संसद की एक स्थायी समिति ने रेलवे से कहा है कि वह अपनी ढुलाई में विविधता लाते हुए मुख्य जिसों जैसे कोयला, लौह अयस्क और सीमेंट से परे भी प्रदर्शन को बेहतर करे। समिति ने यात्री प्रणाली की तरह ही ढुलाई में सेवा मॉडल विकसित करने की सिफारिश की।
अभी स्थायी समिति की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं है, लेकिन समिति ने सोमवार को जारी बयान में कहा कि माल ढुलाई अभी भी भारतीय रेलवे की रीढ़ बनी हुई है। भारतीय रेलवे के राजस्व का करीब 65 फीसदी हिस्सा ढुलाई से आता है। कोयला, लौह अयस्क और सीमेंट की माल ढुलाई में और ढुलाई से राजस्व सृजन में 60 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी है।
आंध्र प्रदेश से भारतीय जनता पार्टी के सांसद सीएम रमेश की अध्यक्षता वाली इस समिति ने कहा, ‘समिति ने अनुभव किया कि मालगाड़ियों की औसत गति तत्काल बढ़ाए जाने की जरूरत है जो 2023-24 में सिर्फ 25 किलोमीटर प्रति घंटा रही। इसके अलावा समिति ने डेडीकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (डीएफसी) के विकास की प्राथमिकता पर जोर दिया। इसका इस्तेमाल उच्च घनत्व वाले मार्गों पर दबाव कम करने और माल ढुलाई की दक्षता बढ़ाने के लिए हो सकता है।
समिति ने वाणिज्यिक रूप से व्यवहार्य, बाजार पर आधारित रवैये की सिफारिश की जिसमें थोक जिंसों से परे विविधीकरण पर जोर दिया जाए और यात्री खंड की तरह ही माल ढुलाई सेवा मॉडल विकसित किया जाए। इसके तहत लागत, गति और सेवा स्तरों के आधार पर विभिन्न विकल्प मुहैया कराए जाने चाहिए।
इसके अलावा समिति ने रेलवे से यह भी कहा कि सेवा आधारित राजस्व सृजन सहित वैकल्पिक तरीकों से यात्री राजस्व को बढ़ाने के विकल्प तलाशे जाएं। रेलवे के सफर के दौरान यात्रियों को बेहतर सुविधाएं दी जाएं ताकि लोगों को सड़क या हवाई मार्ग से जाने के बजाये रेलवे से जाना अधिक
बेहतर लगे।