फरवरी की पहली तारीख को आने वाले अंतरिम बजट के पहले देश के औद्योगिक उत्पादन में तीव्र गिरावट आई और वह नवंबर में आठ माह के निचले स्तर पर पहुंच गया। ऐसा उच्च आधार प्रभाव के साथ-साथ उपभोक्ता वस्तुओं समेत विनिर्माण गतिविधियों में शिथिलता आने की वजह से हुआ।
दूसरी ओर दिसंबर माह में खुदरा मुद्रास्फीति चार महीने के सबसे ऊपरी स्तर पर पहुंच गई। यह वृद्धि फल-सब्जियों और दालों की कीमतों में मौसमी इजाफे की वजह से हुई। भारतीय रिजर्व बैंक पहले ही इस पर ध्यान दे चुका है।
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा आज जारी आंकड़े दिखाते हैं कि औद्योगिक उत्पादन सूचकांक ने नवंबर में केवल 2.4 फीसदी की बढ़ा जबकि अक्टूबर में इसमें 11.7 फीसदी का इजाफा हुआ था। इस दौरान विनिर्माण में 1.2 फीसदी, बिजली क्षेत्र में 5.8 फीसदी और खनन में 6.8 फीसदी की वृद्धि देखने को मिली।
उधर, खुदरा मूल्य सूचकांक आधारित खुदरा मुद्रास्फीति दिसंबर में साल दर साल आधार पर 5.69 फीसदी बढ़ी जबकि नवंबर में यह 5.55 फीसदी पर थी। केयर रेटिंग्स की मुख्य अर्थशास्त्री रजनी सिन्हा का कहना है कि प्रतिकूल आधार के कारण जहां वृद्धि में कमी आई वहीं बिजली और विनिर्माण क्षेत्र में माह दर माह आधार पर आई कमी ने भी आईआईपी की समग्र वृद्धि पर असर डाला।
उन्होंने कहा कि उपयोग आधारित घटकों में उपभोक्ता वस्तुओं के क्षेत्र में निरंतर कमजोरी तथा अधोसंरचना क्षेत्र में तेज गिरावट चिंता का विषय है। इतना ही नहीं पूंजीगत वस्तुओं के उत्पादन में कमी भी नकारात्मक साबित हुई।
आईआईपी में विनिर्माण के 23 उद्योगों में से 17 में नवंबर में कमी आई। इनमें खाद्य, वस्त्र, चमड़ा, लकड़ी, कंप्यूटर और कागज आदि शामिल हैं। केवल प्राथमिक वस्तुओं (8.4 फीसदी), मध्यवर्ती वस्तुओं (3.5 फीसदी) और अधोसंरचना वस्तुओं (1.5 फीसदी) में सकारात्मक वृद्धि नजर आई। इससे शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में मांग में कमी का संकेत मिला।
मुद्रास्फीति के मोर्चे पर दिसंबर में खाद्य मुद्रास्फीति 9.53 फीसदी के साथ चार महीनों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई। सब्जियों की कीमतों में 27.6 फीसदी, फलों में 11.14 फीसदी, दालों में 20.73 फीसदी और चीनी में 7.14 फीसदी की तेजी देखने को मिली। इस बीच अनाज की कीमतें 9.93 फीसदी के साथ 16 महीनों के निचले स्तर पर रहीं।
पिछले महीने मौद्रिक नीति समिति ने सर्वसम्मति से रीपो दर को 6.5 फीसदी पर अपरिवर्तित रखने का निर्णय लिया था। यह लगातार पांचवीं नीतिगत समीक्षा थी जिसमें दरों में बदलाव नहीं किया गया।
भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने अपने वक्तव्य में कहा था कि सब्जियों की कीमतों में रुक-रुक आने वाली तेजी नवंबर और दिसंबर में एक बार फिर मुख्य मुद्रास्फीति को बढ़ा सकती है। उन्होंने कहा था कि समिति को ऐसे झटकों को लेकर सतर्क रहना होगा हालांकि ये सामान्यीकृत होते जा रहे हैं।