मार्च 2021 में समाप्त वित्त वर्ष (वित्त वर्ष 2021) में सरकार का राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के करीब 9 फीसदी रह सकता है जबकि संशोधित अनुमान 9.5 फीसदी का था। विशेषज्ञ कहते हैं कि हालांकि, चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे का अंतर 6.8 फीसदी के बजट अनुमान से अधिक रह सकता है। इसकी वजह है कि खर्च बढऩे की उम्मीद है और कोविड की दूसरी लहर के कारण जीडीपी में संकुचन आना तय है।
सरकार में मौजूद सूत्रों के मुताबिक वित्त वर्ष 2021 में राजस्व संग्रह संशोधित अनुमान के पार चला गया है जिससे राजकोषीय घाटा संशोधित अनुमान से कम रहने की उम्मीद है।
महालेखा नियंत्रक (सीजीए) की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक यह फरवरी के आंकड़ों से स्पष्ट था जो संशोधित अनुमान का 76 फीसदी रहा था। सीजीए मार्च महीने का आंकड़ा मई के अंत में जारी कर सकता है।
वित्त वर्ष 2022 के लिए केंद्र के राजकोषीय घाटा का लक्ष्य 6.8 फीसदी है जिसे अगले चार वित्त वर्षों (वित्त वर्ष 2026) में 4.5 फीसदी पर लाना है। हालांकि, अर्थशास्त्रियों को इसके अधिक रहने की आशंका है क्योंकि जीडीपी वृद्घि दर पहले के अनुमान से कम रह सकती है।
केयर रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, ‘आज की आर्थिक परिस्थितियां बहुत अधिक उतार चढ़ाव वाली हैं। महामारी में लॉकडाउन के अधिक कठोर होने से माहौल काफी उदासीन हो गया है।’
उन्होंने कहा, ‘महमारी को लेकर अनिश्चितता है जिसका असर लॉकडाउन पर पड़ रहा है। इससे माहौल अस्थायी बना हुआ है।’
उन्होंने इंगित किया कि चूंकि राष्ट्रीय स्तर पर लॉकडाउन नहीं लगा है ऐसे में सरकार ने केवल खाद्य राहत कार्यक्रम को छोड़कर अन्य किसी राहत उपायों की घोषणा नहीं की है।
उन्होंने कहा, ‘चूंकि लॉकडाउन की अवधि को लेकर अनिश्चितता है ऐसे में राज्यों ने भी कोई राहत मुहैया नहीं कराई है। हमने अपने आंकड़ों पर काम किया है और मान कर चल रहे हैं कि लॉकडाउन जून तक लागू रहेगा। चुनिंदा राज्यों में जुलाई में कुछ सहूलियत दी जाएगी लेकिन समग्र तौर पर अगस्त में जाकर अर्थव्यवस्था दूसरी लहर से पूर्व की स्थिति के करीब पहुंच सकती है।’
उन्होंने अनुमान जताया कि जीडीपी वृद्घि 9.2 फीसदी रहेगी। उन्होंने कहा, ‘इसका मतलब है कि राजकोषीय आंकड़ों पर असर पड़ेगा और ऐसा लगता है कि साल का राजकोषीय घाटा अनुपात 7.15 फीसदी रहेगा जबकि बजट में इसके 6.8 फीसदी रहने की उम्मीद जताई गई थी। ऐसा सीमित राहत की घोषणा और जीडीपी वृद्घि दर घटने के कारण कर संग्रह में कमी आने की वजह से होगा।’
सबनवीस ने कहा कि जितना अधिक संक्रमण बढ़ेगा और जितने अधिक समय तक के लिए यह रहेगा जीडीपी वृद्घि के अनुमान में उतनी ही अधिक गिरावट आएगी। महाराष्ट्र में नियंत्रण लगने के बावजूद पिछले 40 दिनों से करीब 60,000 मामले आए हैं। पिछले वर्ष की तरह मामलों में तेजी से कमी आने की कोई उम्मीद नहीं है। इसीलिए जीडीपी में कमी आने की आशंका बनी हुई है।
इंडिया रेटिंग्स ऐंड रिसर्च के मुख्य अर्थशास्त्री देवेंद्र कुमार पंत ने कहा कि हालांकि, वित्त वर्ष 2021 में राजकोषीय घाटा 9.5 फीसदी के संशोधित अनुमान से थोड़ा कम रहेगा लेकिन ऐसा वृद्घि में उछाल आने की वजह से न होकर वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में किए गए विभिन्न प्रशासनिक बदलावों के कारण से होगा। इन बदलावों के कारण ही जीएसटी का संग्रह बढ़ा है।
पंत के मुताबिक जीएसटी में किए गए इन कुछ बदलावों से इनपुट क्रेडिट के दावों में छिद्रों को बंद कर दिया गया था। यहां तक कि प्रत्यक्ष कर संग्रहों में भी अच्छा प्रदर्शन नजर आया और यह संशोधित अनुमान के पार चला गया।
दूसरी ओर फरवरी तक राजस्व खर्च में ढिलाई नजर आई थी। उन्होंने कहा, ‘एक मात्र अंतर पूंजीगत व्यय के मोर्चे पर रही वह भी निवेश के लिए राज्य सरकारों के लिए ऋण योजना के कारण।’
वित्त वर्ष 2021 की दूसरी छमाही में अर्थव्यवस्था में कुछ अच्छे संकेत नजर आए जो कई महीनों तक आर्थिक गतिविधि के बंद रहने के बाद दोबारा शुरू होने की वजह से हुआ था।
वित्त वर्ष 2021 के अस्थायी आंकड़ों के मुताबिक शुद्घ राजस्व संग्रह 10.71 लाख करोड़ रुपये है जो संशोधित अनुमान का 108.2 फीसदी है जबकि जीएसटी संग्रह 5.48 लाख करोड़ रुपये रहा जो संशोधित अनुमान का 105 फीसदी है।
पिछले छह महीने से जीएसटी संग्रह हर महीने 1 लाख करोड़ से ऊपर रहा है।