऐसी योजना जो तीसरे ही साल में छुट्टियां, घर, कार और महंगे इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद दिलाने का यकीन दिला दे, दरअसल ऐसी योजना बनाना ही मुश्किल है।
शुरुआत करने वालों के लिए, उन्हें अपनी मासिक कमाई को जरूर ध्यान में रखना चाहिए। और एक साल में इसमें कितनी वृध्दि हुई है यह अपने लक्ष्य हासिल करने के लिए एक अहम कारक हो सकता है। यह इसलिए, क्योंकि एक योजना में यह माना जाता है कि किसी भी व्यक्ति की आय अगले 15 वर्षों में 15 प्रतिशत की दर से सालाना बढ़ेगी। साफ-साफ कहें तो इसमें खतरा है। यह विकास दर कम समय के लिए भी हो सकती है।
आखिरी दो से तीन वर्षों में औसत वेतन में तेज वृध्दि हो सकती है, जिसके दो कारण बहुत तेज मांग और कुशल कर्मियों की कमी हो सकते हैं। हालांकि अगर अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में आ सकती है, तब हमें भी मुश्किल दौर का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए वेतन के 15 प्रतिशत की दर से बढ़ने की पूरी कल्पना या अनुमान ही गलत है।
यह भी अहम है कि आप अपने पोर्टफोलियो से एक रिटर्न की दर का लगभग वास्तविक जैसा अनुमान लगाएं। जमीन-जायदाद और सोने जैसे अन्य परिसंपत्तियों के बावजूद किसी भी पोर्टफोलियों में ऋण और इक्विटी दोनों होते हैं।साथ ही इन सभी परिसंपत्त्यिों पर एक निश्चित रिटर्न दर भी होती है, जिसका कई वर्षों के आधार पर अनुमान लगाया जाता है।
अक्सर, बाजार में मजबूत प्रदर्शतन के भी कई लंबे दौर होते हैं। ऐसे में इक्विटी से रिटर्न का अतिमूल्यांकन का खतरा बना रहता है, लेकिन इससे विपरीत परिस्थितियों में समस्या और भी बढ़ जाती है और वहां अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में काफी परेशानी होती है। ऐसी स्थितियों में निवेशक को अपने लक्ष्यों पर दोबारा काम करना चाहिए। उदाहरण के लिए, पिछले चार वर्षों से शेयर बाजार 40 से 50 प्रतिशत रिटर्न दे रहे हैं। हालांकि ज्यादातर विशेषज्ञों की राय इस साल अपनी उम्मीदों पर थोड़ी लगाम लगाने की है।
घर खरीदना एक अन्य क्षेत्र है, जिसमें कोई भी ऐसी उम्मीदें लगा बैठता है, जो पूरी नहीं होंगी। ज्यादातर लोग एक बड़े घर- तीन से चार कमरों वाले की इच्छा रखते हैं और वह भी उस इलाके में जो अक्सर महंगा होता है। परिणामस्वरूप जब यह योजना पैसों की शक्ल में सामने उभरती है, तब इसमें इतने पैसे चाहिए होते हैं, जो हमारी पहुंच से दूर होते हैं।
यह इसलिए क्योंकि 5 लाख सालाना वेतन पाने वाला व्यक्ति 40 लाख रुपये कीमत वाला घर खरीदना चाहता है जो उसके लिए मुश्किल है, न सिर्फ पैसा इकट्ठा करने के लिहाज से बल्कि इसे फाइनैंस कराने के लिहाज से भी। इस तरह के लक्ष्य पूरे करने में एक और समस्या सामने आती है और वह है कि लोग लक्जरी चीजों को अपनी जरूरतों की फेहरिस्त में शामिल करते हैं।
उदाहरण के लिए, 7 लाख रुपये की कार की बजाए 12 लाख रुपये की कार खरीदने के बारे में सोचना, क्योंकि समाज में आखिर आपका भी कुछ रुतबा है। इस तरह की मांगों से आप हमेशा ऐसी स्थिति में घिरे रहेंगें, जहां आपकी कमाई आपकी जरूरतों को पूरा करने के पीछे ही भागती नजर आएगी। इसलिए यह मायने नहीं रखता कि आपकी कमाई कितनी है, हमेशा अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए पैसे की कमी बनी रहेगी। ऐसे में यही होगा कि आपकी कुछ अहम जरूरतें, छोटी-मोटी जरूरतों को पूरा करने के कारण पीछे रह जाएंगीं।