RBI MPC Meeting: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की 6 सदस्यों वाली मॉनेटरी पालिसी कमिटी (MPC) कल यानी 8 अगस्त को ब्याज दरों को लेकर अपने फैसले का एलान करेगी।
रॉयटर्स के सर्वे के अनुसार, भारतीय रुपये का आउटलुक पिछले महीने से बमुश्किल बदला है। ऐसा इसलिए क्योंकि भारतीय रिज़र्व बैंक ने इंडियन करेंसी को एक सिमित दायरे में रखने का प्रयास किया है।
जापान के कैरी ट्रेड में अचानक लिक्विडेशन में हलचल के बाद वैश्विक बाजारों में बड़ी गिरावट ने मंगलवार को रुपये को 83.96 प्रति डॉलर के ऑल टाइम लॉ लेवल पर धकेल दिया।
फरवरी 2023 से ब्याज दरों में नहीं हुआ कोई बदलाव
बता दें कि आरबीआई (RBI) ने मई 2022 से फरवरी 2023 के बीच रेपो रेट में 2.5 प्रतिशत बढ़ाकर 6.5 फीसदी कर दिया था। इसके बाद से एमपीसी ने पिछली आठ मॉनेटरी पॉलिसी की बैठक में ब्याज दर में किसी तरह का बदलाव नहीं किया है।
आईडीएफसी फर्स्ट बैंक की मुख्य अर्थशास्त्री गौरा सेन गुप्ता ने कहा, ‘फूड इन्फ्लेशन जोखिम को लेकर पालिसी का रुख सतर्क होगा। गर्मियों के दौरान लू चलने और जून में मॉनसून की सुस्त चाल जैसे प्रतिकूल मौसम के कारण खाद्य महंगाई (Food Inflation) के बढ़ने का दबाव बना हुआ है। रोजाना खाने-पीने की चीजों की कीमतों से संकेत मिलता है कि जुलाई में रिटेल कीमतें ऊंची रही हैं और सब्जियों जैसे जल्द खराब होने वाले उत्पादों की आपूर्ति भी प्रभावित हुई है।’
उन्होंने कहा, ‘राहत की बात है कि मुख्य मुद्रास्फीति ऐतिहासिक निचले स्तर पर है, जिससे संकेत मिलता है कि सामान्य तौर पर कीमतों का दबाव नहीं है। वृद्धि भी मजबूत बनी हुई है, ऐसे में मौद्रिक नीति में खुदरा मुद्रास्फीति को 4 फीसदी लक्ष्य के करीब बनाए रखने पर ध्यान दिया जाएगा।’
इक्रा की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा, ‘वित्त वर्ष 2024 में उच्च वृद्धि और वित्त वर्ष 2025 की पहली तिमाही में 4.9 फीसदी मुद्रास्फीति को देखते हुए उन चार सदस्यों जिन्होंने जून में दर और रुख में यथास्थिति बनाए रखने के पक्ष में मत दिया था, के वोटिंग रुझान पर असर संभवत: नहीं पड़ेगा। अगर मॉनसून के उत्तरार्द्ध में बारिश का वितरण सामान्य रहा और खाद्य मुद्रास्फीति आगे भी अनुकूल रही तथा वैश्विक और घरेलू मोर्चे पर कुछ प्रतिकूल घटनाएं नहीं हुईं तो अक्टूबर 2024 में आरबीआई के रुख में बदलाव आ सकता है।’
पिछली मॉनेटरी पॉलिसी में क्या हुआ था?
एमपीसी के 6 सदस्यों में से दो ने जून की बैठक में ब्याज दर में कटौती करने के पक्ष में मत दिया था। उनका तर्क था कि मॉनेटरी पॉलिसी ज्यादा सख्त होने से इकनॉमिक ग्रोथ पर असर पड़ सकता है।