विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) में मौजूद कारोबारी इकाइयों के लिए केंद्र सरकार की ओर से प्रत्यक्ष कर में नई रियायतें दिए जाने की संभावना नहीं है। मामले की जानकारी रखने वाले लोगों ने बताया कि एसईजेड अधिनियम, 2005 में प्रस्तावित संशोधन के तहत इन इकाइयों को पहले से मिल रही रियायतें बरकरार रखी जा सकती हैं।
वाणिज्य विभाग द्वारा प्रस्तावित संशोधन को जल्द ही मंजूरी के लिए मंत्रिमंडल के पास भेजा जाएगा। इससे पहले विभाग डेवलपमेंट एंटरप्राइज ऐंड सर्विसेज हब (देश) विधेयक, 2023 के जरिये ये बदलाव करना चाहता था मगर उस पर इसे वित्त मंत्रालय की कड़ी आलोचना का शिकार होना पड़ा था। मामले की जानकारी रखने वाले एक व्यक्ति ने
बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘एसईजेड डेवलपरों को निर्धारित अवधि तक प्रत्यक्ष कर में छूट मिलती रहेगी, लेकिन उन्हें कोई अतिरिक्त रियायत नहीं दी जाएगी।’ वाणिज्य विभाग ने देश विधेयक के जरिये एसईजेड में
मौजूद सभी नई इकाइयों के लिए कॉरपोरेट कर की 15 फीसदी रियायती दर का प्रस्ताव दिया था ताकि ऐसे क्षेत्रों को भारत का नया विनिर्माण केंद्र बनाया जा सके।
एसईजेड देश के भीतर ऐसे क्षेत्र हैं, जिनके अलग-अलग आर्थिक नियम हैं और इन्हें विदेशी क्षेत्र माना जाता है। एसईजेड का ध्यान मुख्य तौर पर निर्यात को बढ़ावा देने पर रहता है। ऐसे क्षेत्रों में काम करने वाली कंपनियों को सरकार से कर रियायत मिलती है।
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वाणिज्य विभाग ने देश विधेयक को खत्म करते हुए एसईजेड (संशोधन) विधेयक, 2023 तैयार किया है। इसका उद्देश्य सीमा शुल्क नियमों में बदलाव करते हुए अनुकूल राजकोषीय ढांचा तैयार करना और यह सुनिश्चित करना है कि एसईजेड को घरेलू बाजार के साथ आसानी से एकीकृत किया जाए ताकि इन क्षेत्रों में मौजूद इकाइयों को छोटा बाजार होने के कारण नुकसान न होने पाए।
एसईजेड से होने वाले निर्यात का भारत के कुल निर्यात में करीब 20 फीसदी योगदान है। मगर सरकार को लगता है कि उसका प्रदर्शन उम्मीद के मुताबिक नहीं दिख रहा है और वह विनिर्माण क्षेत्र में निवेश नहीं ला पा रहा है।
इसकी मुख्य वजह केवल निर्यात पर ध्यान केंद्रित करना, देसी बाजार के साथ तालमेल का अभाव और आयकर छूट के लिए सनसेट क्लॉज को लागू करना है। सनसेट क्लॉज के तहत किए गए प्रावधान तय मियाद के बाद खुद ही खत्म हो जाते हैं।
सरकार अब केवल निर्यात के बजाय व्यापक आर्थिक परिदृश्य पर ध्यान केंद्रित करना चाहती है। इसके लिए उसकी नजर विनिर्माण एवं निवेश को बढ़ावा देने के साथ-साथ वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं के साथ एकीकरण के जरिये आर्थिक वृद्धि को रफ्तार देने पर है।
एक व्यक्ति ने बताया कि प्रस्तावित कानून के तहत संभवत: एसईजेड में विनिर्मित उत्पादों को घरेलू बाजार में शून्य शुल्क पर बेचने की अनुमति दी जा सकती है। इससे सुनिश्चित होगा कि एसईजेड में मौजूद इकाइयां बाहर की इकाइयों के मुकाबले खराब स्थिति में नहीं हैं। बाहर की इकाइयों को मुक्त व्यापार समझौते के तहत रियायती आयात शुल्क अथवा शून्य शुल्क का फायदा मिलता है।
उद्योग की मांग है कि एसईजेड में मौजूद इकाइयों को तैयार माल के बजाय खपत किए गए कच्चे माल पर आयात शुल्क के भुगतान पर घरेलू बाजार में बिक्री की अनुमति दी जानी चाहिए। विधेयक में यह भी शामिल हो सकता है।
नए कानून में सेवाओं की परिभाषा में भी बदलाव किया जाएगा ताकि घरेलू बाजार में इकाइयों को सेवाओं की आपूर्ति के लिए भारतीय मुद्रा यानी रुपये में भुगतान की सुविधा दी जा सके।