अर्थव्यवस्था

2027 तक $5 लाख करोड़ GDP के लक्ष्य की ओर भारत, वैश्विक अर्थव्यवस्था में बढ़ा कद

विगत 25 वर्ष से अधिक समय में भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाला देश बन गया है।

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रुचिका चित्रवंशी   
Last Updated- December 24, 2024 | 10:34 PM IST

वर्ष 2000 में देश का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) करीब 468 अरब डॉलर था। महज सात वर्ष बाद यानी 2007 में यह एक लाख करोड़ डॉलर और इसके सात साल बाद दो लाख करोड़ डॉलर हो गया। अब 2024 में भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है और उसके जीडीपी का आकार 3.6 लाख करोड़ डॉलर है। अब उसका लक्ष्य 2027-2028 तक पांच लाख करोड़ डॉलर के जीडीपी के साथ दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का है।

देश का पिछले 25 सालों का सफर ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता और वस्तु एवं सेवा कर जैसे अहम सुधारों से भरा रहा है। वैश्विक वित्तीय संकट और कोविड महामारी के दौरान भी भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत बनी रही। इन बातों ने भी देश की अर्थव्यवस्था को दुनिया की सबसे तेजी से विकसित होती अर्थव्यवस्थाओं में शामिल किया है। इन सालों के दौरान हमारा देश वित्तीय समेकन का एक प्रमुख उदाहरण बनकर उभरा है।

अर्थव्यवस्था के डिजिटलीकरण ने भी इसमें अहम भूमिका निभाई है। उदाहरण के लिए यूपीआई बहुत बड़ा बदलाव लाने वाला साबित हुआ है। जैसा कि जी20 शेरपा अमिताभ कांत ने कहा कि यह डिजिटल सार्वजनिक अधोसंरचना में एक ‘ऊंची छलांग’ की तरह है। यह सफर कतई आसान नहीं रहा है।

विगत 25 साल में भारत को 2008 के वित्तीय संकट का सामना करना पड़ा। उसी साल के अंत में देश की वित्तीय राजधानी पर हमला हुआ। उसके बाद 2016 में देश की करीब 86 फीसदी मुद्रा की रातोरात नोटबंदी कर दी गई। इन बाधाओं के बावजूद कई लाभ सामने आए। अब दुनिया बेहद रुचि के साथ भारत की ओर देख रही है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भारत को अन्यथा धूमिल वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक चमकदार जगह बताया है। अगर भारत को इस गति को बरकरार रखना है और विकसित देश बनने का अपना लक्ष्य हासिल करना है तो काफी कुछ और करना होगा। अर्थशास्त्री कहते हैं कि इसके लिए निरंतर सात फीसदी या उससे अधिक की जीडीपी वृद्धि दर जारी रखनी होगी।

एक हालिया शिखर बैठक में मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने कहा कि भारत को वृद्धि संबंधी सभी घरेलू कारकों का लाभ उठाना चाहिए, खासकर तब जबकि वैश्विक हालात अनुकूल नहीं हैं। निजी पूंजी निवेश को बढ़ावा देने और उपभोक्ता मांग को बढ़ाने जैसी अल्पकालिक चुनौतियों को दूर करने से लेकर दीर्घकालिक लक्ष्यों मसलन स्वास्थ्य और शिक्षा में निवेश की मदद से मानव संसाधन में सुधार करने और जलवायु परिवर्तन से निपटने की तैयारी करने तक अर्थशास्त्री अधूरे कामों का एजेंडा तैयार कर चुके हैं जिनके साथ भारत को 2025 में प्रवेश करना है।

First Published : December 24, 2024 | 10:34 PM IST