बीएस बातचीत
पंद्रहवें वित्त आयोग के चेयरमैन एनके सिंह स्वीकार करते हैं कि 14वें वित्त आयोग और 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों के बीच उपकर और अधिभार बढ़े हैं। दिलाशा सेठ और इंदिवजल धस्माना से बातचीत में उन्होंने कहा कि यह 15वें वित्त आयोग के संज्ञान में था। यही वजह है कि राज्यों की आंशिक भरपाई के लिए अनुदानों की सिफारिश की गई है। संपादित अंश…
आपने राज्यों को कर हस्तांतरण 41 प्रतिशत बहाल रखने की सिफारिश क्यों की है?
दरअसल हमने इसे 42 प्रतिशत रखा था। एक प्रतिशत जम्मू कश्मीर के लिए समायोजन किया गया है। हमने यह 28 राज्यों के लिए किया है, न कि 29 राज्यों के लिए। अगर आप वित्त आयोग के क्रमिक विकास को देखें तो राज्यों को हस्तांतरण में हमेशा वृद्धि हुई है। पहली बार 14वें वित्त आयोग ने इसे 32 प्रतिशत से बढ़ाकर 42 प्रतिशत किया था, जो ढांचागत बदलाव था। राज्यों और केंद्र की जरूरतों को देखते हुए 41 प्रतिशत हिस्सेदारी सही और उचित है। यह केंद्र की वित्तीय अनिवार्यताओं के साथ राज्यों की जरूरतों के बीच संतुलन बिठाता है।
इन दिनों केंद्र सरकार उपकर और अधिभार बहाल कर रही है और लगा रही है, जिससे वित्त आयोग की सिफारिशें दरकिनार हो रही हैं?
पहली बात, वित्त आयोग का ध्यान सकल कर राजस्व पर केंद्रित रहता है। संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक उपकर और अधिभार बंटवारे वाले कर का हिस्सा नहीं होते। दूसरा, वित्त आयोगों ने लगातार उपकर और अधिभार को लेकर चिंता जताई है जो वित्त आयोग के फॉर्मूले के मुताबिक कर के बंटवारे को बेअसर करते हैं। तीसरा, उपकर एवं अधिभार जैसे व्यापक मसले पर विचार करना हमारे कार्यक्षेत्र के दायरे के बाहर है, हम इसे संज्ञान में लेते हैं।
आपने कहा कि अनुदान को लेकर सिफारिशें तेज रही हैं। लेकिन क्षेत्र विशेष और राज्य विशेष के आधार पर कुल मिलाकर 1.8 लाख करोड़ रुपये अनुदान केंद्र सरकार द्वारा स्वीकार नहीं किए गए?
क्षेत्र आधारित अनुदानों में ज्यादा हिस्सा दो खास क्षेत्रों से संबंधित था। इनमें एक स्वास्थ्य और एक कृषि क्षेत्र शामिल है। स्वास्थ्य के लिए 32,000 करोड़ रुपये और कृषि के लिए 45,000 करोड़ रुपये अनुदान की सिफारिश की गई है। स्वास्थ्य क्षेत्र में अनुदान प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र व परीक्षण प्रयोगशालाओं को मजबूत करने के लिए है। केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित योजनाओं (सीएसएस) के पुनर्गठन और केंद्र का आवंटन इन सिफारिशों के मुताबिक किया जाएगा। सीएसएस के ढांचे व केंद्र के आवंटन को तार्किक बनाने पर वे विचार करेंगे। राज्य विशेष के लिए अनुदानों पर वे गंभीरता से विचार करेंगे। 15वां वित्त आयोग एक दिवसीय मैच नहीं है, यह 5 साल के लिए विचार है।
कृषि बुनियादी ढांचा उपकर को राज्यों के साथ साझा करने को लेकर भ्रम है?
अगर संविधान के मुताबिक देखा जाए तो उपकर और अधिभार कर बंटवारे के तहत नहीं आते। अन्य साधनों जैसे कार्यकारी आदेश द्वारा उपकर या अधिभार का कुछ हिस्सा राज्यों को दिया जा सकता है, जो केंद्र के राज्यों को राजस्व मुहैया कराने की नीति पर निर्भर है। जहां तक बंटवारे वाले पूल के फॉर्मूले की बात है, हम संविधान के मुताबिक चलेंगे। फिलहाल संविधान में उपकर और अधिभार को बाहर रखा गया है।
चाहे व उपकर और अधिभार का मसला हो या वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) का, केंद्र-राज्य संबंध तनावपूर्ण रहे हैं। सहकारी संघवाद को मजबूत करने के लिए आप क्या सिफारिश करेंगे?
केंद्र सरकार ने सहकारी संघवाद की आत्मा और प्रकृति को कमजोर नहीं किया है। पांच साल अवधि की सकल राजस्व प्राप्तियां मोटे तौर पर 154-155 लाख करोड़ रुपये होती हैं। अगर हम सकल कर प्राप्तियों को देखें तो यह 5 साल में 134 लाख करोड़ रुपये है। अगर बंटवारे वाले पूल के आकार को देखें तो यह घटकर 101 लाख करोड़ रुपये रह जाता है। ऐसे में बंटवारे में राज्यों को 41 प्रतिशत देने पर राजस्व के रूप में यह करीब 42 लाख करोड़ रुपये मिलता है। इसमें 2.94 लाख करोड़ रुपये राजस्व घाटा अनुदान, 4 लाख करोड़ रुपये आपदा प्रबंधन के अतिरिक्त अनुदान भी जोड़ा जा सकता है, जिससे केंद्र राज्यों में राजकोषीय संतुलन हो जाता है। दूसरा मसला संविधान के 282 के दुरुपयोग का है, जिके तहत तमाम सीएसएस और केंद्रीय आवंटन आते हैं।
हमारी सिफारिशों के आधार पर वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में उल्लेख किया है कि वह सीएसएस और केंद्रीय आवंटनों में बड़ा पुनर्गठन करेंगी।
दरें तार्किक करने की कवायद के बाद कब तक राजस्व सामान्य होने का अनुमान है?
यह काल्पनिक सवाल है। इस पर फैसला सिर्फ संवैधानिक निकाय जीएसटी परिषद ले सकता है। बहरहाल हमने प्रक्रिया और तौर तरीके को तार्किक बनाने के लिए कई सुझाव दिए हैं, जिसमें से ज्यादातर वित्त मंत्री के बजट भाषण में स्वीकार किया गया है।
