कोरोनावायरस महामारी की दूसरी लहर के बीच राज्यों की बाजार से कोष जुटाने की प्रक्रिया काफी धीमी है। केयर रेटिंग्स के अनुसार इस वित्त वर्ष में राज्य सरकारों की समेकित उधारी गत वर्ष की समान अवधि की तुलना में 54 फीसदी कम रही है। केवल 12 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश ने इस वित्त वर्ष में कुल 37,200 करोड़ रुपये की राशि जुटाई है जबकि गत वर्ष समान अवधि में 22 राज्यों और एक केंद्रशासित प्रदेश ने 81,005 करोड़ रुपये की राशि एकत्रित की थी।
ऋण कार्यक्रम के अनुसार 23 राज्यों और एक केंद्रशासित प्रदेश को इस अवधि में 81,900 करोड़ रुपये जुटाने थे लेकिन इसका महज 45 फीसदी हिस्सा ही जुटाया जा सका है। राज्यों के विकास संबंधी ऋण का प्रतिफल प्रसार 10 वर्ष अवधि की समान परिपक्वता वाली सरकारी प्रतिभूति के लिए करीब 80 आधार अंक के समान है। यह उचित है क्योंकि सामान्य समय में यह प्रसार 50-60 आधार अंकों के दायरे में रहता है।
पहली नजर में यह बॉन्ड बाजार के लिए अच्छी खबर लगती है लेकिन बाजार प्रतिभागी इसे लेकर बहुत निश्चित नहीं हैं।
एक विदेशी बैंक के ट्रेजरी प्रमुख ने कहा, ‘राज्य इसलिए ऋण नहीं ले रहे हैं क्योंकि वे कोविड के बढ़ते मामलों से निपटने में लगे हैं। उन्होंने अन्य परियोजनाओं पर व्यय शुरू नहीं किया है। एक बार महामारी कमजोर पड़ेगी तो राज्य ऋण बढ़ाएंगे और तब बाजार पर काफी दबाव पड़ेगा।’ केयर रेटिंग्स के मुताबिक कुछ राज्य राज्य विकास ऋण (एसडीएल के माध्यम से) लंबी अवधि के ऋण लेने के बजाय एसडीएफ (स्पेशल ड्राइंग फैसिलिटी) तथा डब्ल्यूएमए (वेज ऐंड मीन्स एडवांस) के माध्यम से अल्पावधि का ऋण ले सकते हैं।
केयर रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्र मदन सबनवीस के मुताबिक, ‘एसडीएफ और डब्ल्यूएमए के जरिये लिया जाने वाला ऋण रीपो दर से जुड़ा होता है और उसकी लागत एसडीएल की तुलना में कम होती है। राज्यों का डब्ल्यूएमए 30 अप्रैल 2021 को 4,506 करोड़ रुपये था जो 23 अप्रैल 2021 के 2,363 करेाड़ रुपये की तुलना में काफी अधिक है।’
बॉन्ड कारोबारियों का कहना है कि इसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि राज्य पहले ही ब्याज लागत के कारण दबाव में हैं और वे धीमी गति से व्यय करना चाहते हैं। इसके अलावा गत वर्ष के लॉकडाउन के उलट इस बार बंदी स्थानीय स्तर पर लगाई जा रही हैं। आर्थिक गतिविधियां धीमी हुई हैं लेकिन गत वर्ष की तरह ठप नहीं हैं। यह भी संभव है कि राज्य प्रतीक्षा कर रहे हों कि ऋण की लागत में और कमी आए। यहां तक कि कंपनियां और सरकारी उपक्रमों ने भी अपनी ऋण योजनाओं में कटौती की है क्योंकि उन्हें आशा है कि रिजर्व बैंक की नीतियों की वजह से बॉन्ड प्रतिफल में आगे और कमी आएगी।