भारत का मानना है कि विभिन्न देशों के व्यापार सुगमता का आकलन करने वाला विश्व बैंक-लॉजिस्टिक्स परफार्मेंस इंडेक्स का द्विवार्षिक सूचकांक पूरी तरह से ‘धारणा पर आधारित’ और ‘संकीर्ण’ है।
उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग में विशेष सचिव सुमिता द्वारा ने गुरुवार को संवाददाताओं से बातचीत करते हुए कहा कि इसे देखते हुए भारत चाहता है कि विश्व बैंक लॉजिस्टिक्स के बारे में निर्णय लेते समय सरकार द्वारा लॉजिस्टिक्स के मोर्चे पर उठाए गए कदमों जैसे गतिशक्ति पहल को संज्ञान में ले।
इस साल की शुरुआत में लॉजिस्टिक्स परफार्मेंस इंडेक्स (एलपीआई-2023) में 139 देशों में भारत 6 स्थान ऊपर उठकर 38वें स्थान पर आ गया था। इस सिलसिले में भारत ने विश्व बैंक के प्रमुख अधिकारियों से बातचीत शुरू की है, जिससे उनका ध्यान उद्देश्य पर आधारित रैंकिंग के तरीकों की ओर आकर्षित किया जा सके।
इस समय देशों के प्रदर्शन के आकलन के लिए 6 मानदंडों- सीमा शुल्क, बुनियादी ढांचे, इंटरनैशनल शिपमेंट, लॉजिस्टिक्स क्षमता, ट्रैकिंग और ट्रेसिंग व समयबद्धता पर ध्यान दिया जाता है।हमारा मानना है कि एक महत्त्वपूर्ण वैश्विक सूचकांक में भारत की रैंकिंग बहुत संकुचित तरीके से की जाती है, यहां बहुत काम चल रहा है और गणना में वह नजर आना चाहिए। द्वारा ने कहा, ‘हम अपनी रैंकिंग सुधारना चाहते हैं।
यह तभी सुधर सकता है जब वास्तविक और तथ्यात्मक सुधार इसमें नजर आए। हम इसे दिखाना चाहेंगे और विश्व बैंक को हमारी रैंकिंग तय करते समय इसे संज्ञान में लेना चाहिए।’
लॉजिस्टिक्स लागत का निर्धारण
देश में लॉजिस्टिक्स लागत के अनुमान के लिए एक ढांचे पर भी सरकार काम कर रही है। उम्मीद की जा रही है कि इस माह के अंत तक वास्तविक अनुमान का खाका मिल सकेगा। द्वारा ने कहा कि मसौदा रिपोर्ट तैयार है। इस समय सरकार कुछ अनुमानों पर चल रही है, जिससे पता चलता है कि भारत की लॉजिस्टिक लागत देश के सकल घरेलू उत्पाद के 8 से 14 प्रतिशत के बराबर है।
उन्होंने कहा, ‘अब हमारे पास बुनियादी अनुमान है। अगले साल से हम लागत की गणना के लिए सर्वे पर काम करेंगे। नैशनल काउंसिल आफ अप्लायड इकोनॉमिक रिसर्च (एनसीएईआर) और एशियन डेवलपमेंट बैंक को यह कवायद पूरी करने के काम में लगाया गया है।’