अर्थव्यवस्था

50 साल बाद ऐसी मंदी कि इस साल बढ़ेगी गरीबी

Published by
राघव अग्रवाल
Last Updated- December 20, 2022 | 11:38 PM IST

मंगलवार को जारी विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया 1970 के बाद से अपनी सबसे बड़ी मंदी में है और 2022 के अंत तक 68.5 करोड़ लोग अत्यधिक गरीबी में जीवन यापन कर सकते हैं। यह 2020 के बाद पिछले दो दशकों में गरीबी में कमी के लिए 2022 को दूसरा सबसे खराब वर्ष बना देगा। ‘2022 इन नाइन चार्ट्स’ नामक रिपोर्ट में कहा गया कि विश्व की आबादी का सात फीसदी (करीब-करीब 57.4 करोड़) 2030 तक अत्यधिक गरीब में होगा। यह विश्व बैंक द्वारा पूर्व में निर्धारित 3 फीसदी के वैश्विक लक्ष्य से कम है।

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘महामारी के लंबे समय तक रहने वाले प्रभावों के अलावा, खाद्य और ऊर्जा की कीमतों में वृद्धि- जो कि जलवायु संबंधी झटकों और यूक्रेन में युद्ध जैसे संघर्षों से प्रेरित है। इसने सुधार में तेजी से बाधा उत्पन्न की है।’ इसमें कहा गया है कि विकासशील देशों में कर्ज संकट पिछले एक साल में तेज हुआ है। दुनिया के सबसे गरीब देशों में से लगभग 60 फीसदी या तो कर्ज संकट में हैं या इसके जोखिम में हैं। इसके अलावा, ऋण की संरचना 2010 से नाटकीय रूप से बदल गई है, जिसमें निजी लेनदार अब इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘कर्ज के बोझ से दबे दुनिया के सबसे गरीब देश आर्थिक सुधार, स्वास्थ्य, जलवायु परिवर्तन या शिक्षा समेत अन्य प्रमुख विकास प्राथमिकताओं में महत्त्वपूर्ण निवेश करने में सक्षम नहीं हैं।’

विश्व बैंक के अनुसार, 2022 की पहली छमाही में ऊर्जा बाजारों में आए झटकों ने 2030 तक सस्ती ऊर्जा तक सार्वभौमिक पहुंच प्रदान करने की प्रगति को धीमा कर दिया है। वर्तमान में 73.3 करोड़ लोगों के पास बिजली नहीं है और 2030 तक 67 करोड़ लोग इसके बिना रहेंगे। यह विश्व बैंक द्वारा 2021 में अनुमानित 66 करोड़ से 1 करोड़ अधिक है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि विशेष रूप से निम्न और मध्यम आय वाले देशों में गरीबी में 2000 से प्राप्त सभी लाभ खो गए हैं। निम्न और मध्यम आय वाले देशों में प्रत्येक 100 बच्चों में अब 60 सीखने से वंचित हैं और 10 स्कूलों से वंचित हैं। इसमें कहा गया है, ‘यदि इन नुकसानों को उलटा नहीं किया जाता है, तो वे आज के बच्चों और युवाओं की भविष्य की उत्पादकता और जीवन भर की आय को कम कर देंगे। उनके देशों की आर्थिक संभावनाओं को भी नुकसान पहुंचाएंगे और अधिक असमानता और सामाजिक अशांति के जोखिम को बढ़ाएंगे।’

First Published : December 20, 2022 | 9:50 PM IST