आर्थिक समीक्षा में मानव निर्मित फाइबर (एमएमएफ) से बने उत्पादों की बढ़ती वैश्विक मांग के अनुरूप कपड़ा क्षेत्र के लिए भारत की रणनीति नए सिरे से तैयार करने की वकालत की गई है। एमएमएफ के उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी 9.2 प्रतिशत है जो वैश्विक दिग्गजों जैसे वियतनाम, चीन और ताइवान से बहुत कम है। भविष्य में निर्यात के लिहाज से यह महत्त्वपूर्ण है क्योंकि 2024 में वैश्विक फाइबर खपत में एमएमएफ की हिस्सेदारी 77 प्रतिशत थी जबकि कपास की सिर्फ 22 प्रतिशत। परंपरागत रूप से भारत को वैश्विक रूप से कपास और कपास आधारित उत्पादों के लिए जाना जाता है।
कपास के क्षेत्र में स्थानीयकरण की कमी और मूल्य श्रृंखला में जटिलता को लेकर भी चिंता जताई गई है जिससे भारत अपने वैश्विक प्रतिस्पर्धियों से लागत के हिसाब से पीछे रह जा रहा है। समीक्षा में चीन और वियतनाम की तरह एकीकृत फाइबर-टु-फैशन फर्मों की जरूरत बताई गई है।
समीक्षा में कहा गया है, ‘वैश्विक स्तर पर मानव निर्मित फाइबर पर जोर बढ़ा है जबकि भारत अभी भी कपास पर निर्भर है। इस कारण वैश्विक बाजार में भारत की प्रतिस्पर्धा सीमित हो रही है। एमएमएफ मूल्य श्रृंखला में संभावनाओं की तलाश करके एमएमएफ की तेजी से बढ़ती वैश्विक मांग का लाभ उठा सकता है। प्रतिस्पर्धियों की तरह अच्छी गुणवत्ता और एमएमएफ उत्पादन से लाभ हासिल करने के लिए एमएमएफ क्षेत्र को एक ही छत के नीचे एकीकरण की ओर बढ़ना चाहिए और उसे अनुसंधान एवं विकास के साथ-साथ सतत उत्पादन की तकनीकों में निवेश करने की जरूरत है।’
भारत में कपड़ा उत्पादन देश भर में फैले तमाम स्वतंत्र और क्लस्टरों के छोटे और मझोले उद्यमों (एसएमई) द्वारा किया जाता है। कपास क्षेत्र को लेकर चिंता जताते हुए समीक्षा में कहा गया है कि भारत में कपास उत्पादन गुजरात, मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश में होता है जबकि इसे धागे में बदलने के लिए तमिलनाडु भेजा जाता है और कॉटन फैब्रिक में इसकी बुनाई के लिए एक बार फिर इसे महाराष्ट्र और गुजरात भेजा जाता है। समीक्षा में कहा गया है, ‘स्थानीयकरण के अभाव और मूल्य श्रृंखला में जटिलता के कराण वैश्विक प्रतिस्पर्धियों की तुलना में लागत बढ़ जाती है। इसके विपरीत प्रतिस्पर्धी देशों जैसे चीन और वियतनाम की एकीकृत फाइबर-टु-फैशन फर्में कम लागत के उत्पादों का निर्यात करती हैं और उनकी गुणवत्ता एक जैसी रहती है और वे उद्योग में तेजी से हो रहे बदलावों के मुताबिक खुद को ढालने में सक्षम होती हैं।’
समीक्षा में कहा गया है, ‘सरल और उदार सीमा शुल्क प्रक्रियाओं से नियामकीय लागत में कमी आती है। इससे चीन और वियतनाम जैसे वैश्विक कपड़ा प्रतिस्पर्धियों को निर्यात होड़ में बढ़त मिलती है। दूसरी तरफ भारत में कपड़ा निर्यातकों की राह में जटिल प्रक्रियाओं के व्यवधान हैं। उदाहरण के लिए निर्यातकों को इस्तेमाल किए जाने वाले कपड़े, बटन और जिपर के प्रत्येक वर्ग सेंटीमीटर का सावधानीपूर्वक हिसाब रखना पड़ता है।