वृद्घि के लिए खर्च बढ़ाए सरकार

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 12, 2022 | 4:22 AM IST

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने आज कहा कि बेहद आशावादी नजरिये से कोविड महामारी की दूसरी लहर का अर्थव्यवस्था पर असर पहली तिमाही तक सीमित रह सकता है और इसका कुछ असर जुलाई में भी दिख सकता है। मगर उसने कहा कि सरकार को निजी निवेश और खपत की मांग बढ़ाने के लिए खर्चों में तेजी लाने के उपाय करने चाहिए।
केंद्रीय बैंक ने कहा कि अर्थव्यवस्था के लिए कोविड-19 महामारी अब भी सबसे बड़ा जोखिम है। लेकिन बैंक अपने बहीखातों पर पड़ रहे दबाव को पहले से बेहतर तरीके से संभाल सकते हैं। बैंकों के पास अब पूंजी का बफर ज्यादा है, कर्ज वसूली सुधरी है और पिछले साल मॉरेटोरियम का दौाव झेलने के बाद अब वे मुनाफे में लौट आए हैं।
आरबीआई ने वित्त वर्ष 2020-21 की वार्षिक रिपोर्ट में कहा है, ‘निकट अवधि की तस्वीर कुछ धुंधली है और वृद्घि में गिरावट का जोखिम बना हुआ है। लेकिन उतार-चढ़ाव भरे साल से काफी कुछ सीखने को मिला है। इससे मिली सीख और अनुभव के आधार पर भारत आने वाले साल के लिए आत्मविश्वास के साथ तैयारी कर सकता है।’ रिपोर्ट में कहा गया है कि महामारी से उबरने के लिए तेजी से टीकाकरण करना होगा और सार्वजनिक नीतियों में ऐसी रणनीतियां बनानी तथा लागू करनी चाहिए, जिनसे हम टिकाऊ विकास की राह पर लौट सकें।
आरबीआई ने सार्वजनिक व्यय और निवेश आधारित रणनीति बनाने की बात कही है ताकि खपत मांग बढ़ सके। रिपोर्ट में कहा गया, ‘नरमी के दौर में खपत और निवेश बढऩे से सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) तेजी के दौर में और भी ज्यादा बढ़ सकता है। ‘ आरबीआई का कहना है कि निवेश आधारित सुधार से उत्पादन और खपत दोनों में तेजी आ सकती है। इसलिए मिली-जुली नीति की जरूरत है, क्योंकि क्षमता उपयोग की दर कम रहने से निजी क्षेत्र निवेश बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित नहीं होगा।
केंद्रीय बैंक ने कहा, ‘कोविड-19 की चोट के बाद अर्थव्यवस्था में सुधार मुख्य रूप से निजी मांग बढऩे पर निर्भर करेगा और निकट भविष्य में यह खपत पर आधारित हो सकता है। लेकिन निरंतर सुधार के लिए निवेश में तेजी लाने की जरूरत होगी।’
रिपोर्ट में कहा गया है कि जब संशोधित अनुमान जारी होंगे तो केंद्र और राज्य सरकार का घाटा बढ़ सकता है। ज्यादा राजकोषीय घाटा कर्ज वित्तपोषण में चुनौती बन सकती है, खास तौर तब जब निजी निवेश जोर पकड़ेगा।
मुद्रास्फीति में उतार-चढ़ाव का दबाव बना रह सकता है। खाद्य पदार्थों की मुद्रास्फीति मॉनसून पर निर्भर करेगी मगर अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम में उतार-चढ़ाव के बावजूद पेट्रोलियम उत्पादों पर कर घटाने की गुंजाइश हो सकती है।
2021-22 में आरबीआई की मौद्रिक नीति वृहत आर्थिक स्थिति पर निर्भर करेगी और टिकाऊ वृद्घि हासिल करने तक मौद्रिक नीति वृद्घि को सहारा देने का रवैया अपना सकती है। लेकिन  मुद्रास्फीति को लक्षित दायरे में ही रखा जाएगा। केंद्रीय बैंक पूरे साल तरलता की स्थिति को सहज बनाए रखेगा और वित्तीय स्थायित्व को ध्यान में रखते हुए मौद्रिक सहायता सुनिश्चित करेगा।

First Published : May 27, 2021 | 11:16 PM IST