वित्तीय क्षेत्र की बड़ी कंपनी सिटी ग्रुप ने इस वित्तीय वर्ष में भारत की विकास दर का अनुमान 7.7 फीसदी लगाया है जबकि वित्त्तीय वर्ष 2007-08 में देश ने 9.1 फीसदी की विकास दर अर्जित की थी।
यह प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद द्वारा लगाए गए अनुमान के काफी करीब है। सिटी ने विकास दर में इस कमी की वजह कमजोर वैश्विक आर्थिक रुझानों, लगातार जारी क्रेडिट संकट और राजनीति को बताया है लेकिन साथ ही यह भी कहा कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में कमी और तेज संरचनात्मक सुधार से भारत की विकास दर तेज हो सकती है।
सिटी ने ग्लोबल इकॉनोमिक आउटलुक एंड स्ट्रैटजी नाम की अपनी रिपोर्ट में कहा कि लगातार आ रही बुरी खबरों, कमजोर वैश्विक विकास, लगातार जारी क्रेडिट संकट और राजनीति की वजह से हमने भारत की विकास दर की संभावना 7.7 फीसदी तय की है जबकि वित्तीय वर्ष 2010 में विकास दर का अनुमान 7.9 फीसदी है।
हालांकि रिपोर्ट में उन वजहों पर भी गौर किया गया है जिससे भारत अपनी विकास दर बढ़ा सकता है इनमें कच्चे तेल की कीमतों में कमी और तेज संरचनात्मक सुधार हैं। सिटी की रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि तेल की कीमतों के 100 डॉलर प्रति बैरल या इससे कम के स्तर पर रहने पर अनुमानित महंगाई कम हो सकती है, आर्थिक गतिविधियां बढ़ सकती हैं और साथ ही आगे ब्याज दरों में बढोतरी की कोई जरुरत नहीं होगी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि कच्चे तेल की कीमतों में एक डॉलर प्रति डॉलर का बदलाव होंने से व्यापार खाता 3,000 करोड़ घट या बढ़ जाता है। जबकि तेल कंपनियों को करीब इतने ही रुपयों की अंडर रिकवरी करनी पड़ती है। दूसरी ओर महंगाई पर कहा कि इसके घटने में समय लग सकता है और इसकी वजह सेकेंड राउंड प्रभाव है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि वामपंथियों की सरकार से विदाई के बाद पेंशन, बीमा में होने वाले सुधार और संभावित निजीकरण से वित्त्तीय हालात सुधर सकते हैं और तरलता की हालत भी सुधर सकती है। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने भी 7.7 फीसदी की विकास दर का अनुमान लगाया है।