अर्थव्यवस्था खुलने के बावजूद वित्त वर्ष 22 में महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) में काम की मांग तेज है। सामाजिक कार्यकर्ताओं और विशेषज्ञों का मानना है कि मौजूदा जरूरतों को पूरा करने के लिए कम से कम 32,000 करोड़ रुपये अतिरिक्त समर्थन की जरूरत है। इस वित्त वर्ष के बजट में मनरेगा के लिए 73,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।
बहरहाल जनवरी-मार्च के दौरान काम की मांग और बढऩे की उम्मीद (जैसा कि पहले के वर्षों में होता रहा है) और चालू वित्त वर्ष की शुरुआत में पिछले साल के 17,500 करोड़ रुपये बकाया को देखते हुुए सामाजिक कार्यकर्ताओं का यह भी कहना है कि इस साल सभी जरूरतों को पूरा करने के लिए 50,000 करोड़ रुपये के पूरक बजटीय समर्थन की जरूरत होगी।
दोनों स्थितियों को देखें तो अगर केंद्र सरकार मनरेगा में बढ़ी मांग के लिए अतिरिक्त धन की व्यवस्था करती और राज्यों की वित्तीय जरूरतों को पूरा करती है तो इस योजना पर कुल आवंटन एक बार फिर 1,00,000 करोड़ रुपये से ऊपर हो जाएगा।
वित्त वर्ष 21 में मनरेगा के लिए करीब 1,11,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे, जिससे योजना के तहत काम की बढ़ी मांग पूरी की जा सके। कोविड-19 की देशबंदी के कारण पिछले वित्त वर्ष में बड़े पैमाने पर मजदूरों का गांवों की ओर पलायन हुआ था, जिससे काम की मांग बढ़ गई थी। खबरों के मुताबिक वित्त मंत्रालय ने 25,000 करोड़ रुपये के अतिरिक्त वित्तीय समर्थन की जरूरत बढऩे को लेकर चर्चा की है।
मनरेगा संघर्ष मोर्चा के देवमाल्य नंदी ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘अगर मनरेगा के लिए 50,000 करोड़ रुपये से कम अतिरिक्त वित्तीय समर्थन मिलता है तो एक बार फिर यह दिसंबर-जनवरी तक खत्म हो जाएगा क्योंकि ज्यादातर जगहों पर पहले ही बजट में आवंटित राशि खत्म होने के कारण बकाया बढ़ गया है।’
वित्त वर्ष 22 में केंद्र सरकार ने राज्यों की ओर से उपलब्ध कराई गई सूचना के आधार पर करीब 284 करोड़ कार्यदिवस के लिए श्रम बजट की मंजूरी दी थी। मनरेगा वेबसाइट के मुताबिक इसमें से करीब 229 करोड़ कार्यदिवस का सृजन 8 नवंबर तक किया गया है। इसका मतलब यह है कि अप्रैल से अक्टूबर 2021 के बीच प्रति माह औसतन 33 करोड़ कार्यदिवस का सृजन किया गया है। अगर साल के शेष महीनों में कार्य के सृजन की मौजूदा रफ्तार जारी रखी जाती है तो नवंबर से मार्च के दौरान अतिरिक्त 165 करोड़ कार्यदिवस के सृजन की जरूरत पड़ेगी। इसके बाद कुल मंजूर कार्यदिवस की संख्या करीब 394 करोड़ कार्यदिवस हो जाएगी। प्रति व्यक्ति प्रति दिन की औसत लागत करीब 295 रुपये होती है, जिसका मतलब है कि मांग पूरी करने के लिए करीब 32,450 करोड़ रुपये की जरूरत होगी।