देसी तकनीक से अरबों रुपये बचा रहे हैं नौसेना के डिजाइनर

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 05, 2022 | 9:41 PM IST

शायद बहुत कम लोगों को पता होगा कि दक्षिण दिल्ली की कैलाश कॉलोनी में जहां आमतौर पर  मध्यम वर्ग के लोग खरीदारी करने जाते हैं, एक ऐसा मुख्यालय स्थित है जहां विश्व स्तरीय युद्ध पोतों का डिजाइन तैयार किया जाता है।


इस अति संवेदनशील मुख्यालय का आभास केवल इससे लगाया जा सकता है कि  इसके गेट पर एक संतरी पहरा देता हुआ दिख जाता है और बाहरी दीवारों पर कांटेदार तारों की बाड़ लगी है। यह नौसेना डिजाइन महानिदेशालय है जिसने आईएनएस मुंबई जैसे युध्द पोतों का डिजाइन तैयार किया है।


लेबनान पर इजरायल के हमले के दौरान वहां फंस गए भारतीयों को बाहर निकालने के लिए इस पोत का इस्तेमाल किया गया था।नौ सेना के डिजाइन प्रमुख रियर एडमिरल एम के बधवार यह बताते हैं कि किस तरह भारतीय नौ सेना अपने अस्त्र-शस्त्र स्वदेश में ही तैयार करने में थल सेना  और वायु सेना से आगे निकल गई।


थल सेना और वायु सेना 1962 में चीन से हार के बाद इतनी विचलित हो गई कि उसने हर उस देश से सैनिक अस्त्र-शस्त्र खरीदने की सोची जो इसे बेचने के इच्छुक थे। दूसरी ओर नौसेना ने इस बात का निर्णय किया कि वे इन जखीरों को खुद बनाएगी।नौसेना ने इस दिशा में धीरे ही सही लेकिन उल्लेखनीय कदम उठाए।


1960 में एक छोटे लैंडिंग क्राफ्ट बनाने से शुरूआत करने वाले नौ सेना ने आज  गोदावरी, ब्रह्मपुत्र और खुखरी युध्द पोतों के डिजाइन तैयार किए हैं। 1990 में जब नौ सेना ने 6700 टन का दिल्ली क्लास विध्वंसक बनाया तो इसकी चारों तरफ वाहवाही हुई थी। इसके बाद जब मुंबई मझगांव डॉक्स लि.(एमडीएल) में तीन 4800 टन का आईएनएस शिवालिक स्टील्थ फ्रिगेट बनाया गया तो इसकी गिनती दुनिया के बेहतरीन हथियार बनाने वालों में होने लगी।


भारत ने केवल विश्वस्तरीय हथियार बनाना ही नही सीखा है बल्कि इसने कम लागत पर इन पोतों को बनाया है। एमडीएल में बनाए गए तीनों स्टील्थ फ्रिगेट आईएनएस शिवालिक, आईएनएस सतपुड़ा और आईएनएस सह्याद्रि प्रत्येक की कीमत 2600 करोड़ रुपये रही। कलकत्ता क्लास के 3 विध्वंसक में प्रत्येक की कीमत 3800 करोड़ रुपये रही जो काफी बड़ा और भारी भी था और इस कीमत में लंबे समय तक चलने वाले कलपुर्जे की कीमत भी शामिल है।


अब यह पता किया जाए कि अगर इन हथियारों को बाहर से खरीदा जाता तो इसकी कीमत क्या होती? अगर यह जानना हो तो ऑस्ट्रेलिया से पूछिये जिसने तीन 6250 टन के विध्वंसक ऐजिस रेडार स्पेन के शिपयार्ड नवान्तिया से खरीदे हैं और इसके लिए ऑस्ट्रेलिया को 32000 करोड रुपये चुकाने पड़े।


कहने का मतलब कि प्रत्येक की कीमत लगभग 11,000 करोड़ रुपये पड़ी जो भारतीय दामों से तीन गुना ज्यादा महंगा है।एडमिरल बधवार की मानें तो कोलकाता क्लास इन सबमें बेहतरीन है। वह बताते हैं कि ऑस्ट्रेलिया के ऐजिस रडार में जितनी क्षमता नहीं है उससे ज्यादा क्षमता हमारे कोलकाता क्लास में मौजूद है।


भारत दुनिया के उन देशों में शुमार है जो पूरी तरह से अपने मुख्य कार्यालय में हथियार का डिजाइन भी करता है और अपने शिपयार्ड पर इसे बनाता भी है। डीजीएनडी इन डिजाइनों की कल्पना और इसकी प्रक्रिया पर काम करता है। इसके बाद शिपयार्ड इसे कार्यरूप में लाकर इसे एक निर्माण का रूप देता है।


बहुत सारे देशों की नौसेना तो इन जहाजों के निर्माण की जिम्मेदारी निजी कांट्रेक्टर को सौंपते हैं क्योंकि सैकड़ों डिजाइनर को सिर्फ इस काम के लिए रखना उनके लिए उचित नहीं लगता। लेकिन भारत में ऐसा हो भी रहा है और इसकी जरूरत भी महसूस की जा रही है। भारतीय नौसेना अगले 5-7 सालों में इस तरह के 37 प्रोजेक्ट पर काम कर रही है और इसके लिए उसने 500 डिजाइनरों को जिम्मेदारी सौंपी है। अंतरराष्ट्रीय बाजार की तुलना में इसे अपने यहां बनाने से भारत को 2 लाख  करोड़ रुपये की बचत होगी।

First Published : April 15, 2008 | 10:40 PM IST