लोकसभा चुनाव

लोक सभा चुनाव 2024: राजनीतिक कसौटी पर सगे-संबंधियों की परीक्षा

ओडिशा विधान सभा में तीन बार चिकिती का प्रतिनिधित्व करने वाले उनके पिता ने कहा, 'वह हमेशा कांग्रेस के कार्यकर्ता रहे और आगे भी वह पार्टी के प्रति वफादार रहेंगे।'

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अर्चिस मोहन   
Last Updated- April 17, 2024 | 11:19 PM IST

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एके एंटनी बीमार चल रहे हैं और उनके केरल के पतनमतिट्टा से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) उम्मीदवार अपने बेटे अनिल एंटनी के खिलाफ प्रचार करने की संभावना बहुत कम है। लेकिन उनकी इच्छा है कि उनका बेटा चुनाव हार जाए। इस समय एंटनी की स्थिति 1984 के लोकसभा चुनाव के दौरान ग्वालियर सीट के लिए भाजपा की विजयाराजे सिंधिया और उनके बेटे कांग्रेस नेता माधवराव सिंधिया के बीच राजनीतिक जोर-आजमाइश की याद दिलाती है।

भाजपा की संस्थापक सदस्य और इसके पैतृक संगठन जन संघ की प्रमुख समर्थक विजयाराजे ने उस समय अपने बेटे के खिलाफ प्रचार किया था, जो राजीव गांधी के कहने पर भाजपा प्रत्याशी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ चुनाव लड़ रहे थे।

एंटनी परिवार की कहानी चुनावी राजनीति और व्यक्तिगत महत्त्वाकांक्षाओं के बीच द्वंद्व का बड़ा उदाहरण है। इस बार यानी 2024 के लोक सभा चुनाव में एंटनी की तरह कई परिवारों के बीच खींचतान और यहां तक कि बहन-भाई के बीच कड़ी प्रतिद्वंद्विता देखने को मिलेगी। लेकिन सभी माता-पिता ऐसे नहीं हैं कि राजनीति के लिए पारिवारिक संबंधों को तिलांजलि दे दें। भले उन्हें अपनी विचारधारा से हटने की तोहमत झेलनी पड़े या पार्टी की सदस्यता जाए, वे अपने परिवार के सदस्यों या बेटे-बेटी के राजनीतिक भविष्य के लिए हर चुनौती का सामना करने को तैयार हैं।

ओडिशा में कांग्रेस ने अपने वरिष्ठ विधायक सुरेश राउत्रे को इसलिए कारण बताओ नोटिस दिया है, क्योंकि उन्होंने भुवनेश्वर लोक सभा सीट से बीजू जनता दल (बीजद) के उम्मीदवार अपने बेटे का खुलकर समर्थन किया है। राउत्रे जटानी विधान सभा सीट से छह बार विधायक रहे हैं।

ओडिशा में कई परिवारों में भिड़ंत

ओडिशा से आ रही खबरों के मुताबिक सुरेश ने शहर के पार्कों में जाकर अपने बेटे के लिए वोट मांगे थे। अपने बचाव में सुरेश ने कहा कि वह 51 वर्षों से कांग्रेस के कार्यकर्ता रहे हैं और इसी पार्टी के लिए काम करते हुए दम तोड़ेंगे। उन्होंने कहा, ‘मैंने किसी से अपने बेटे को वोट देने के लिए नहीं कहा है, परंतु जब लोग मुझसे मेरे बेटे को वोट देने के लिए सलाह लेते हैं तो मैं जरूर उन्हें ऐसा करने के लिए कहता हूं।’

ओडिशा के केंद्रपाड़ा जिले के पटकुरा विधान सभा क्षेत्र में भाजपा नेता और पूर्व मंत्री बिजॉय महापात्र भी बीजद उम्मीदवार अपने बेटे अरबिंद के लिए प्रचार कर रहे हैं। बिजॉय 1997 में अस्तित्व में आई बीजद के संस्थापक सदस्यों में रहे हैं, लेकिन बाद में वह मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के कड़े आलोचक और विरोधी बन गए। वह 2019 के चुनाव में पटकुरा से भाजपा के टिकट पर लड़े थे, लेकिन हार गए।

उसके बाद से भाजपा में उनकी सक्रियता कम होती गई। लेकिन, अब बेटे के पक्ष में खड़े होने के लिए भाजपा की केंद्रपाड़ा इकाई ने उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की मांग की है।

चचेरे बहिन-भाइयों में मुकाबला

आंध्र प्रदेश के कडप्पा में कांग्रेस की राज्य इकाई प्रमुख वाईएस शर्मिला रेड्डी अपने चचेरे भाई मौजूदा सांसद वाईएस अविनाश रेड्डी के खिलाफ मैदान में हैं, जो वाईएसआर कांग्रेस के उम्मीदवार हैं। शर्मिला मुख्यमंत्री और वाईएसआर कांग्रेस के अध्यक्ष वाईएस जगन मोहन रेड्डी की बहन हैं।

अविनाश रेड्डी शर्मिला के चाचा और कडप्पा के पूर्व सांसद वाईएस विवेकानंद रेड्डी की हत्या के आरोपों का सामना कर रहे हैं। विवेकानंद रेड्डी पूर्व मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी के छोटे भाई थे। उनकी हत्या 15 मार्च 2019 में आम चुनाव से कुछ सप्ताह पहले उनके ही घर पर कर दी गई थी।

संबंधों में संतुलन

बिहार के समस्तीपुर से चिराग पासवान के नेतृत्व वाली लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने जनता दल (यूनाइटेड) के मंत्री अशोक कुमार चौधरी की बेटी शांभवी चौधरी को टिकट दिया है। शांभवी के दादा महावीर चौधरी कांग्रेस से बिहार सरकार में मंत्री थे।

शांभवी को टिकट देकर चिराग और जदयू प्रमुख एवं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बीच 2020 विधान सभा चुनावों के दौरान आई खटास को दूर करने का प्रयास किया गया है। नीतीश की जदयू और चिराग की लोजपा अब राजग गठबंधन का हिस्सा हैं।

पिता के रुख की सजा

इस माह के शुरू में बदायूं लोक सभा सीट से भाजपा की सांसद संघमित्रा मौर्य के रोने वाला वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ था। उत्तर प्रदेश में 2022 के विधान सभा चुनाव से कुछ समय पहले संघमित्रा के पिता और योगी सरकार में मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य भाजपा से इस्तीफा देकर समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए थे। इससे संघमित्रा को अपनी पार्टी में जवाब देते नहीं बन रहा था। स्वामी प्रसाद मौर्य ने अब सपा भी छोड़ दी और अपनी अलग पार्टी बना ली। उधर, भाजपा ने इस बार संघमित्रा को लोक सभा का टिकट देने से इनकार कर दिया है।

राजनीति से किनारा

पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा के बेटे जयंत सिन्हा ने राजनीति से किनारा ही कर लिया है। उनके पिता यशवंत सिन्हा अटलबिहारी वाजपेयी नीत राजग सरकार में कद्दावर मंत्री हुआ करते थे, लेकिन 2014 के आई भाजपा सरकार के वह बड़े आलोचक रहे हैं। वह तृणमूल कांग्रेस में शामिल हुए और बाद में राष्ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मुर्मू के खिलाफ विपक्ष के साझा उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतरे।

उसके बाद से भाजपा नेता जयंत सिन्हा से अनेक प्रकार के कड़े सवाल पूछे जाते रहे हैं। झारखंड के हजारीबाग से दो बार सांसद चुने गए जयंत को इस बार भाजपा ने टिकट नहीं दिया। उन्होंने 2 मार्च को पार्टी के उम्मीदवारों की सूची आने से कुछ घंटे पहले ही सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने का ऐलान कर दिया।

परिवारों की सक्रियता

पंजाब में शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के वरिष्ठ नेता सिकंदर सिंह मलूका की बहू परमपाल कौर सिद्धू आईएएस की नौकरी छोडक़र अपने पति के साथ गुरुवार को भाजपा में शामिल हो गईं। सूत्रों के अनुसार पार्टी उन्हें बठिंडा से शिअद की मौजूदा सांसद हरसिमरत कौर बादल के खिलाफ मैदान में उतार सकती है। सिद्धू के लिए उनके ससुर और शिअद नेता मूलका जमकर प्रचार कर रहे हैं।

इस बार लोक सभा चुनाव में ऐसे और भी कई उदाहरण हैं, जिनमें नेता पारिवारिक संबंधों के दबाव में दिख रहे हैं। महाराष्ट्र के बारामती में उपमुख्यमंत्री अजित पवार की पत्नी सुनेत्रा पवार मौजूदा सांसद अपनी ननद सुप्रिया सुले को चुनौती दे रही हैं।

सुनेत्रा अजित पवार गुट की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) की ओर से चुनाव लड़ रही हैं जबकि सुले अपने पिता शरद पवार गुट की एनसीपी से मैदान में हैं। इसी प्रकार राज्य की उस्मानाबाद सीट पर उद्धव ठाकरे की शिवसेना के उम्मीदवार ओमप्रकाश राजे निंबालकर का मुकाबला अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी की अर्चना पाटिल से होगा। दोनों ही महिलाएं शरद परिवार से ताल्लुक रखती हैं।

ओडिशा के गंजम जिले में दो भाई, कांग्रेस नेता के बेटे, ओडिशा के पूर्व विधान सभा अध्यक्ष चिंतामणि ध्यान सामंतरे चिकिती विधान सभा सीट पर चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा ने यहां से मनोरंजन ध्यान सामंतरे को कांग्रेस के रविंद्र नाथ ध्यान सामंतरे के खिलाफ मैदान में उतारा है।

ओडिशा विधान सभा में तीन बार चिकिती का प्रतिनिधित्व करने वाले उनके पिता ने कहा, ‘वह हमेशा कांग्रेस के कार्यकर्ता रहे और आगे भी वह पार्टी के प्रति वफादार रहेंगे।’

यह सीट इस समय बीजद की उषा देवी के पास है, जो राज्य की शहरी विकास मंत्री हैं। वह इस सीट से सन 2000 से लगातार जीतती आ रही हैं और इस बार उन्होंने अपने बेटे चिन्मयानंद के लिए सीट छोड़ दी है।

सिंधिया परिवार के अलावा भारतीय राजनीति में सबसे बड़ी पारिवारिक कटुता वर्ष 1984 के चुनाव में देखने को मिली थी। उस समय विपक्षी दलों के समर्थन से मेनका गांधी ने अपने देवर राजीव गांधी के खिलाफ अमेठी से चुनाव लड़ा था। उस समय विपक्ष राजीव गांधी को रोकने में पूरी तरह विफल रहा था। मेनका बुरी तरह हारी थीं।

वर्ष 2014 में तृणमूल कांग्रेस ने स्व. प्रिय रंजन दासमुंशी के भाई सत्य रंजन दासमुंशी को पश्चिम बंगाल की रायगंज सीट से प्रिय रंजन की विधवा दीपा दासमुंशी के खिलाफ मैदान में उतारा था। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की कड़ी आलोचक दीपा इस सीट से सांसद थीं। दीपा को 3,15,881 वोट मिले थे, परंतु वह सीपीआई(एम) के मोहम्मद सलीम से 1634 वोटों से हार गई थीं। सत्य रंजन को 1,90,000 वोट मिले थे।

First Published : April 17, 2024 | 11:19 PM IST