अर्थव्यवस्था

अल्पावधि का ऋण घटाएगी सरकार

एमटीडीएस एक ढांचा मुहैया कराता है जिसके तहत ऋण प्रबंधन प्राधिकार सूचित चयन कर सकता है कि सरकार की फाइनैंसिंग संबंधी जरूरतों को कैसे पूरा किया जाए।

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असित रंजन मिश्र   
Last Updated- November 21, 2023 | 11:06 PM IST

केंद्र सरकार जोखिम को न्यूनतम करने तथा उधारी लागत कम करने के लिए कुल बकाया विपणन योग्य ऋण (शेयर, बॉन्ड, प्राथमिकता वाले शेयर आदि) में अल्पावधि के ऋण की हिस्सेदारी को वित्त वर्ष 22 के 12.13 फीसदी से घटाकर वित्त वर्ष 25 में 11 फीसदी करना चाहती है। वहीं केंद्र सरकार समान अवधि में बकाया सार्वजनिक ऋण में बाहरी ऋण की हिस्सेदारी को 5.43 फीसदी से बढ़ाकर 7 फीसदी करने की गुंजाइश भी देख रही है।

वित्त मंत्रालय की ओर से गत माह प्रस्तुत ‘स्टेटस पेपर ऑन गवर्नमेंट डेट’ के एक हिस्से के रूप में मध्यम अवधि की ऋण रणनीति (एमटीडीएस) का एक लक्ष्य अल्प बचत योजनाओं तथा भविष्य निधि एवं अन्य विशेष प्रतिभूतियों पर ब्याज की दरों को तर्कसंगत बनाए रखना भी है।

इसका लक्ष्य सरकारी प्रतिभूतियों के बाजार में निवेशकों के आधार को विविधता प्रदान करना, डेट पोर्टफोलियो की परिपक्वता प्रोफाइल को बढ़ाना और बेहतर नकदी प्रबंधन के लिए नकदी जुटाना भी है। इसके मुताबिक आगे चलकर यह सुनिश्चित करना अहम होगा कि अधिक कारोबार के माध्यम से सरकारी प्रतिभूतियों के द्वितीयक बाजार में नकदी की स्थिति में सुधार हो तथा बाजार प्रतिभागियों की संख्या में इजाफा हो ताकि ब्याज दर जोखिम को नियंत्रित किया जा सके।

यह जोखिम स्पष्ट परिपक्वता अवधि वाली प्रतिभूतियों के नकदी प्रीमियम से उत्पन्न होता है। यह भी कहा गया कि अतीत में हम देख चुके हैं कि सरकारी प्रतिभूति बाजार में नकदी की स्थिति सुधारने के उपाय के रूप में प्रतिभूति सुदृढ़ीकरण तथा मानक प्रतिभूतियों के अंतर्गत अहम आत्मनिर्भरता हासिल करना आवश्यक है।

एमटीडीएस एक ढांचा मुहैया कराता है जिसके तहत ऋण प्रबंधन प्राधिकार सूचित चयन कर सकता है कि सरकार की फाइनैंसिंग संबंधी जरूरतों को कैसे पूरा किया जाए। इसके साथ ही ऋण की निरंतरता बरकरार रखने से संबंधित बाधाओं तथा संभावित जोखिमों को भी ध्यान में रखना होता है।

सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड (एसजीबी) जारी करने के बारे में स्टेटस पेपर में कहा गया है कि ऐसे इश्यू किसी वित्त वर्ष में परिपक्वता अवधि वाली प्रतिभूतियों के सालाना सकल निर्गम के दो फीसदी तक सीमित होंगे जबकि कुल बकाया सरकारी प्रतिभूतियों के संदर्भ में ये एक फीसदी होंगे। ऐसा इसलिए ताकि छुड़ाने के समय सोने की ऊंची कीमतों के संभावित जोखिम को कम किया जा सके।

हालांकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि देश के सरकारी कर्ज का जोखिम प्रोफाइल सुरक्षित की श्रेणी में है। रिपोर्ट में कहा गया, ‘भारत में सरकारी ऋण की भरपाई मोटे तौर पर घरेलू स्रोतों से की जाती है। इसके लिए प्राथमिक तौर पर तयशुदा ब्याज दर वाले उपाय किए जाते हैं और संस्थागत घरेलू निवेशकों का बड़ा आधार इसमें मददगार साबित होता है।

भारत के ऋण की अपेक्षाकृत लंबी परिपक्वता प्रोफाइल उसे रोल-ओवर के खतरे से बचाती है।’ रोल ओवर वह स्थिति है जिसमें किसी अनचुकता ऋण को नए ऋण में बदला जाता है।

सरकार की एमटीडीएस मध्यम और दीर्घावधि में समुचित उपायों को जारी कर सरकार के ऋण की लागत को कम करना चाहती है। इसके लिए वह परिपक्वता अवधि बढ़ाकर तथा प्रतिभूतियों की पुनर्खरीद करके रोल ओवर के जोखिम को भी नियंत्रित करना चाहती है। 2021-22 के दौरान सरकार ने 1.7 लाख करोड़ रुपये की प्रतिभूतियों की पुनर्खरीद की।

2020-21 में यह राशि 1.5 लाख करोड़ रुपये थी। वर्ष 2023-24 के बजट में 2022-23 में हुई ऐसी खरीद की राशि को संशोधित करके 1,05,490 करोड़ रुपये कर दिया गया था। ताकि आने वाले वर्षों में इसे छुड़ाने का दबाव कम किया जा सके।

First Published : November 21, 2023 | 11:06 PM IST