Khadoor Sahib elections: अमृतसर का जल्लूपुर खेड़ा अपनी तरह का एक अनोखा गांव है। गांव में लगभग सभी मकान आधुनिक साजो-सामान से चमक रहे हैं। कुछ में तो सोलर पैनल भी लगे हैं। लेकिन, गांव को जाने वाली सड़क अधूरी बनी है और इस पर पत्थर और रेत फैली है, जिस पर चलना भी मुश्किल होता है।
गांव के एक बुजुर्ग कहते हैं कि यह सड़क अभी पूरी तरह नहीं बनी है। इस पर रोलर चलेगा तो मिट्टी और पत्थर बैठ जाएंगे। गांव के अधिकांश लोग यही बात कहते हैं, लेकिन 21-22 साल का एक लड़का अलग तरह से अपनी बात रखता है, ‘यह सड़क इसलिए अधूरी पड़ी है ताकि अन्य दलों के लोग गांव में वोट मांगने न आएं।’
जल्लूपुर खेड़ा गांव में प्रवेश करते ही गुरुद्वारे की दीवार पर एक बड़ा सा पोस्टर चिपका है, जो काफी दूर से दिखाई देता है। बड़े-बड़े अक्षरों में उस पर लिखा है, ‘चुनाव में यह गांव पूरे तन, मन से अमृतपाल का समर्थन करता है। अन्य राजनीतिक दलों के नेता यहां वोट मांगने न आएं।’
पंजाब में इस बार बहुत ही कांटे का चुनावी मुकाबला हो रहा है। दशकों बाद चार प्रमुख दल- आम आदमी पार्टी (आप), कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और शिरोमणि अकाली दल (शिअद) चुनावी मैदान में डटी हैं। विशेष यह कि किसी भी दल का किसी से गठबंधन नहीं है। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) भी लड़ाई में है। यह तो चुनाव विश्लेषक बता पाएंगे कि अलग-अलग लड़ना राजनीतिक दलों के लिए कितना फायदेमंद होगा। राज्य की 13 सीट में से एक पर बहुत ही रोचक मुकाबला है। यहां खडूर साहिब (तरनतारन) लोक सभा सीट पर पांचवां प्रत्याशी अमृतपाल सिंह है।
अमृतपाल के पैतृक गांव जल्लूपुर खेड़ा के लोग पूरे जी-जान से उसके साथ हैं। यहां किसी भी दल का पोस्टर या झंडा दिखाई नहीं देता। जैसे ही निर्वाचन आयोग की ओर से ‘वारिस पंजाब दे’ के मुखिया अमृतपाल को चुनाव चिह्न (माइक) मिला, गांव भर में खुशी की लहर दौड़ गई। गांव के युवा सिंह के पोस्टर लहराते हुए इधर-उधर दौड़ रहे थे जबकि बुजुर्ग लोग अमृतपाल के चाचा सुखचैन सिंह के घर एकत्र होकर बधाई दे रहे थे। सुखचैन अमृतपाल के प्रचार की जिम्मेदारी संभाले हुए हैं, जबकि उनका घर उसके चुनाव कार्यालय में तब्दील हो चुका है। अमृतपाल के माता-पिता दूसरे जिले में प्रचार में व्यस्त हैं।
घर के अहाते में लगे टेंट में लगभग 10 लोगों के बैठने की जगह है। जैसे ही अमृतपाल को चुनाव चिह्न मिला, जिले के अन्य हिस्सों से लोग भी सुखचैन के घर यानी चुनाव कार्यालय में जुटने लगे, ताकि मिल-बैठ कर 1 जून को होने वाले चुनाव के लिए ठोस रणनीति बनाई जा सके। गांव में चुनावी गतिविधियां चरम पर है, लेकिन यहां के लोग 2023 में घटी उस घटना के बारे में कुछ भी नहीं बोलना चाहते, जब अपने साथी को छुड़ाने की मांग लेकर अमृतपाल हथियार के साथ थाने में घुस गया था।
एक ग्रामीण ने कहा, ‘हां, अधिकारी थाने में थे। उस दिन जो कुछ हुआ, आप सब जानते हैं। उस घटना के बारे में पूरे देश को पता है। जो लोग इस घटना से सीधे जुड़े थे, विशेष कर इस गांव के लोगों के लिए वह बहुत कठिन समय था। अमृतपाल की गिरफ्तारी के एक महीने बाद तक पुलिस गांव में गश्त कर रही थी।’
सुखचैन सिंह ने कहा, ‘ चुनाव के दौरान बड़ी संख्या में लोग हमारी मदद कर रहे हैं। वे अमृतपाल से प्रेम और उसके द्वारा किए गए भलाई के कामों के कारण ऐसा कर रहे हैं। खालिस्तान को लेकर फैलाई गई पूरी धारण ही गलत है। ‘
समाज को नशे की लत से निजात दिलाना, रोजगार दिलाना, बंदी सिखों की रिहाई और राज्य के साथ समान व्यवहार आदि अमृतपाल के प्रमुख चुनावी मुद्दे हैं। सुखचैन कहते हैं, ‘चुनावी परिदृश्य से अलग खालिस्तान का मुद्दा बिल्कुल गायब है।’
चुनाव कार्यालय में बैठे एक और कार्यकर्ता ने बताया, ‘अमृतपाल के पास कई दलों के नेता आए, लेकिन वह सत्ता या सीट पाने का लालची व्यक्ति नहीं है। वह अपने लोगों की भलाई चाहता है।’ वह यह भी कहते हैं, ‘जरनैल सिंह भिंडरांवाले से अमृतपाल की तुलना ठीक नहीं है। तुलना करने के लिए सिर्फ वैसा दिखना जरूरी नहीं होता। घूम-फिर कर लोगों से पूछिए कि अपने गांव और आसपास के क्षेत्रों के लिए अमृतपाल सिंह ने क्या किया है।’
कई ग्रामीणों ने बताया कि अमृतपाल ने गांव में नशा मुक्ति केंद्र स्थापित किया है। यह काफी सराहनीय कार्य है। अमृतपाल के चुनाव प्रचार का एक और पहलू बंदी सिखों की रिहाई के लिए आवाज उठाना भी है। बंदी सिख वे लोग हैं, जिनकी सजा पूरी हो चुकी है और वे अभी भी जेल में हैं। लोग इसे खालिस्तान से जोड़ कर देखते हैं।
खडूर साहिब गुरुद्वारे के पास दुकान चलाने वाले एक व्यक्ति ने कहा, ‘मैं मानता हूं कि कुछ लोगों ने गलतियां की हैं, लेकिन उन्हें अपने किए की सजा भी मिली है। सजा पूरी होने के बाद उन्हें जेल में रखना तो ज्यादती है। अमृतपाल ने खालिस्तान को लेकर कुछ टिप्पणियां की होंगी। इस मामले में हम उससे सहमत नहीं हैं। कोई भी कानून से ऊपर नहीं हो सकता। लेकिन, चुनाव में हम उसका समर्थन करेंगे।’
शिअद जैसे दल मानते हैं कि अमृतपाल उसके वोटबैंक में सेंध लगाएगा। एक समय अलगाववादी गतिविधियों का गढ़ रहे तरनतारन में गुरुद्वारे के पास दुकानदार कोई सीधी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करते हैं।
एक दुकानदार ने कहा, ‘ड्रग के जाल से बचाने में हमारी मदद के लिए अकाली दल के पास काफी समय था। लेकिन, उनके सत्ता में रहते तो यह धंधा और फला-फूला। उस समय राज्य में नेतृत्व का संकट था और यही कारण है कि 2022 के चुनाव में आप सत्ता में आई। हमारा मानना है कि केवल अमृतपाल ही हालात बदल सकता है। सत्ता में नहीं होने के बावजूद उसने लोगों की काफी मदद की है। सोचिए, यदि वह सत्ता में आया, तो राज्य के लिए क्या कर सकता है।’