बजट 2025 में ₹2,250 करोड़ का एक्सपोर्ट प्रमोशन मिशन घोषित किया गया था, लेकिन इसे अभी तक लागू नहीं किया गया है। (Representational Image)
अमेरिकी टैरिफ के असर से निपटने के लिए सरकार एक्शन मोड में आ गई है। कॉमर्स और इंडस्ट्री मंत्रालय ने करीब ₹25,000 करोड़ के समर्थन स्कीम (Export Promotion Mission) तैयार किए हैं, जो छह साल की अवधि में लागू होंगे। इससे हाई यूएस टैरिफ से पैदा हुई अनिश्चितताओं का मुकाबला किया जा सकेगा।
दो सूत्रों ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि कॉमर्स मंत्रालय का यह प्रस्ताव वित्त मंत्रालय को मंजूरी के लिए भेजा गया है। जैसे ही मंजूरी मिलती है और बजट आवंटन तय होता है, ये स्कीमें कैबिनेट की स्वीकृति के बाद लागू की जाएंगी।
एक्सपोर्ट प्रमोशन मिशन के अंतर्गत तैयार की गई इन स्कीमों में वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन (WTO) के अनुरूप हस्तक्षेप शामिल होंगे, जिनका ध्यान ट्रेड फाइनेंस और एक्सपोर्टर्स के लिए मार्केट एक्सेस को आसान बनाने पर रहेगा।
सरकार का मानना है कि यह मिशन उन चुनौतियों का समाधान करता है जो केवल टैरिफ और ट्रेड-वार से जुड़ी अनिश्चितताओं तक सीमित नहीं हैं। एक सूत्र ने कहा, “यह केवल टैरिफ से कहीं आगे जाता है। कल स्थिति और बिगड़ सकती है। हम एक दीर्घकालीन रणनीति पर काम कर रहे हैं।”
यह रणनीति केवल प्रचार तक सीमित नहीं है, बल्कि भविष्य में ऐसे जोखिमों को कम करने के लिए बाजारों और एक्सपोर्ट बॉस्केट का डायवर्सिफिकेशन का भी लक्ष्य रखती है। इसका मकसद एक्सपोर्टर्स को भारतीय उत्पादों की “एक्सपोर्टेबिलिटी” बढ़ाने के लिए प्रेरित करना भी है।
यह पहल ऐसे समय में आई है जब एक्सपोर्टर्स सरकार से सहायता की मांग कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें जल्द ही अमेरिका में भेजे जाने वाले सामान पर 50 फीसदी टैरिफ का सामना करना होगा। रत्न और आभूषण, टेक्सटाइल और समुद्री उत्पाद जैसे झींगा सबसे अधिक प्रभावित होने वाले क्षेत्रों में शामिल हैं।
यूनियन बजट 2025 में ₹2,250 करोड़ का एक्सपोर्ट प्रमोशन मिशन घोषित किया गया था, लेकिन इसे अभी तक लागू नहीं किया गया है।
डायरेक्ट सब्सिडी जैसे ऑप्शन की संभावना कम है, क्योंकि इसे लागू करना कठिन है और इसमें नैतिक खतरे की चिंता होती है। इसके अलावा, एक्सपोर्टर्स पर वास्तविक प्रभाव का आकलन करना और संबंधित सब्सिडी का औचित्य साबित करना मुश्किल होता है। साथ ही WTO नियमों का उल्लंघन होने का जोखिम भी रहता है।