भारत की बेरोजगारी दर (unemployment rate) चार महीने में सबसे उच्च स्तर पहुंच गई है। जैसा कि हर साल भारत की वर्कफोर्स को ज्यादा लोग ज्वाइन करते हैं। ऐसे में आने वाले समय में भी बेरोजगारी दर नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली सरकार के लिए एक कठिन चुनौती रहेगी। मौजूदा समय में यह चुनौती इसलिए भी अहम है क्योंकि अगले साल मोदी सरकार अपने लगातार तीसरे टर्म के लिए चुनाव मैदान में होगी।
रिसर्च फर्म सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडिया इकॉनमी से लिए डेटा के मुताबिक, देश भर में नौकरी जाने की दर अप्रैल में 8.11 फीसदी हो गई है, जो मार्च में 7.8 फीसदी थी। यह दिसंबर के बाद से सबसे ज्यादा नौकरी जाने की दर है। इसी अवधि में शहरी बेरोजगारी 8.51 फीसदी से 9.81 फीसदी हो गई है।
CMIE के हेड महेश व्यास ने कहा, ‘देश में नये लोगों के वर्कफोर्स में जुड़ने की वजह से बेरोजगारी दर बढ़ी है।’
भारत का लेबर फोर्स 2.55 करोड़ लोग बढ़कर 46.76 करोड़ हो गया है। अप्रैल में लेबर पार्टिसिपेशन रेट बढ़कर 41.98 फीसदी हो गया है जो पिछले तीन साल में सबसे ज्यादा है। जो नए लोग रोजगार के लिए मार्केट में आए हैं उनमें से 87 फीसदी को नौकरी मिल गई हैं। क्योंकि अप्रैल महीने के दौरान अतिरिक्त 2.21 करोड़ नौकरियां क्रियेट की गईं। अप्रैल में रोजगार दर बढ़कर 38.57 फीसदी हो गया, जो मार्च 2020 के बाद सबसे ज्यादा है।
व्यास ने कहा, ‘अप्रैल के महीने में LPR और भारत में रोजगार दर में बढ़ोत्तरी, लोगों के बीच रोजगार पाने की चाहत को दर्शाती है।’
CMIE के आंकड़ों से पता चलता है कि शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक नौकरियां क्रियेट की गईं। ग्रामीण श्रम बल में शामिल होने वाले लगभग 94.6 फीसदी लोग रोजगार प्राप्त कर चुके हैं, जबकि शहरी क्षेत्रों में केवल 54.8 फीसदी को नई नौकरी मिली है। CMIE का निष्कर्ष इस तथ्य की पुष्टि करता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार के रोजगार गारंटी कार्यक्रम की मांग कम हो रही है।
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अपने अप्रैल के बुलेटिन में, भारतीय रिजर्व बैंक ने कहा कि सर्दियों की फसल की बेहतर बुवाई और अनौपचारिक क्षेत्र के रोजगार में सुधार के कारण महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत काम की मांग जनवरी से कम हो रही है।
इंडसइंड बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री गौरव कपूर के अनुसार महामारी के बाद से बढ़ती श्रम शक्ति की भागीदारी आर्थिक सामान्यीकरण का अंतिम चरण है। उन्होंने कहा, ‘यह एक संकेत है कि सामान्यीकरण हो रहा है, या पहले ही हो चुका है।’