बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारी के तहत निर्वाचन आयोग ने “विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR)” अभियान शुरू किया है। यह राज्य में 2003 के बाद पहली बार इस तरह का व्यापक वोटर लिस्ट सत्यापन (Bihar Electoral roll revision) है। लेकिन इस प्रक्रिया में करीब 2.93 करोड़ मतदाताओं को अपनी पात्रता साबित करने के लिए कम से कम 11 निर्धारित दस्तावेजों में से कोई एक प्रस्तुत करना अनिवार्य किया गया है, जिससे गरीब, प्रवासी और हाशिए पर मौजूद समुदायों में चिंता गहराती जा रही है।
निर्वाचन आयोग ने मतदाता पहचान के लिए निम्नलिखित 11 दस्तावेजों को मान्य बताया है:
Bihar Electoral roll revision में आधार, पैन कार्ड और ड्राइविंग लाइसेंस को स्वतंत्र रूप से मान्य नहीं माना गया है।
साल 2003 में जिन मतदाताओं के नाम पहले से वोटर लिस्ट में शामिल थे, वे इस दस्तावेज़ सत्यापन से छूट में हैं। उनके बच्चों को भी अपने माता-पिता की नागरिकता साबित करने की आवश्यकता नहीं है।
ग्रामीण, गरीब और प्रवासी आबादी के लिए ये दस्तावेज़ जुटाना किसी दुरूह प्रक्रिया से कम नहीं है। दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक, कई गरीब परिवारों के पास इन 11 दस्तावेजों में से कोई भी उपलब्ध नहीं है। बड़ी संख्या में युवा रोज़गार की तलाश में राज्य से बाहर चले गए हैं और अपने परिवार को समय पर दस्तावेज भेजना कठिन हो गया है।
2011 की सामाजिक-आर्थिक जनगणना के अनुसार, बिहार के 65.58% ग्रामीण परिवारों के पास कोई जमीन नहीं है, जिससे वे भूमि या निवास से जुड़े दस्तावेज़ पेश नहीं कर सकते। वहीं, विदेश मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 2023 तक केवल 27.44 लाख पासपोर्ट ही राज्य में जारी हुए थे — यानी कुल आबादी का सिर्फ 2%।
बिहार जाति सर्वेक्षण 2022 बताता है कि सरकारी सेवा में कार्यरत लोग केवल 1.57% (20.49 लाख) हैं, जो शायद दस्तावेज़ों की न्यूनतम आवश्यकता को पूरा करते हैं।
बिहार की कुल जनसंख्या 13.07 करोड़ (2022) में से 84% लोग OBC, EBC, SC/ST समुदाय से आते हैं। हालांकि इन समुदायों में से कितने लोगों के पास वैध जाति या निवास प्रमाणपत्र हैं, इसका कोई स्पष्ट आंकड़ा उपलब्ध नहीं है।
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