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भारतीय अर्थव्यवस्था तेज रफ्तार से आगे बढ़ रही है और मौजूदा वित्त वर्ष में 6.5% से अधिक की ग्रोथ हासिल करने में उसे कोई बड़ी चुनौती नहीं दिख रही। यह कहना है भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) के सदस्य नागेश कुमार का। उन्होंने रविवार को पीटीआई वीडियो को दिए इंटरव्यू में यह बात कही।
नागेश कुमार ने कहा कि मौजूदा वैश्विक हालात में भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया के लिए एक ‘ब्राइट स्पॉट’ बनी हुई है। उन्होंने बताया कि दुनिया की एक-तिहाई से ज्यादा अर्थव्यवस्थाएं कर्ज संकट से जूझ रही हैं, जबकि विकसित देश उच्च मुद्रास्फीति और ग्रोथ में सुस्ती से परेशान हैं।
कुमार ने कहा कि भारत की ग्रोथ ज्यादातर घरेलू खपत और निवेश पर आधारित है, जबकि एक्सपोर्ट या ट्रेड का योगदान तुलनात्मक रूप से कम है। इसी वजह से भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत बनी हुई है।
उन्होंने उम्मीद जताई कि मौजूदा वित्त वर्ष और अगले साल भी भारत की GDP ग्रोथ 6.5% से ऊपर बनी रहेगी। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि आने वाले वर्षों में यह रफ्तार और तेज होकर 7% से 7.5% तक पहुंच सकती है।
महंगाई पर बात करते हुए कुमार ने कहा कि खुदरा महंगाई दर (CPI) फिलहाल 2% के आसपास है, जो RBI और MPC की नीतियों का नतीजा है। हालांकि, ब्याज दरों में और कटौती की संभावना पर उन्होंने कहा कि सिर्फ एक महीने की कम CPI को देखकर फैसला नहीं लिया जा सकता। RBI को अन्य मैक्रोइकोनॉमिक संकेतकों को भी ध्यान में रखना होगा।
जून में हेडलाइन महंगाई दर घटकर 2.1% पर आ गई है, जबकि RBI का टारगेट 4% है। ऐसे में उम्मीद जताई जा रही है कि अगली मौद्रिक नीति बैठक में दरों में और कटौती हो सकती है। अगली समीक्षा अगस्त में होनी है।
भारत और अमेरिका के बीच प्रस्तावित द्विपक्षीय व्यापार समझौते (BTA) पर बोलते हुए कुमार ने कहा कि अगर यह समझौता हो जाता है तो भारत को श्रम-प्रधान क्षेत्रों में अमेरिकी बाजार में बड़ी पहुंच मिल सकती है। भारत के पास सस्ते श्रमिकों की भरपूर उपलब्धता है, जिससे ये सेक्टर प्रतिस्पर्धी हैं।
हालांकि, उन्होंने माना कि भारत की कुछ चिंताएं भी हैं, जैसे कृषि और डेयरी सेक्टर को खोलने को लेकर। कुमार ने सुझाव दिया कि अगर भारत कुछ क्षेत्रों में बाजार खोलने को तैयार होता है तो वहां कोटा प्रणाली के तहत सीमित रियायत दी जा सकती है, जिससे भारतीय हित सुरक्षित रहें।
नेट आउटवर्ड FDI बढ़ने को लेकर भी कुमार ने स्पष्ट किया कि भले ही नेट FDI कम दिख रहा हो, लेकिन ग्रॉस FDI में 2024-25 में बढ़त हुई है—जो USD 71 बिलियन से बढ़कर USD 81 बिलियन हो गया है। उन्होंने कहा कि रिटर्न (पुनर्भुगतान) के कारण नेट FDI कम दिख सकता है, लेकिन असली तस्वीर ग्रॉस इनफ्लो से मिलती है, और वह फिलहाल मजबूत है।
कुमार ने भरोसा जताया कि भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिरता और प्रदर्शन को देखते हुए विदेशी निवेशक भारत की ओर आकर्षित होते रहेंगे और FDI इनफ्लो आने वाले समय में और बढ़ेगा।
उन्होंने बताया कि UNCTAD की वर्ल्ड इनवेस्टमेंट रिपोर्ट के अनुसार, साल 2024 में वैश्विक FDI फ्लो 11% गिरकर USD 1.5 ट्रिलियन रह गया है। बावजूद इसके, भारत जैसे देशों की स्थिति बेहतर बनी हुई है।