अर्थव्यवस्था

भारतीय विंड एनर्जी इंडस्ट्री पर अमेरिकी टैरिफ का नहीं होगा कोई खास असर: गिरीश तांती

तांती ने कहा कि भारत में साल 2030 तक चालू की जाने वाली परियोजनाओं के लिए 50 अरब डॉलर से अधिक का निवेश प्रस्तावित

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बीएस संवाददाता   
Last Updated- August 27, 2025 | 10:29 PM IST

सुजलॉन एनर्जी के वाइस चेयरमैन गिरीश तांती ने बिज़नेस स्टैंडर्ड के साथ विशेष बातचीत में बताया कि अ​धिक अमेरिकी टैरिफ या व्यापार की अनिश्चितता का भारतीय पवन ऊर्जा उद्योग पर कोई खास असर पड़ने के आसार नहीं हैं, क्योंकि इसके उत्पाद वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी हैं और उनकी भारी मांग है। उन्होंने कहा कि भारत में साल 2030 तक चालू की जाने वाली परियोजनाओं के लिए 50 अरब डॉलर से अधिक का निवेश प्रस्तावित है, जबकि देश ने 20 अरब डॉलर का वैश्विक निर्यात बाजार हासिल कर लिया है। प्रमुख अंश :

हाल में जारी जीडब्ल्यूईसी की रिपोर्ट के तीन प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?

यह रिपोर्ट भारत के ऊर्जा मिश्रण में पवन ऊर्जा के महत्त्व को उजागर करती है। इसमें इस बात का विस्तृत आकलन शामिल है कि पवन ऊर्जा भारत के ऊर्जा परिवर्तन का केंद्र क्यों बनी रहेगी। इसमें कहा गया है कि पवन ऊर्जा की मांग दमदार बनी रहेगी। हालांकि देश का लक्ष्य साल 2030 तक 100 गीगावॉट पवन ऊर्जा क्षमता हासिल करना है, लेकिन मांग के लिहाज से हम कम से कम 122 गीगावॉट का स्तर हासिल करने में सक्षम होंगे।

इसमें सरकरी बिजली कंपनियों की 107 गीगावॉट तथा वाणिज्यिक एवं औद्योगिक (सीऐंडआई) बाजार की अतिरिक्त 15 गीगावॉट क्षमता शामिल हैं। एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू यह है कि भारत में निर्यात के रूप में वैश्विक पवन ऊर्जा मूल्य श्रृंखला में 10 प्रतिशत का योगदान करने की क्षमता है, जो लगभग 20 अरब डॉलर के बराबर है।

क्या हाल ही में व्यापार टैरिफ के मोर्चे पर हुए घटनाक्रम को देखते हुए भारत के लिए यह 10 प्रतिशत क्षमता हासिल करना संभव होगा? अमेरिका ने भारत पर हाल ही में अतिरिक्त 25 प्रतिशत शुल्क लगाया है।

भारतीय उद्योग ऐसे चरण में है, जहां अक्षय ऊर्जा ‘होनी अच्छी है’ से यह ‘जरूर होनी चाहिए’ वाली स्थिति में आ गई है, जो पूरी तरह से अंतिम उपभोक्ताओं के लिए समाधानों की व्यावसायिक व्यावहारिकता और तकनीकी प्रदर्शन पर आधारित है। दुनिया भर में प्राकृति ऊर्जा परिवर्तन हो रहा है। यहां-वहां होने वाली कुछ छोटी-मोटी रुकावटों के बावजूद, विशुद्ध रूप से उपभोक्ता दृष्टिकोण से वृद्धि के कारक काफी दमदार हैं। साथ ही दुनिया में ईएसजी से संबंधित काफी धन उपलब्ध है, जो कार्बन के स्तर में कमी लाने की कवायद को बढ़ावा दे रहा है।

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चूंकि हमारे पास ऐसा उत्पाद या समाधान है, जो वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी है, इसलिए जहां भी हमारे सकारात्मक संबंध होंगे, हम वहां बिक्री करेंगे। साथ ही जब अमेरिकी बाजार को निर्यात किए जाने की बात आती है, तो भारत का वहां बहुत ज्यादा लेना-देना नहीं है। भारत के कुल पवन ऊर्जा उपकरण निर्यात में अमेरिका की हिस्सेदारी केवल लगभग 5 प्रतिशत ही है।

भारत की पवन ऊर्जा उपकरणों की घरेलू विनिर्माण क्षमता साल 2014 की 10 गीगावॉट से बढ़कर वर्तमान में 18 गीगावॉट हो गई है। सौर ऊर्जा क्षेत्र में हुई प्रगति की तुलना में यह कम लग सकता है। हमें क्या चीज रोक रही है?

भारत की सौर ऊर्जा क्षमता 130 गीगवॉट है, जबकि साल 2030 तक 300 गीगावॉट का लक्ष्य है। इसलिए लक्ष्य का 50 प्रतिशत से भी कम हासिल किया गया है। पवन ऊर्जा के मामले में हम पहले ही लक्ष्य का 50 प्रतिशत पार कर चुके हैं, जो इसी अवधि में 100 गीगावॉट हासिल करना है। इसलिए, मुझे नहीं लगता कि पवन ऊर्जा क्षेत्र धीमी रफ्तार से बढ़ रहा है।

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अगले 5 साल की अव​धि के दौरान 50 गीगावॉट की अतिरिक्त पवन ऊर्जा उत्पादन क्षमता स्थापित करने में किस तरह का निवेश होगा?

आम तौर पर 1 मेगावॉट क्षमता स्थापित करने के लिए तकरीबन 10 लाख डॉलर का निवेश होता है। इसलिए 50,000 मेगावॉट के लिए 50 अरब डॉलर के आसपास का निवेश होगा।

First Published : August 27, 2025 | 10:14 PM IST