शनिवार को होने जा रही वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) परिषद की 55वीं बैठक में ब्रोकरों, एजेंटों और ऑनलाइन बोली पोर्टलों जैसे कुछ मध्यस्थों को राहत मिल सकती है, जिनकी सेवाएं प्राप्त करने वाले भारत के बाहर होते हैं। परिषद ऐसे मध्यस्थों को निर्यातक के रूप में वर्गीकृत कर शूल्य दर में रख सकती है।
इस समय सीजीएसटी ऐक्ट के तहत मध्यस्थ सेवाओं पर 18 प्रतिशत कर लगता है। सूत्रों के मुताबिक जीएसटी परिषद की फिटमेंट समिति ने आईजीएसटी ऐक्ट की धारा 13 (8) (बी) हटाने के लिए संशोधन का प्रस्ताव किया है।
सूत्रों ने कहा, ‘अगर इसे लागू किया जाता है तो इससे इन सेवाओं पर लगने वाला 18 प्रतिशत जीएसटी का मौजूदा बोझ खत्म हो जाएगा। ऐसे में भारत के मध्यस्थों को अपने विदेशी प्रतिस्पर्धियों के साथ एक समान स्तर पर काम करने का मौका मिल सकेगा।’
महत्त्वपूर्ण बात यह है कि यह प्रस्ताव इन मध्यस्थ सेवा प्रदाताओं को जारी किए गए 3357 करोड़ रुपये की कर देयता को लेकर जारी कारण बताओ नोटिस (एससीएन) के दौरान आया है, जिसे संशोधन लागू होने पर हटाया जा सकता है।
भारत में तमाम लोग व्यक्तिगत रूप से और कॉर्पोरेट ब्रोकर खासकर टेक्सटाइल और चमड़े के बने सामान से जुड़े जिंस बाजार में ब्रोकर या एजेंट के रूप में काम करते हैं। ऐसे में शून्य दर से जुड़े लाभ से उन्हें बड़ी राहत मिलेगी। विशेषज्ञों का कहना है कि ऑनलाइन बोली पोर्टलों जैसे एमजंक्शन, ओएनडीसी (ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स) और एमएसटीसी को इस प्रस्तावित संशोधन से लाभ मिलेगा।
टैक्स कनेक्ट एडवाइजरी सर्विस में पार्टनर विवेक जालान के मुताबिक, ‘आदर्श रूप में एजेंट की सेवा को आईजीएसटी ऐक्ट की धारा 2 (6) के तहत सेवाओं के निर्यात के रूप में देखा जाना चाहिए और इस पर शून्य दर होनी चाहिए। बहरहाल इस अधिनियम की धारा 13 (8) (बी) इस राह में बाधा बनती है और इसके तहत इस तरह के मध्यस्थों की सेवाओं की आपूर्ति को भारत में सेवा प्रदाता के रूप में देखा जाता है।’ उन्होंने कहा कि इन मध्यस्थों पर पड़ने वाले 18 प्रतिशत अतिरिक्त बोझ पर किसी इन इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) का भी दावा नहीं किया जा सकता है।
वहीं कानून समिति ने जीएसटी परिषद को हाल ही में शुरू की गई इनवॉयस मैनेजमेंट सिस्टम (आईएमएस) के माध्यम से इनपुट टैक्स क्रेडिट देने की प्रक्रिया को सरल बनाने की भी सिफारिश की है, जो व्यवसायों को उनकी जीएसटी देनदारियों पर नजर रखने में मदद करती है।
एएमआरजी ऐंड एसोसिएट्स में सीनियर पार्टनर रजत मोहन ने कहा, ‘मौजूदा व्यवस्था में अकाउंटिंग की समय-सीमा और सुलह प्रक्रियाओं की व्यावहारिक चुनौतियों की अनदेखी की गई है। इससे आपूर्तिकर्ताओं पर वित्तीय बोझ पड़ा है, जिन्हें अक्सर जीएसटी देनदारियों का भुगतान करने के लिए मजबूर होना पड़ता है, जिसके लिए वे उत्तरदायी नहीं हैं।’ नई व्यवस्था में आपूर्तिकर्ता के कथित क्रेडिट नोट के संबंध में कर देयता को अगले कर रिटर्न चक्र में समायोजित किया जा सकता है। क्रेडिट नोट आपूर्ति वापस किए जाने या उसमें कमी पाए जाने या छूट के मामले में जारी किए जाते हैं।